पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/५४९

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® मिन्न मनोका इतिहास । 8 ५२१ इस मतका प्रथम प्रतिपादन स्वयं भग- पहली सीढ़ी होगी। प्रथम विवेक, प्रकृति वारीताने किया; परन्तु जब इस श्लोकके और पुरुष होनेके कारण सांख्योने जड़, पहले ही कहा गया है कि 'यह विचार चेतन प्रादि सम्पूर्ण सृष्टि पृथ्वीमें शामिल पहले ऋषियोंने ब्रह्मसूत्रमें किया है' तब की और पुरुषको सुख-दुःखसे भिन्न और पैसा नहीं कह सकते। यदि ब्रह्मसूत्रका अलिप्त माना। जब सांख्य पुरुषको भिन्न मर्थ उपनिषद् लिया जाय तो उसमें मानकर प्रकृतिका विशेष विचार करने क्षेत्र क्षेत्र विचार गर्भित है। वर्णन स्पष्ट लगे, तब उन्हें सृष्टिका क्रम अधिकाधिक नहीं है और वहाँ इस श्लोकमें बताये हुए मानना पड़ा। ऐतिहासिक दृष्टिसे यह तत्व भी नहीं हैं। इस श्लोक न तो इन्हें कहने में कोई हर्ज नहीं कि विचारकी तत्व ही कहा गया है, और न यही कहा यह वृद्धि भिन्न भिन्न सांख्य तत्वज्ञानियों- गया है कि यह विचार सांख्योंका है। ने धीरे धीरे की और महाभारतके समय- यह बात भी ध्यान देने योग्य है। यदि में चौबीस नवों में पूर्ण हुई । परन्तु आश्चर्य यह सांख्य मत होता, तो भगवद्गीतामें । यह है कि उन्होंने इस विभागमें प्रकृति- उसका वैसा ही उल्लेख किया गया होता। का अन्तर्भाव कैसा किया ! क्योंकि प्रकृति यह नहीं माना जा सकता कि संघात कोई निराला तत्व नहीं रह जाता, वह पदार्थ या तत्व मनका ही धर्म है। इच्छा, उसीका आगेका एक विभाग है । यही द्वेष, सुख, दुःख तथा धृति मनमें अन्तर्भूत बात महत् और अहंकारके विषयमें कही होगी परन्तु संघात और चेतना बहुधा जा सकती है : इतना ही नहीं, पंच सूक्ष्म नहीं होगी । तात्पर्य, यहाँ यह बात बतला भूतोंकी भी कही जा सकती है। अन्तमें देने योग्य है कि सांख्योंके मूल १७ तन्यो- यही मानना होगा कि ये तत्व केवल से भी अधिक विचार भगवनीतामें हुआ सीढ़ियाँ हैं। है. और, इस विचार-प्रणालीसे कदा- सांख्यके सिद्धान्तकी वृद्धि के साथ चित् सांख्योंके मूल १७ तत्वोंके पीछेसे ही, विदित होता है कि, तत्वोंके सम्बन्ध- चौबीस तन्ध हुए होंगे। में प्रारम्नमें बड़ा ही मतभेद होगा। सांल्योंके सत्रह तत्व कौनसे थे, पुनः शान्तिपर्वके ३१८ व अध्यायमें सांख्य बताना ठीक होगा। भीष्मस्तवमें मतके प्राचार्य जैगीषव्य, असित, देवल, यं त्रिधात्मानमात्मस्थं पराशर, वार्षगण्य, गार्ग्य, आसुरी, सन- वृतं षोड़शभिर्गुणैः । त्कुमार श्रादिका वर्णन है। अन्यत्र ऐसा प्राः सप्तदश साख्या- वर्णन है कि कपिल इनमें सबसे प्राचीन स्तस्मै सांख्यात्मने नमः ॥ है; और आसुरी उसका शिष्य तथा पंच- यह श्लोक है। इसमें पंचमहाभूत, शिख प्रशिष्य अर्थात् प्रासुरीका शिष्य दशेन्द्रिय और मन, यही स्पष्ट षोड़श ! था। महाभारत-कालमें सांख्य तत्ववेत्ता. गुण हैं। ये सब मिलकर प्रकृति होती की दृष्टिसे पंचशिखका नाम बहुत प्रसिद्ध है। प्रकृति हमें जड़ और चेतन दिखाई था। वर्तमानमें भी सांख्यज्ञानमें पंचशिख. देती है और इनका पुनः पृथक्करण किया को प्राचार्य मानते हैं । शान्तिपर्वके जाय तो जड़के पंचमहाभूत और चेतन- अध्याय २७५ में श्रसिद और देवलका की ग्यारह इन्द्रियाँ यह सहज विभाग संवाद दिया है, और उसमें बहुत थोड़े होता है । यही सांख्योंके नन्वज्ञानकी तत्व और वे भी भिन्न भिन्न बताये गये