पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/६१

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  • महाभारतके कर्ता

२५ ही नहीं, किन्तु हिन्दुस्थानके वर्तमान | धनकापात्रभी उदाहरण-स्वरूप है । यद्यपि प्रसिद्ध राज-वंश अपने अपने वंशोंकी | उसके चरित्रका झुकाव बुरे मार्गकी ओर उत्पत्ति भारती-युद्धके वीरोंसे हो बतलाया है, तथापि उसका अटल निश्चय, उसका करते हैं। इससे इस यद्धकोराधीय महत्व | मानी स्वभाव-जिसने सार्वभौमत्व और प्राप्त हो गया है; अथवा कहना चाहिये कि मृत्युके बीचकी किसी श्रेणीको स्पर्श यह महत्त्व उसे पहलेसे ही प्राप्त है। कौरवों तक नहीं किया-उसका मित्र-प्रेम और की संस्कृति बहुत ऊँचे दर्जेकी थी। कुरु- उसकी राजनीति इत्यादि सब बातें यथार्थ- का नाम ब्राह्मण-ग्रन्थोंके समयसे वैदिक में वर्णन करने योग्य हैं। इस सम्बन्धमें साहित्यमें बार बार आया है। यह नहीं | व्यास कविने होमर अथवा मिल्टनको कहा जा सकता कि इस संस्कृतिको सौति- भी मात कर दिया है। होमरका प्रति- ने बढ़ा दिया होगा। इस युद्ध के साथ नायक हकर अनुकम्पनीय दशामें है। श्रीकृष्णका घनिष्ट सम्बन्ध है, इस कारण यद्यपि वह अपने देशकी सेवा करनेके भी इस युद्धको राष्ट्रीय महत्त्व प्राप्त हुश्रा लिये तत्पर है, तथापि जब वह अपनी है। क्योंकि धर्म, नीति और तत्त्वज्ञान- प्रिय-पत्नीसे बिदा होता है और अपने के सम्बन्धमें श्रीकृष्ण गट्रीय महत्त्वके वालकका चुम्बन करता है, उस समय पुरुष थे। इनके सम्बन्धमें आगे विस्तार- उसके मनका धीरज टूटा हुश्रा देख पड़ता सहित विचार किया जायगा। जिस प्रकार है। मिल्टनका प्रतिनायक इतना तुष्ट ट्रोजन-युद्ध यूनानियोंको राष्ट्रीय युद्ध और शक्तिशाली दिखाया गया है कि वह मालूम होता है, उसी प्रकार भारती-युद्ध नायकसे भी अधिक तेजस्वी मालूम होता भारतवासियोंको राष्ट्रीय महत्त्वका मालूम है और कभी कभी तो जान पड़ता है कि होता है। सारांश, इस महाकाव्यका विषय | वही काव्यका नायक है। अस्तु: महा- अत्यन्त महत्त्वका, विस्तृत और राष्ट्रीय-: भारतमें वर्णित स्त्रियाँ, इलियडमें वर्णित स्वरूपका है। अब हम महाकाव्यके दूसरे स्त्रियोंको अपेक्षा, बहुत ही ऊँचे दर्जेको आवश्यक अङ्गका विचार करते हैं। हैं। हेलन, द्रौपदीके नखानकी भी समता • यह विस्तार-सहित कहनेकी आवश्य- नहीं कर सकती। एन्ड्रोमकी भी द्रौपदी- कता नहीं है कि महाभारतमें वर्णित व्यक्ति- की समकक्ष नहीं हो सकती। कविश्रेष्ठ यो चरित्र अत्यन्त उदात्त हैं । युधिष्ठिर, व्यासजीने द्रौपदीके पात्रको सचमुच भीम, अर्जुन, कर्ण, द्रोण और सर्वश्रेष्ठ अद्वितीय बना दिया है। उसका धैर्य- भीमके चरित्रोंसे, धर्म और नीतिके प्राच- सम्पन्न और गम्भीर स्वभाव, उसका रणके सम्बन्धमे यह शिक्षा मिलती है कि पातिव्रत्य, उसको गृह-दक्षता आदि सब नीतिके आचरणके सामने जीवनकीभी कुछ गुण अनुपम है। इतना होने पर भी वह परवा न होनी चाहिये । और इस शिक्षा- मनुष्य-स्वभावके परे नहीं है। वह अपने को हिन्दुस्थान-निवासी श्रार्योंके हृदयों पर पति पर ऐसा क्रोथ करती है जो स्त्री- प्रतिविम्बित करा देनेमें, ये चरित्र आज जातिके लिये उचित और शोभादायक हजारों वर्षोंसे समर्थ हो रहे हैं । श्रीकृष्ण- है। वह अपने पतिके साथ विवाद करती का चरित्र तो बस अद्वितीय ही है। है और कभी कभी ऐसा हठ करती है जो उसके रहस्य और महत्त्वका विस्तार- पतिव्रता स्त्रियोंके लिये उचित है। वह सहित वर्णन भाग किया जायगा। दुर्यो- 'यथार्थमें क्षत्रिय स्त्री है। हेक्टरकी पलीके