पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/५३५

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मनुष्यको जब पच्चीस तत्वोंका शान हो पायोंकी तत्व-विवेचक बुद्धिके अकलुषित जाता है, तब वह मोक्ष पाता है। उनका उप विकासका वह एक अप्रतिम फल है। सिर्फ संख्यान ही मोक्षका कारण है। और इस कारण वह अत्यन्त तेजस्वी तथा (भनुगीता अनुशासन प० अध्याय ४६) प्रभावशाली है। महाभारत-कालमें निर्गुण पुरुष-प्रकृति-विवेक भी सांख्योंने बत- उपासना बहुत पीछे हट गई थी और लाया है । सब बातें प्रकृति करती है। सगुण उपासना बढ़ गई थी। इसके जिस समय मनुष्यको यह पूर्ण अनुभव अतिरिक्त भारती तत्वज्ञानका विकास होता है कि मैं प्रकृतिसे भिन्न होकर कितनी ही शताब्दियोतक भिन्न भिन्न भकर्ता हूँ, उस समय जन्म-मरणके फेरे । दिशाभोंसे हुआथा, और परस्पर विरोधी से वह मुक्त होता है। योगियोंका मत । अनेक तत्वज्ञानोंके सिद्धान्त प्रचलित हो यह है कि आत्माको मन इन्द्रियों के द्वारा गये थे। इस भाँति अन्ध श्रद्धाके भिन्न विषयों में फंसाता है, अतएव इन्द्रियोंका भिन्न भोले-भाले सिद्धान्त भी उपखित अवरोध करके मनको स्वस्थ बैठाकर हो गये थे। इस कारण महाभारतमें तत्व. प्रात्माको विषयापभागसे परावृत्त करनशानकी चचा करनवाल जो भाग है,वे पर मोक्ष मिलता है। और वेदान्तियोंका एक प्रकारसे क्लिष्ट और गढ़ कल्पनाओं मत यह है कि श्रात्मा परब्रह्मका अंश है, और विरोधी वचनोंसे भरे हुए हैं, परन्तु अज्ञानवश वह यह बात भूल जाता तथा भिन्न भिन्न मतोंके विरोधको हटा है; और इस जन्म-मृत्युके चक्रमें पड़ देनेके प्रयत्नसे बहुत ही मिश्रित हो गये जाता है। अज्ञान नष्ट होने पर आत्माका हैं। इस कारण, उपनिषदोंकी तरह, एक यह यथार्थ ज्ञान हो जाता है कि मैं पर ही मतसे और एक ही दिशासे बहती ब्रह्म-स्वरूपी है, तब मनुष्य मुक्त होता है। जानेवाली बुद्धिमत्साकी भारी बादसे अन्य तत्वशानियोंके कया मत हैं, उनका पाठकगण तल्लीन नहीं हो पाते । उप. आगे विचार करेंगे। निषदोंकी भांति परब्रह्म के उच्च वर्णन भी महाभारतमें नहीं है। ब्रह्मक्य होने पर जो परब्रह्म-स्वरूप। अवर्णनीय ब्रह्मानन्द होता है, उसके वर्णन यहाँ वेदान्तके आस्तिक मतमें बत- भी महाभारतमें नहीं हैं। अथवा मुक्ता- लाये हुए परब्रह्मका हमको विशेष विचार वस्थामें केवल ब्रह्मस्वरूपका ध्यान करके, करना चाहिए । परब्रह्मकी कल्पना सब वैर्षायक वासनाओका न्याग करके, भारती पार्योंकी ईश्वर-विषयक कल्प- ब्रह्मानन्दमें मग्न होनेवाले मुनियोंकी दशा- नानोका अत्युच्च स्वरूप है । ईश्वरकी के वर्णन भी महाभारतमें नहीं हैं। फिर कल्पना सब लोगोंमें बहुधा व्यक्त स्वरूप- भी उपनिषदोंका ही प्रकाश महाभारत की, अर्थात् मनुष्यके समान ही रहती पर पड़ा है। भगवद्गीता भी उपनिषद्- है। परन्तु मनुष्यत्वको छोड़कर केवल तुल्य ही है: और उच्च कल्पनामोसे भरी सर्वशक्तिमान् निर्गुण ईश्वरकी कल्पना हुई है । सनत्सुजातीय आल्यानमें भी करना बहुत कठिन काम है। उपनिषदों में कोई कोई वर्णन वक्तृत्वपूर्ण है । उससे परब्रह्मका बहुत ही वक्तत्व-पूर्ण और उच्च ब्रह्मका वर्णन और ब्रह्मसे ऐक्य पानेवाली वर्णन है, जिसका मनुष्यसे अथवा सगुण स्थिनिके सुखका वर्णन हम यहाँ पर स्वरूपसे कुछ भी सम्बन्ध नहीं है। भारती । उदाहरणार्थ लेते हैं। "परब्रह्म जगतका