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महाभारतमीमांसा

५४ ॐ महाभारतमीमांसा पढ़कर बहुतेरे लोग समझते हैं कि यह वगीतामें दिये हुए उनके विचारों में मेल तो संस्कृत भाषाका बिलकुल ठीक श्लोक हैं या नहीं। तथा श्रीकृष्णका चरित्र है, फिर इतना पुराना कैसे हो सकता है? : और भगवद्गीताका परम तत्व दोनों के परन्त उन्हें चाहिए कि वे उक्त सब ! उच्चतम और कैसे उदास हैं। भगवडीता- बातोंकी ओर ध्यान दें। एक बात तो यह में मुख्यतः किस विषयका प्रतिपादन है कि ई० स०से ६०० वर्षके पूर्व संस्कृत किया गया है। इसके लिए हमें श्रीकृष्ण- भाषाका बोलने में प्रचार सामान्यतः बन्द के समयकी और भगवद्गीताके समयकी हो गया, और पाणिनिके प्रसिद्ध तथा । परिस्थितिका थोड़ासा पूर्व स्वरूप ध्यानमें वैदिक मान्य व्याकरणसे उसे जो स्वरूप · लाना चाहिए । श्रीकृष्णके अवतारके मिला है वह ढाई हजार वर्षसे आजतक समय भारतीय आर्य हिन्दुस्थानके पजाब, खिर है। इसके पहले वेदांग-कालमें फरक मध्यदेश, अयोध्या, सौराष्ट्र आदि प्रान्तों- नहीं हुभा: क्योंकि भाषामें अनेक व्याक- में बस चुके थे। उनकी उत्तम धार्मिक रण उत्पन्न हुए जिनसे उसका अधिकांश व्यवस्थाके कारण सब प्रकारको उन्नति स्वरूप खायो हो गया था। तोभी ऐसा हुई थी: देशमें क्षत्रियोंकी संख्या बहुत दिखाई पड़ता है कि दशोपनिषदोंकी ही बढ़ गई थी। जहाँ-तहाँ सुराज्य भाषामें और वेदाङ्ग कालीन भाषामें थोड़ा, स्थापित हो गया था तथा रहन-सहन फरक है, और यह फरक हजार या आठ सुव्यवस्थित हो गया था, जिससे सम्पूर्ण सौ वर्षोंका भी हो सकता है । भगवद्गीता देश प्रजावृद्धिसे भरपूर था । दक्षिण और इसी मध्य कालकी है और उसका स्वरूप पूर्वके द्रविड़ देशोंमें द्राविड़ोंकी संख्या पूर्णतया बोलनेकी भाषाका है । समस्त · पूरी पूरी बढ़ी थी। वहाँ अधिक बढ़नेके महाभारतकी भाषाके समान कृत्रिम लिए स्थान नहीं था। लोगोंकी नीतिमत्ता स्वरूप नहीं दि उत्तम होनेके कारण आपसमें वैरभाव विषयके प्रतिपादनकी रीति तथा भाषा- अथवा रांगोंकी उत्पत्ति कम थी। अर्थात् का वक्तत्व बोलनेकी जिन्दा भाषाका जिस प्रकार अभी महायुद्ध के पहले यूरोप- है और वह विशेषतः छान्दोग्य और बृह- के देशों की स्थिति हुई थी उसी प्रकार थोड़ी दारण्यक उपनिषदोंके समान है। भाषा- अधिक स्थिति श्रीकृष्णके जन्मके समय हुई की दृष्टिसे भी हमने भगवद्गीताको उप- थी। जो यह वर्णन दिया है कि ब्रह्माको निषदोंके अनन्तर और वेदाङ्गो या यास्क चिन्ता हुई कि पृथ्वीका भार कैसे कम अथवा पाणिनिके पूर्वी माना है। यह होगा, वह कुछ असत्य नहीं है। हम कहने में कुछ हर्ज नहीं कि हमारा ऐसा विस्तारपूर्वक बतावेंगे कि ऐसे समयमें मानना अनुचित नहीं है। श्रीकृष्णके अवतारकी तथा उनके दिव्य भगवद्गीताके समयकी परिस्थिति। उपदशकाकितना अधिक आवश्यकता थी। अब हम इस विचारके अन्तिम प्रश्न राष्ट्रोंकी उच्च और नीच गति। की ओर ध्यान देंगे। हमें इन प्रश्नोका कोई देश कभी उन्नतिके परमोच्च पद विचार करना जरूरी है कि भगवद्गीतामें पर सदैव नहीं रह सकता। उच्च शिखर श्रीकृष्णके कौनसे विशिष्ट मत हमें दिखाई पर पहुँचने के बाद, घूमते हुए चक्रका देते हैं। श्रीकृष्णके चरित्रमें और भग- नीचेकी ओर आना जैसे अपरिहार्य है। स्वार