- भिन्न मतोका इतिहास । ®
५३१ और वैदिक कर्म भी ब्रह्मके लिए ही बत- इससे यह भी दिखाई देता है कि मुख्यतः खाया गया है । बृहदारण्यके "विधि- इस ऋषिने वेदोंके खण्ड किये। तथापि दिषति यज्ञेन दानेन, आदि वचन यह मानने में कुछ हर्ज नहीं कि इस अपा- प्रसिद्ध हैं। यद्यपि वेदका अर्थ संहिता न्तरतमाने दोनों बातें की । और यह मानना चाहिए कि वेदान्तशास्त्रका प्राध. और वेदान्तका उपनिषत् होता है, तथापि प्रवर्तक ऋषि यही है : फिर वह उप- जान पड़ता है कि महाभारत-कालमें वेद- निषदोंका कर्ता या वक्ता माना जाय वादका अर्थ कर्मवाद और वेदान्तका अर्थ ! अथवा वेदान्तशास्त्र पर इसका पहले श्रीपनिषत् तत्वज्ञान निश्चित हो गया था। कोई सूत्र रहा हो । कदाचित् भगवद्गीता; इस तत्वज्ञानका प्राचार्य अपान्तर- में बताया हुअा ब्रह्मसूत्र इसीका होगा। तमा या प्राचीनगर्भ है, जैसा वेदान्तका मुख्य रहस्य ऊपर प्रा अपान्तरतमाश्चैव वेदाचार्यः स उच्यते। चुका है। वेदवादमें प्रधान माने गये कर्म- प्राचीनगम तमृर्षि प्रवदन्तीह केचन ॥ " : काण्डको पीछे छोड़ तथा इन्द्रादि देव- इस वाक्यमें कहा है, जिसका उल्लेख नाओं और स्वर्गको तुच्छ समझकर परा- पहले हो चुका है (शां० अ० ३४६ )। विद्या अर्थात् ब्रह्मज्ञान विद्या उपनिषदोंमें सत्वज्ञानके विषयमें इस ऋषिका उल्लेख , आग बढी। उससे सारा जगत् पैदा है इसलिए यहाँ वेद शब्दका अर्थ वेदान्त होता है, उसी में रहता है और उसीमें ही है। और, वह लीन हो जाता है । अर्थात् सब जगत् सांख्य योगः पांचरात्रं वेदाः पाशुपतं नथा। वही है। "सर्व खल्विदं ब्रह्म" यह झानान्येतानि राजर्षे विद्धि नानामतानि वै॥ उपनिषद्वाक्य इसी सिद्धान्तका प्रसिद्ध यह श्लोक उपर्युक्त श्लोकके बाद ही प्रतिपादक है। हमें यह देखना है कि है। इसमें भी वेद शब्द वेदान्तवाचक : इस सिद्धान्तका प्रवाह उपनिषद्से शुरू है। तथापि आगेकी बात ध्यानमें रखनेसे होकर भारती-कालतक कैसा बहता गया। शङ्का उपस्थित होती है। अपान्तरतमाकी पहले उसका प्रवाह भगवद्गीतामें बहता कथा इसी अध्यायमें है। वह यह है:- हुश्रा दिखाई देता है। उपनिषत्-तत्वज्ञान “नारायणने भोः कहकर पुकारा। उसे भगवद्गीताको मान्य है और उसमें इसीके सुनकर सरस्वतीसे पैदा हुआ अपान्तर ' सिद्धान्तका प्रतिपादन विशेष रीतिसे नामका पुत्र सम्मुख प्रा खड़ा हुआ । किया गया है। तथापि कुछ बातोंमें भग- नारायणने उसे वेदकी व्याख्या करनेको वद्गीता उपनिषदोंसे बढ़ गई है। ये बातें कहा । आशाके अनुसार उसने स्वायंभुव । कोनसी हैं उन पर विचार करना है। मन्वन्तरमें वेदोंके भाग किये। तब भग-: वेदान्तमें ब्रह्म, अध्यात्म, अधिदेव, वान् हरिने उसे वर प्रदान किया कि नथा अधिभूत शब्द आते हैं। गीतामें वैवस्वत मन्वन्तरमें भी वेदका प्रवर्तक तूही। इनकी व्याख्या दी गई है। वह बहुधा होगा। तेरे वंशमें कौरव पैदा होंगे, उनकी उपनिषद्के विवेचनके अनुसार है । आपसमें फूट होगी और वे संहारके परन्तु कुछ बातें ऐसी हैं जो उपनिषदें लिए उद्युक्त होंगे, तब तू अपने तपोबल- नहीं हैं और कुछ ऐसी हैं जो आगे बड़- से वेदोंके विभाग करेगा । वशिष्ठके कुल- गई हैं । गीताके - वें अध्यायमें यह विषद में पराशर ऋषिसे तेरा जन्म होगा।" है जिसका हम सूक्ष्म विचार करेंगे।