पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/५७०

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महाभारतमीमांसा

५४२ ® महाभारतमीमांसा है। तथापि उपनिषदोंमें जिन वेदान्त गीतामें बतलाया गया है। भक्तिमार्म तत्वोंका उपदेश किया गया है, उनका बहुत पुराना तो है, परन्तु पांचरात्र-मार्ग- विस्तार भगवद्गीतामें ही किया है और से कुछ भिन्न और प्राचीन है। पांचरात्र महाभारतमें सुन्दर संवाद और आख्यान तत्वज्ञानके मत कुछ भिन्न हैं और रहस्य- रखे गये हैं जिनमेंसे "देवा अपि मार्गे के समान हैं। महाभारतके नारायसीय मुयति अपदस्य पदैषिण, आदि उपाख्यानसे दिखाई पड़ता है कि महा- कुछ श्लोक वेदान्तमें बार बार आते हैं। भारतके समय ये मत कौन से थे। . भगवद्भक्ति करनेवाले भागवत कहलाते मन्तका व्यास शुकाख्यान बहुत ही मनो- थे और उनका एक सामान्य वर्ग था। हर है और उसके प्रारम्भका "पावका- इस वर्गमें विष्णु और श्रीकृष्ण देवताओं- भ्ययन" नामका ३२१ वा अध्याय पढ़ने योग्य है। को परमेश्वर-स्वरूप मानकर उनकी भक्ति होती थी। परन्तु पांचरात्र इससे थोड़ा (४) पांचरात्र। भिन्न है: और हम नारायणीय आख्यानके अब हम पांचरात्रके मतको ओर आधार पर देखेंगे कि यह मत कैसा था। झुकेंगे । वेदान्तके बाद पांचरात्र ही एक यह नारायणीय आख्यान शान्तिपर्वके महत्वका ज्ञान महाभारतके समयमें ३३४ वें अध्यायसे ३५१वें अध्यायके अन्त- था। हम पहले ही बता चुके हैं कि जब ! तक है। इसके अनन्तर अन्तका उच्छ- ईश्वरकी सगुण-उपासना करनेकी परि. वृत्युपाख्यान शान्ति पर्व में है । अर्थात् पाटी शुरू हुई, तब शिव और विष्णुको नारायणीयाख्यान बहुधा अन्तिम आख्यान अधिक उपासना प्रचलित हुई। वैदिक है और यह शान्ति पर्वका अन्तिम प्रति- कालमें ही यह बात मान्य हो गई थी कि पाद्य विषय है । वह वेदान्त आदि मतोंसे सब वैदिक देवताओंमें विष्णु श्रेष्ठ है। भिन्न और अन्तिम ही माना गया है। उस वैष्णव धर्मका मार्ग धीरे धीरे बढ़ता इस आख्यानका प्रारम्भ ऐसे दुमा गया और महाभारतके काल में उसे पांच- हैः-युधिष्ठिरने प्रश्न किया कि किसी रात्र नाम मिला। इस मतकी असली आश्रमके मनुष्यको यदि मोक्ष-सिद्धि प्राप्त मीव भगवद्गीताने ही डाली थी और यह करना हो तो किस देवताके पूजनसे वह यात सर्वमान्य हुई थी कि श्रीकृष्ण श्री-। उसे मिलेगी ? अर्थात् इसमें यह दिखाई विष्णुका अवतार है । इससे पांचरात्र- देता है कि इसके द्वारा सगुण भक्तिका मतकी मुख्य नीति श्रीकृष्णकी भक्ति ही माहात्म्य बताया है। है। हम पहले ही कह चुके हैं कि भक्ति- इस मतके मूल आधार नारायण हैं। मार्गकी नींव भगवद्गीताने ही डाली है। स्वायंभुव मन्वन्तरमें "सनातन विश्वात्मा परमेश्वरकी भावनाले श्रीकृष्णको भक्ति नारायणसे नर, नारायण, हरि और रुग्ण करनेवाले लोग श्रीकृष्णके समयमें भी : चार मूर्तियाँ उत्पन्न हुई। मरनारायण थे, जिनमें गोपियाँ मुख्य थीं । इनके अषियोंने बदरिकाश्रममें तप किया । अतिरिक्त और भी बहुत लोग थे। यह नारदने वहाँ जाकर उनसे प्रा किया। अनुभवसिद्ध है कि सगुण रूपकी भक्ति उस पर उन्होंने उसे यह पांचराम धर्म करनेवालेको भगवद्भजनसे कुछ और ही सुनाया है। इस धर्मका पालमेवाला पहला मानन्द होता है। इसका महत्व भगवद्- पुरुष उपरिचर राजा वसु था। पहले