पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/५१५

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४८७ श्रेष्ठतर और कुछ नहीं है, उस परमात्मा- यं त्रिधात्मानमात्मस्थं वृतं षोडशमिर्गुणैः। को पचीसवाँ तत्व, प्रतिपादनके सुभीतेके प्राहुः सप्तदशं संख्यास्तस्मै सांख्यात्मने नमः।। लिए, मानते हैं । इस प्रकार सांख्य-शास्त्र- इस श्लोकमें यद्यपि यह स्पष्ट नहीं के मत हैं । सांख्य-वेत्ता प्रकृतिको जगत्- । बतलाया है कि परमात्मा सत्रहवाँ कैसे का कारण मानकर स्थूल, सूक्ष्मके क्रमसे है, तथापि सोलह गुण स्पष्टतया बतलाये खोज करते हुए सब प्रपञ्चका चिदात्मा- गये हैं। अर्थात् जैसा कि टीकाकारने में लय करके साक्षात्कारका अनुभव प्राप्त कहा है, ११ इन्द्रियाँ और ५ महाभूत लेने- करते हैं (शांति प०अ० २०६) । इस से परमात्मा सत्रहवाँ होता है । ऐसा प्रकार सांख्य-शास्त्र और वेदान्त-शास्त्रकी तर्क होता है कि, सांख्योकी प्रकृतिमें परिणालिको एक करनेका प्रयत्न महा- सोलह गुण मूलके होंगे, और आगे उनमें भारतने किया है। यही नहीं, बल्कि कई = प्रकृति इत्यादि अविकृत और भी जगह सांख्योंके महत् और योगके महान्- शामिल हो गये होंगे। परन्तु यह सांख्यों- का ब्राह्मा अथवा विरश्चि या हिरण्यगर्भमे की बाढ़ भारत-कालमें ही हुई थी, यह मेल मिलाया गया है। बात निर्विवाद है। भीष्मस्तवराज महा- महानितिच योगेषु विरिचिरिति चाप्यजः। भारतका पुराना भाग है । महाभारतमें सांख्येच पच्यते योगेनामभिर्वहुधात्मकः॥ । । सांख्योंके तत्व प्राचीन कालमें १७ थे, वे ' आगे चलकर २४ हुए। यह बात जैसे (शान्ति पर्व अ० ३०३) पप २० उपर्युक्त विवेचनसे मालूम होती है, उसी M जैसे वेदान्तमें परमात्मासे पुरुषका प्रकार यह भी मालूम होता है कि, इन मेल मिलाया गया है, वैसे ही पुराणोंने , चौबीस तत्वों की एक कल्पना भी प्राचीन उसका मेल शिव और विष्णुसे मिलाने- कालमें निश्चित न थी। कयोंकि अन्यत्र ये का प्रयत्न किया है। चौबीम तत्व भिन्न भिन्न रीतिसे परि- ___ यह नहीं मालूम होता कि सांख्योंके गणित किये हुए हमारी दृष्टि में आते हैं। पच्चीस तत्व एक दम नियत हुए । यह वनपर्वके युधिष्ठिर-व्याध श्राख्यानमें ये माननेके लिए स्थान है कि वे धीरे धीरे तत्व इस प्रकार बतलाये हैं:- नियत हुए । शांति पर्वके भीष्मस्तवराजमें महाभूतानि खं वायुरग्निरापश्च ताश्च भूः । परमेश्वरकी भिन्न भिन्न रीतिसे स्तुति शब्दःस्पर्शश्वरूपं चरसो गन्धश्च तद्गुणाः॥ की गई है। उसमें सांख्य-स्वरूपसे ईश्वर- षष्ठश्च चेतना नाम मन इत्यभिधीमते। स्तुति करते हुए जो परमेश्वर सत्रह सममो तु भवेबुद्धिरहंकारस्ततः परम् ॥ तत्व खरूपमें है, उस परमेश्वरकी स्तुति इन्द्रियाणि च पश्चात्मारजः सत्वंतमस्तथा। की है। "जिस परमेश्वरके विषयमें ज्ञानी इत्येव सप्तदशको राशिरव्यक्तसंक्षकः॥ लोग यह समझते हैं कि वह स्वस्वरूपसे सर्वैरिहेन्द्रियार्थस्तु व्यक्ताव्यक्तः सुसंवृतैः । सदोदित रहते हुए भी जागृति, स्वप्न चतुर्विंशक इव्येष व्यक्ताव्यक्तमयोगुणः॥ और सुषुप्त, तीनों अवस्थाओंमें आत्मा, (वन० अ० २१०) पञ्चमहाभूत और ग्यारह इन्द्रियाँ, इन इन श्लोकोंमें बतलाये हुए चौबीस सोलहोंसे युक्त होनेके कारण सत्रहवाँ है, तत्व ऊपर बतलाये हुए तत्वोंसे भिन्न हैं। उस सांख्य स्वरूपी परमात्माको नमः परन्तु ये तत्व यहाँ सांख्योंके नहीं बत- स्कारहै।" लाये गये हैं । अन्य स्थानों में भी चौबीस