- महाभारतके कर्ता र
D - · इसमें सन्देह नहीं कि कवित्व-प्रद- उदाहरण दिये जा सकते हैं। प्राविपर्वमें र्शनके मित्र भिन्न प्रसङ्गोका समावेश कर- आस्तिककी कथा दो बार आई है; और के सौतिने स्थान स्थान पर महाभारतका जब दूसरी बार इस कथाका वर्णन किया विस्तार कर दिया है। स्त्रीपर्व और विराट| गया है तो वह पहिलीको अपेक्षा बहुत पर्वमें तो यह बात स्पष्ट रूपसे दिखाई देती अधिक बढ़ गई है। काश्यप और है। अन्य पोंमें भी, विशेषतः युद्ध पर्व-तक्षककी कथा भी दुबारा दी गई है। में, इस प्रकार जो प्रसङ्ग सम्मिलित किये वनपर्वमें तीर्थीका वर्णन दो बार किया गये हैं वे कुछ कम नहीं हैं। साराँश यह गया है। सम्भव है कि वैशम्पायनके है कि, (१) धर्ममनोंकी एकता, (२) कथा- समय जिन तीर्थोकी जानकारी थी, उनकी संग्रह, (३) शान-संग्रह, और (४) धर्म अपेक्षा कुछ अधिक तीर्थ स्थान सौतिके तथा नीतिके उद्देशसे सौतिने भारत में समय प्रसिद्ध हो गये होंगे, क्योंकि उसके अनेक नये प्रसङ्गोको सम्मिलित करके ममयमें आर्योकी व्याप्ति दक्षिणकी ओर उसे बहुत अच्छा स्वरूप दे दिया है और बहुत अधिक हो गई थी। इस पुनरुक्ति- सनातनधर्मकी रक्षा तथा दृढ़ताके लिये का स्वरूप प्रायः यह है-पूर्व कथाओंको अत्यन्त प्रशंसनीय प्रयत्न किया है। कवित्व- कुछ अधिक विस्तारसे कहने के लिये जन- प्रसङ्ग साधकर सौतिने इस ग्रन्थको मंजय प्रार्थना करते हैं और उसके अनु- सर्वोत्तम काव्य बनाया है। परन्तु इसीके सार वही कथा वैशम्पायन फिर सुनाते साथ साथ यह भी स्वीकार करना पड़ता है। परन्तु कहीं कहीं तो यह स्वरूप भी है कि सौतिने जो ऐसे उपाण्यान जोड़ नहीं देख पड़ता। उदाहरणार्थ, अभिमन्यु- कर ग्रन्थका विस्तार किया है उससे के वध-प्रसङ्गमें शोक-सान्त्वनके लिये महाभारतको कुछ बातों में रमणीय स्वरूप व्यासजीने युधिष्ठिरको षोड़शराजीय प्राप्त नहीं हुआ, बल्कि कुछ अंशोंमें उसे श्रान्यान सुनाया है और उसी श्राख्यान गौणता प्राप्त हो गई है । इसलिये उन का वर्णन कृष्णने युधिष्टिरमे शान्ति- बानों का भी विचार श्रावश्यक है जो पर्वमें फिर कगया है। ऐसी दशामें यह गौणता उत्पन्न करनेवाली हैं। पुनरुक्ति अक्षम्य है । (६) पुनरुक्ति। (७) अनुकरण । अनेक प्रसङ्गोंको पुनरुक्तिसे ग्रन्थका : दुसरे प्रकारका दोष अनुकरण है। विस्तार बढ़ गया है। किसी विषयको किमी मनोहर प्रसङ्गको देखकर दूसरे पाठकोंको बार बार समझानेके लिये कविकी प्रवृत्ति हुश्रा करती है कि मैं जब उसकी पुनरुक्ति की जाती है, तब भी उसी प्रकार किसी अन्य प्रसङ्गका नो वह प्रशंसनीय हुआ करती है: परन्तु वर्णन करूं । उदाहरणार्थ, यह बात प्रसिद्ध जब ऐसा नहीं होता, तब पुनरुक्तिका है कि कालिदासके सुन्दर मेघदूत काव्य- दोष पाठकोंके मनमें खटकने लगता है। के अनन्तर अन्य कवियोंने हंसदूत आदि ऐसी पनाक्ति इस ग्रन्थमें प्रायः सर्वत्र कुछ काव्योंकीरचना की थी। इसी प्रकार- पाई जाती है। कहीं कहीं तो यह पुनरुक्ति,' के अनुकरणकी इच्छासे व्यास-वर्णित ग्रन्थका अधिकांश भाग हो जाने पर, भारतके कई प्रसङ्गोका अनुकरण सौतिने बीच में ही देख पड़ती है। इसके अनेक किया है। इसका मुख्य उदाहरण वन-