पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/५४५

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ॐ भिन्न मतोका इतिहास। * - भिन्न मतोंका इतिहास । गीताके बादके हैं और अनुस्मृति तथा सत्रहवाँ प्रकरण। शान्ति पर्वका मुख्य भाग सौतिके समय- का है । इस अनुमानका उपयोग कर हम पहले सांख्य-मतका ऐतिहासिक ... विचार करेंगे। (१) सांख्य मत। समष्टि-रूपसे इस विषयका विवेचन सब मतोंमें सांख्य मत बहुत प्राचीन हो गया, कि परमेश्वरकी प्राप्तिक है। किसी मतका निर्देष करते समय भिन्न भिन्न मार्ग किस प्रकार उत्पन्न हुए। सांख्यका नाम महाभारतमें पहले प्राता अब प्रश्न यह है कि प्रत्येक मार्गकी उन्नति । है; परन्तु यह मान लेनेमें कोई आपत्ति यावृद्धि किस प्रकार हुई। इसका जो विचार नहीं कि सांख्यकी प्रसिद्धि दशोपनिषत्- ऐतिहासिक रीतिसे महाभारतके श्राधार कालके बाद हुई है। कारण यह है कि पर किया जा सकता है सो अध हम करेंगे। सांख्यका उल्लंख उसमें नहीं है। यह उपनिषद्-कालसे सूत्र-कालतकके हजार बात निर्विवाद प्रतीत होती है कि सांख्य- या दो हजार वर्षोंकी ऐतिहासिक बात मतका प्रवर्तक कोई भिन्न ऋषि था। जिस ग्रन्थसे हमें मालम हो सकती है, वह AM महाभारत ही है । इस समयके नत्व-ज्ञान- के लोटे छोटे ग्रन्थ इस एक ही वृहत् को सांख्यका प्रवर्तक कहा गया है और कर जो मत बतलाये गये हैं उनमें कपिल- ग्रन्थमें समाविष्ट और लुप्त हो गये हैं।' अन्य मतोंके प्रवर्तक भिन्न भिन्न देव, इसलिए उक्त विचार करनेके लिए इस ब्रह्मा, विष्णु, महेश बतलाये गये हैं । समय हमारे पास महाभारतका ही अर्थात् यह मान लिया जा सकता है कि साधन उपलब्ध है । इसी साधनकी सहा- । 'उन मतोंके प्रवर्तक कोई विशिष्ट पुरुष न यतासे हम यह ऐतिहासिक विचार यहाँ थ: व मत धीरे धीरे बढ़ते गये और वे करेंगे। शान्ति पर्वके ३४६वं अध्यायमें व अध्यायम बैदिक मतोसे ही निकले हैं। महाभारतमें कहा है- यही उल्लिखित है कि कपिलका मत सबसे सांख्यं योगाः पांचरात्रं वदाः पाशुपतं तथा। . पुराना है । कपिलका उल्लेख भगवद्गीतामें मानान्येतानिराजविद्धि नानामतानि वै॥ " पाया है। परन्तु यह बात ध्यानमें रखनी तात्पर्य यह है कि सांख्य, यांग, पाश्च- च चाहिए कि वहाँ उसे ऋषि नहीं माना रात्र, वेदान्त और पाशुपत, ये सनातन- है। वहाँ "सिद्धानां कपिलो मुनिः", धर्मके पाँच भिन्न मत महाभारतके समय- में प्रसिद्ध थे। अब यह देखना है कि इन "गंधर्वाणाम् चित्ररथः" यह उल्लेख मिन भिन्न मतोंका इतिहास महाभारत- है। महाभारतमें सिद्ध, गन्धर्व आदि से हमें किस प्रकार मिलता है। हम लोगोंका उल्लेख हमेशा पाता है। सिद्धसे पहले देख चुके हैं कि महाभारतके कुछ तात्पर्य उन्हीं लोगोंका है जिन्होंने केवल भाग बहुत पुराने हैं और कुछ सौतिके तत्व-शानके बल पर परमेश्वरकी प्राप्ति कालतकके हैं। साधारणतः यह माननेमें की हो। इससे सिद्ध होता है कि भग- कोई हर्ज नहीं कि भगवद्गीता पुरानी है। वद्गीताके मतानुसार तन्व-शान द्वारा सनतसुजातीय और भीष्मस्तवराज सिद्ध-पद प्राप्त करनेवाले पहले पुरुष