महाभारतमीमांसा. मोक्ष-प्राप्ति। दुःख भरा है और इसी कारण वे संसार- ईश्वरसे जीवात्माका पूर्ण तादात्म्य ! को छोड़ देने या किसी न किसी प्रकारसे करता ही भारतीय आर्य तत्वज्ञानका : अलित रहनेका उपदेश करते हैं। सांख्य- अन्तिम ध्येय है और इसीका नाम मोक्ष मतवादी हो अथवा योगी हों, वेदान्ती हो है। इस मोक्षका साधन सनत्सुजातीय : अथव नैय्यायिक हो, बौद्ध हो अथवा जैन आख्यानमें यही निश्चित किया गया है। हो, उन सभीके मतमें यही विचार पाया कि, संसार छोड़कर, अरण्यमें जाकर, जाता है कि, इस संसारके सुख मिथ्या है निष्क्रिय बनकर, परमेश्वरका चिन्तन और इसका वैभव क्षणिक है। बुद्धकी तीन करना चाहिए । वेदान्त, सांख्य और योग- बुद्धिमें, एक रोगी मनुष्य, एक बुढा का मोक्षमार्ग प्रायः यही है। ऐसी दशा- मनुष्य, एक मरा हुआ मनुष्य देखते ही में यह प्रश्न उपस्थित होता है कि जो वैराग्य उत्पन्न हो गया। उनके मनमें भरे मनुष्य संसार छोड़कर अरण्यमें नहीं हुए संसारकी सम्पूर्ण वस्तुप्रोके द्वेषको जाता, किन्तु संसारमें रहकर धर्माचरण भड़कानेके लिए, इतनी ही चिनगारीकाफी करके जीवन व्यतीत करता है, उस हुई: और उनकी तीव्र भावना हो गई कि मनुप्यके लिए मोक्ष है या नहीं? जो यह जगत्, जन्म, मृत्यु, जरा और व्याधि- मनुष्य मोक्ष प्राप्त करना चाहता है, उसे के दुःखसे भरा हुआ है। बस, वे घर क्या जंगलमें अवश्य जाना चाहिए ? अथवा छाड़कर निकल गये । मोक्षधर्मके जगत्के सब कौका त्याग करके कया.
- शान्तिपर्वमें, पहले अध्यायमें, जगत्की
जगत्का और अपना सम्बन्ध उसे अवश्य :- नश्वरताका पूर्ण विवेचन किया गया है, तोड़ना चाहिए ? महाभारतमें इस प्रश्नकी और पाठकोंके मनमें जगतके विषयमें चर्चा अनेक स्थानोंमें की गई है, और इस विराग उत्पन्न करनेका अच्छा प्रयत्न प्रश्नका फैसला कभी इस तरफ तो कभी किया गया है। हमारे सब तत्वज्ञानों- उस तरफ़ दिया गया है। शांतिपर्व में का यह मत है कि, जिसे मोक्ष उल्लेख है कि- पानेकी इच्छा हो, उसे पहले वैराम्य कस्यैषा वाग्भवेत्सन्या नास्ति मोक्षो ही चाहिए। हमने पहले इस बातका गृहादिति। (शां० अ० २६६-१०) विचार किया ही है कि योगियोका मत "यह किसका कथन सत्य होगा कि. ! यहाँतक दूर पहुँच गया था कि, इन्द्रियों- घरमें रहनेसे मोक्ष नहीं मिलेगा ? के द्वारा श्रात्माका विषयोसे संसर्ग होना तात्पर्य इस विषयमें भिन्न मतोंका विचार ही बन्धका कारण है और इस प्रकारका करते हुए महाभारत-कालमें यही मत ससग बन्द - संसर्ग बन्द होकर अब मन खिर होगा, विशेष ग्राह्य किया गया है कि घरमें तभी इस बन्धनसे मोक्ष मिलेगा। सांख्यों- रहनेसे मोक्ष नहीं मिलता। का मत तो ऐसा ही है कि, सुख और दुःख आत्माके धर्म नहीं है, किन्तु के वैराग्य और संसार-त्याग। प्रकृतिके धर्म है: और मोक्षका अर्थ यही यह सचमुच ही एक बड़ी विचित्र है कि, यह बात आत्माके निदर्शनमें मानी बात है कि, चार्वाककं अतिरिक्त, और चाहिए: सुख-दुःखसे उसका बिलकुल सब भिन्न भिन्न मतोंके भारतीय आर्य सम्बन्ध नहीं है । प्रकृति-पुरुष-विवेक तत्वज्ञानी वही मानते हैं कि संसारमें यही है। यही एक प्रकारसे संसारका