५५२ ® महाभारतमीमांसा पृथ्वीको मस्तक पर धारण करनेवाला| कालमें निश्चित हो गया था। इस विश्वरूपी दिव्य शेष इसीने उत्पन्न किया अध्यायमें विष्णुके बारह भिन्न भिन्न है। इसके कानकी मैलसे मधु दैत्य पैदा नामोंसे हर एक महीनेकी द्वादशीको हुमा । जब वह ब्रह्माको नष्ट करने लगा | उपवास करनेका वर्णन किया गया है। तब इसीने उसे मारा, अतएव इसको अतएव हम मान सकते हैं कि नारायण मधुसूदन नाम मिला । यह ध्यान रखना | नाम पांचरात्र मतके पूर्वका है। भीष्म चाहिए कि यहाँ भी उपर्युक्त नारायणीय पर्वके वर्णनमें जो लिखा है कि श्रीकृष्ण आख्यानसे थोड़ा सा अन्तर है। सारांश अपने विभाग करके यादव-कुलमें अव- यह कि नारायणीय आख्यान और ये नार ले, उसके सम्बन्धमें कुछ आश्चर्य अध्याय बहुत कुछ मिलते हैं । और, मालम होता है। भारती-युद्धकालमें जो हमारे मतमें वे भगवद्गीताके बादके हैं। श्रीकृष्ण अवतीर्ण हुआ, वह पूर्ण अव- पांचरात्र-मत यद्यपि पीछेसे उत्पन्न तार है और यही नारायणीय श्राख्यानमें इमा तथापि पाणिनिसे भी यह दिखाई देख पड़ता है। शान्तिपर्वके २० व देता है कि श्रीकृष्ण और अर्जुनकी भक्ति अध्यायमें लिखा है कि-"मूलदेव बहुत प्राचीन है। इन दोनोंको नर-नारा- निर्विकार चिदात्मा है और उसे महादेव यण कहनेका सम्प्रदाय बहुत पुराना कहते हैं। जब वह मायासे संवलित होगा । नारायण या वासुदेवार्जुनोंकी होता है तब चिदचिदात्मा भगवान् कार- भक्ति पांचरात्र-मतके पूर्व भी होगी। णात्मा होता है। तीसरी श्रणी तैजस नारायणके आदिदेव होनेकी कल्पना श्रात्मा और चौथी वर्तमान श्रीकृष्ण है बहुत पुरानी होगी और इसी लिए वह जो मूल महादेवका अष्टमांश है।" प्रारम्भके नमनके श्लोकमें आई है। मूलस्थायी महादेवो भगवान् स्वेन भारती-युद्धके बाद वह शीघ्र ही उत्पन्न तेजमा । तत्स्थः सृजति तान भावान् हुई होगी, क्योंकि भारती-युद्ध में इन्हींका . नानारूपान् महामनाः। तुरीयार्धन तस्येम मुख्य पराक्रम और कर्त्तत्व प्रकट होता : विद्धि केशवमच्युत्तम् ॥६॥ है। श्रीविष्णुका या आदि देवका नारायण (शां० २८०) नाम बहुत पुराना है। यहाँ एक बात बत- इसमें जो मत वर्णित है वह अद्भुत लाने योग्य यह है कि प्रत्येक वैदिक कर्मके दिखाई देता है। यह नारायणीय आख्यान- प्रारम्भमें या संध्याके प्रारम्भमें जो भग- के पांचरात्र-मतसे मिन्न और बहुधा वान्के चौबीस नाम कहनेका नियम है, प्राचीन होगा। केवल यह कल्पना पांच- वह सम्भवतः नारायणीय मतके बादका रात्रकी दिखाई देती है कि नर और है, क्योंकि उसमें संकर्षण, वासुदेव, प्रद्युम्न नारायण ऋषि बदरिकाश्रममें तप करते और अनिरुद्ध नाम आये हैं। इसमें वासु- हैं। परन्तु इस बातसे भी आश्चर्य मालूम देवके पूर्व संकर्षणका नाम कैसे पाया होता है कि प्रादि देव नारायण भी घोर है, यह नहीं कहा जा सकता। इसमें भी तप कर रहे हैं, जैसा कि उपर्युक्त नारायणका नाम बिलकुल पहले यानी अध्यायमें एक जगह कहा गया है । चार नामोसे अलग पाया है। अनुशासन इस कठिन तपके विषयमें कहा गया है पर्व के अध्याय १०६ से दिखाई देता है कि नारायण एक पैरसे खड़े होकर हाथ कि केशव, नारायण क्रम महाभारतके | ऊपर उठाकर सांग घेद कहते हैं । भगव.
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महाभारतमीमांसा