पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/५११

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ॐ तत्वज्ञान। ४८३ % 3D यह सिद्ध हो गया कि आत्मा शरीरसे की कल्पना ऋग्वेदकालमें ही हो चुकी मिन्न है, तब इसका विचार करते हुए थी, और उन्होंने यह सिद्धान्त प्रदर्शित कि यह प्रात्मा कैसा है,प्रात्माका अमरत्व कर दिया था कि, अन्य सब देव उसीके दिखाई पड़ता है। अब, यहाँ यह प्रश्न स्वरूप हैं । उन्होंने यह कल्पना नहीं की खाभाविक हो उठता है कि, जड़ और कि, अन्य देवता उसके नीचे हैं। भारती चेतनसे भिन्न तीसरा कोई न कोई इन दोनों- आर्योकी तत्वविवेचक बुद्धिकी चरम को उत्पन्न करनेवाला परमात्मा अथवा । सीमा उपनिषत्कालमें हुई। वे इस परमेश्वर है या नहीं। आत्मा-सम्बन्धी सिद्धान्तके भी आगे गये कि, अन्य कल्पना जैसे सब कालमें सब देशोंमें उत्पन्न देवता एक परमेश्वरके स्वरूप हैं। पर. हो चुकी है, उसी प्रकार ईश्वर-सम्बन्धी मेश्वर-सम्बन्धी कल्पना मनुष्य-बुद्धिकी कल्पना भी मनुष्यप्राणीके लिए स्वाभाविक : एक अन्यन्त उच्च और उदात्त कल्पना ही है: और ईश्वरमें अनेक प्रकारके है: परन्तु तन्वविवेचक दृष्टिके लिए गुण, शक्ति और ऐश्वर्यकी कल्पना करना ईश्वर सम्बन्धी कल्पना मामों एक बड़ा भी स्वाभाविक है। प्रारम्भमै एंसी कल्पना ' गढ़ प्रश्न ही है। क्योंकि, परमेश्वरकी होना स्वाभाविक है कि देवता अनेक कल्पना सपिके उत्पन्नकर्ता और पालन- हैं। पर्जन्य विद्यत. प्रभंजन, सर्य, काही नातेसंहो सकती है, और इत्यादि नैसर्गिक शक्तियोमें देवताओंकी सब देशो तथा सब लोगोंमें वह ऐसी ही कल्पना साधारण बुद्धिमत्ताके मनुप्यकं पाई जाती है। परन्तु इस कल्पनाका लिए स्वाभावतः ही सूझनेके योग्य है। मेल तात्विक अनुमानसे नहीं किया जा प्राचीन आर्योंकी सब शाखाओंमें इस सकता। इसी कठिनाईके कारण कितने प्रकारके अनेक नैसर्गिक देवताओंकी ही भारतीय तत्वज्ञानियोंने परमेश्वरकी कल्पना पाई जाती है । परन्तु आगे चल- कल्पना छोड़ दी है-अर्थात् वे यह मानते कर ज्यों ज्यों मनुष्यकी बुद्धिमत्ताका है कि ईश्वर नहीं है: अथवा वे इस विकास होता गया, त्यो त्यो अनेक देव- विषयमें विचार ही नहीं करते कि ईश्वर तात्रोंमें सर्वशक्तिमान् एक देव या ईश्वर- है या नहीं। बुद्ध से जब एक बार किसी की कल्पना प्रस्थापित होना अपरिहार्य ' शिष्यने इस पर प्रश्न किया, तब उन्होंने है। पर्शियन लोगोंने प्राचीन कालमें एक उत्तर दिया-"क्या मैंने तुझसे कभी कहा ईश्वरकी कल्पना को थी; परन्तु आश्चर्यकी है कि ईश्वर है ? अथवा क्या कभी यही बात है कि प्रीक लोगोंने वह कल्पना कहा है कि ईश्वर नहीं है ?" तात्पर्य यह नहीं ग्रहण की। हाँ, सब देवोंका राजा है कि बुद्धने ईश्वरके विषयमें मुग्धत्व समझकर उन्होंने ज्योव्ह देवताको अवश्य स्वीकार किया था। कपिल भी निरीश्वर- ही अप्रस्थान दिया था । ज्यू लोगोंने वादी थे, यही मानना पड़ता है। उनके भी प्राचीन कालमें एक ही ईश्वरकी सिद्धान्तमें पुरुष-सम्बन्धी कल्पना कल्पना की थी। परन्तु उस देवताके नीचे जगत्सृष्टिकर्ता परमेश्वरकी कल्पनासे मिन भिन्न देवदूत माने गये थे। यह भिन्न है । उनके मतसे प्रकृति जड़ जगत् सच है कि, प्राचीन कालमें भारती है, जो पुरुषके सानिध्यसे अपने खभाव- . आर्योंने इन्द्र, वरुण, सूर्य, सोम इत्यादि से ही सृष्टि उत्पन्न करती है। ईश्वर- अनेक देवता माने थे । परन्तु एक ईश्वर- विषयक नत्व-विचार शुरू होने पर पहले