पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/५८४

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महाभारतमीमांसा

- - - ५५६ ® महाभारतमीमांसा का ही मोक्ष होना मानता है । उसका चरुचेली और मिलीमिली शब्द यह मत दिखाई देता है कि भिन्न भिन्न संस्कृत न होकर द्रविड भाषाके मालूम जन्मोंके अन्तमें द्विजका जन्म मिलता है पड़ते हैं । इससे हमने जो कहा है कि और नारायणके प्रसादसे उसे मोक्ष या महादेवके दो स्वरूप हैं, एक आर्य और परम गति प्राप्त होती है। दूसरा अनार्य, उसे कितना आधार मिलता पाशपत मतमें तपका विशेष महत्व है, इस बातको पाठक अवश्य देखें। भोकोहामाया सम्बन्धी भगवद्गीताके ढंग पर हर एक मतकी पर- वर्णन देना आवश्यक है:-"कुछ लोग म्पराका होना आवश्यक है। तदनुसार वायु भक्षण करते थे। कुछ लोग जलपर पाशुपत मतकी परम्परा आगेके लेखसे ही निर्वाह करते थे। कुछ लोग जपमें दिखाई देती है । अनुशासन पर्व अ० १७ निमग्न रहते थे । कोई योगाभ्याससे के अन्तमें यह कहा है-"ब्रह्मदेवने यह भगवश्चितंन करते थे। कोई कोई केवल । गुह्य पहले शकको बतलाया, शक्रने मृत्यु- धूम्रपान करते थे। कोई उप्यताका सेवन को, मृत्युने रुद्रको, रुद्रने तण्डीको, तण्डी. करते थे। कोई कोई दृध पीकर रहते थे। ने शुक्रको, शुक्रने गौतमको, गौतमने वैव- कोई कोई हाथोंका उपयोग न करके स्वत मनुको, मनुने यमको, यमने नाचि- केवल गायोंके समान खाते पीते थे। केतको, नाचिकेतने मार्कण्डेयको, और कोई कोई पत्थर पर अनाज कटकर मार्कण्डेयने मुझ उपमन्युको बतलाया ।" अपनी जीविका चलाते थे। कोई चन्द्रकी यह परम्परा सहस्र-नाम-स्तवनकी है: किरणों पर, कोई जलके फेन पर और । तथापि हम मान सकते है कि वह पाशु- कोई पीपलके फलों पर अपना निर्वाह पत मतकी होगी। करते थे। कोई पानीमें पड़े रहते थे।" नहीं कह सकते कि पाशुपत संन्यास- एक पैर पर खड़े होकर, हाथ ऊपर उठा- . मार्गी है । उसीमे कहा है कि यह सम्पूर्ण कर वेद कहना भी एक विकट तप था। वैदिक-मार्गी मत नहीं है । महादेवके गण कहा गया है कि श्रीकृष्णन ऐसा तप छः भृत पिशाचादि हैं और इस मतमें उनकी महीनेतक किया था। इस उपमन्य भी पूजा कही गई है । तथापि महाभारत- आख्यानमें लिखा है कि शंकर भी तप कालमें उनकी भक्ति अधिक फैली हुई नहीं करते हैं। दिखाई देती । पाशुपत तत्वज्ञानमें जगत्- शंकरकी दक्षकृत स्तुतिमें दो नाम । में पाँच पदार्थ माने गये हैं-कार्य,कारण, ध्यान रखने योग्य है। उन्हें यहाँ देना योग, विधि और दुःख, जिन्हें प्राचार्योने आवश्यक है । चराचर जीवोंस तू गोटों- मत्रभाष्यमे बतलाया है। परन्तु महा- की नाह खेलता है इससे तुझे चोली भारतमें उनका उल्लेख नहीं है । जबपाशु- कहते हैं । तू कारणका भी कारण है इससे . पत तत्वज्ञान माना गया है तब उसके तुझे मिलीमिली' कहते हैं। मूल श्लोक । कुछ विशिष्ट मत अवश्य होंगे। इन सब

  • भिन्न भिन्न तत्वज्ञानोंमें तीन चार बातें

यह है- । समान दिखाई देती हैं जिनका अन्तमें घंटोऽघंटोघटीघंटी चरुचेली मिलीमिली। उल्लेख करना आवश्यक है। पहली बात ब्रह्म कायिकमग्नीनाम् दंडीमुंडलिदंडधृक॥ यह है कि हर एक तत्वज्ञानकी प्राप्तिके (शा० अ० २८४-४५) लिए गुरुकी श्रावश्यकता है। यह सिद्धान्त