५६० & महाभारतमीमांसा ® - भगवद्गीताकी कितनी स्तुति है !!! सौति धृतराष्ट्रको श्रीकृष्णने दिव्य-दृष्टि दी । स्वयं अपने ही कामकी बड़ाई कभी न सारांश, पढ़नेवालोको यह मालूम हुए करेगा। यह बात स्पष्ट देख पड़ती है कि बिना नहीं रहता, कि भगवद्गीतामें दिया दूसरेका रचा हुआ भगवद्गीता-ग्रन्थ हुआ विश्वरूप-दर्शन असल है और उद्योग सौतिके सामने था और उसका उसके पर्वमें दिया हुआ सिर्फ नकल है और यह मनमें अन्यन्त आदर भी था । हम कह भी अयोग्य स्थानमें है । अर्थात् हमारा सकते हैं कि भगवद्गीताका अनुकरण कर यही अनुमान दृढ़ होता है, कि इस समय उसने अनुगीना-उपाख्यानको महाभारत- भगवद्गीता जैसी है वैसी ही वह सौतिके में स्थान दिया है। सामने उपस्थित थी और उसके बादरके इसके सिवा अनुकरणका और भी कारण अनुकरण द्वारा यह भाग उद्योग एक प्रमाण हमें देख पड़ता है। महाकवि- पर्वमें प्रविष्ट किया गया है। के प्रत्युदात्त कौशल्यके अनुरूप व्यास यहाँ यह भी प्रश्न उपस्थित होता है अथवा वैशम्पायनने विश्वरूप-दर्शनका चमरकार भगवद्गीताके मध्य भागमें कि सोनिके सन्मुख जैसी भगवद्गीता थी प्रथित किया है। यह चमत्कार इस स्थान वैसी ही उसने महाभारतमें शामिल कर पर बहुत ही मार्मिक रीतिसे आया है दी है या उसमें उसने कुछ और भी मिला और उसका यहाँ उपयोग भी हुश्रा है। र दिया है । कई लोगोंका मत यह है, कि अर्जुनके मन पर श्रीकृष्णके दिव्य-उपदेश-: ' विश्वरूप-दर्शन के अनन्तरके कुछ अध्याय सौति द्वारा जोड़ दिये गये हैं । हापकिन्स- का तत्व पूर्णतया प्रस्थापित करनेका । उसका उपयोग था: और वह हुआ भी। का मत भी यही देख पड़ता है कि भग- 'वद्गीताके बीचके अध्याय पीछेसे जोड़े धर्म-संस्थापकके लिए चमत्कारका अस्तित्व सब धर्मों में माना गया है। इसीके अनु-: " गये हैं और प्रारम्भ तथा अन्तके अध्याय सार हमारे महाकविने इस चमत्कारकी मूलभूत हैं। राजाराम शास्त्री भागवतने योजना भगवद्गीतामें उचित स्थान पर : भी यह प्रतिपादन किया था, कि प्रारम्भ- और योग्य कारणसे की है। परन्तु सौति- के दो अध्याय पीछेसे मिला दिये गये हैं। ने इसी चमत्कारका अवलम्बन अनुकरण- उन्होंने यह कारण दिखलाया था कि से अन्य स्थान पर किया है। वह अयोग्य विभूति-अध्यायके और १५वें अध्यायके कुछ वचनोंका पूर्वापर संदर्भ या मेल स्थान पर हुआ है और उसका कुछ उप- योग भी नहीं हुआ। उद्योग पर्वके १३१वे नहीं मिलता। परन्तु हमारे मतमें यह अध्यायमें यह वर्णन है कि जब श्रीकृष्ण तर्क गलत है। हम पिछले प्रकरणमें बता कौरवोंकी सभामें दूत या मध्यस्थका काम चुके हैं कि विश्वरूप-दर्शनके अनन्तरके करने गये थे, उस समय उन्होंने अपना अध्यायों में जो सांख्य और वेदान्त-शान विश्वरूप धृतराष्ट्रको दिखलाया था। वह बतलाया गया है, वह महाभारत-कालके सचमुच भगवद्गीतामें दिये हुए विश्वरूप- पूर्वकाह पूर्वका है । क्षेत्रकी व्याख्यामें भगवदगीतामें दर्शनका अनुकरण है। इतना ही नहीं, "इच्छादेषः सुखं दुःखं संघातम्धे- किन्तु कहा गया है कि जिस प्रकार तना धृतिः" इन सब बातोंको शामिल अर्जुनको श्रीकृष्णने विश्वरूप देखनेके किया है, परन्तु इनका उल्लेख महामारत- लिए दिव्य-दृष्टि दी थी, उसी प्रकार यहाँ में नहीं मिलता । सांख्य तन्व-ज्ञानका
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महाभारतमीमांसा