ॐ तत्वज्ञान | ॐ ४०१ भिन्न तत्त्वज्ञानियों में मतभेद उत्पन्न हुअा अात्मा कितनी ही वस्तुओका संघात है, और भिन्न भिन्न सिद्धान्त स्थापित हुए। जो एक देहसे दूसरी देहमें भ्रमण करता यही कारण है कि सांख्य, योग, बौद्ध, रहता है। ऐतिहासिक रीतिसे तत्व- जैन, बेदान्त इत्यादि अनेक मत उत्पन्न शानियोंकी परम्पराम कपिल, गौतम, बुद्ध हुए, तथा भारती कालमें उनके वाद- और कणाद प्रसिद्ध है । उन्होंने अपने अपने विवाद, विरोध, झगड़े और परस्पर एक सिद्धान्त इसी क्रमसे प्रतिपादित किये हैं। दूसरेको खण्डन करनेके प्रयत्न प्रारम्भ परन्तु उनके मूल ग्रन्थ उपलब्ध नहीं हैं। हुए । जैसा कि हमने पहले कहा है, महा- महाभारतमें कपिलके अतिरिक्त दूसरोंका भारतने प्राचीन कालमें यही सबसे बड़ा नाम भी नहीं पाया है। तथापि महा. काम किया कि, यह विरोध निकाल डाला भारतसे यह मालूम हो जाता है कि उनके और ये झगड़े मिटा दिये। मत क्या थे: और यह बात परस्पर तुलना- से पतलाई गई है कि सनातनधर्मके तत्व- आत्मा एक है या अनेक। शानके सिद्धान्त क्या थे। सम्पूर्ण आस्तिक- सबसे प्राचीन मत कपिल ऋषिका वादी तत्वज्ञानियोंका यह मत है कि, यह था कि पुरुष और प्रकृति, ये दो प्रत्येक शरीरमें जो आत्मा है वह कुछ वस्तुएं, अर्थात् चेतन आत्मा और जड़ भिन्न नहीं है, किन्तु सब जगह एक ही पंचमहाभूत या देह, ये दो अलग वस्तुएँ प्रात्मा व्यापक रूपसे भरा हुआ है । यही हैं। पुरुष स्वतंत्र, अवर्णनीय और अक्रिय कारण है कि कणाद, गौतम अथवा बुद्ध है। वह प्रकृतिकी और सिर्फ देखता रहता के मत नास्तिक मतके समान त्याज्य माने है. और उसके देखनेसे प्रकृतिम माग गये हैं। उपर्युक्त जनक-पंचशिख-संवादमें क्रियाएँ, विकार, नथा भावना और विचार | बोद्ध मतका प्रत्यक्ष नो नहीं, किन्तु अप्रत्यक्ष उत्पन्न होते हैं । गौतम और कणाद भारत. रीतिसे खंडन किया हुआ जान पड़ता वर्षके परमाणुवादके मुख्य स्थापनकर्ता . है । "कुछ लोग यह मानते हैं कि आत्मा हैं। इनके भी सिद्धान्त महाभारत कालमें ' इन अठारह पदार्थोका संघ.त है, यथा- प्रचलित हो गये थे। इनके मतानुसार अविद्या, संस्कार, विज्ञान, नाम, रूप, जीवात्मा देहसे भिन्न और अणुपरिमाण । षडायतन (देह), स्पर्श, वेदना, तृष्णा, है। ये जीवात्मा असंख्य और अमर हैं। उपादान, भव, जाति, जरा, मरण, शोक, प्रत्येक जीवात्मा भिन्न है, जो एक शरीरसे परिवेदना, दुःख और दौर्मनस्य । यही दूसरे शरीरमें चला जाता है। अर्थात्, संघात बार बार जन्म लेता रहता है।" जीवमें संसारित्व है। जिस प्रकार हमारे परन्तु यह कल्पना भूलसे भरी हुई है। देशमें गौतम और कणाद परमाणुवादी क्योंकि अविद्या एक क्षेत्र है और पहलेके हैं, उसी प्रकार प्रीस देशके तत्ववेत्ता : किये हुए कर्म फिर उसमें बोनेके बीज हैं, ल्यूसिपस और डिमाक्रिटस भी अणुवादी इत्यादि बुद्ध के मतका यहाँ खंडन किया थे। उनका भी यही मत था कि, जिस गया है । यह सब यहाँ बतलानेकी भाव- प्रकार जड़-सृष्टिके असंख्य परमाणु हैं, श्यकता नहीं। बौद्धोंका मत उस समय उसो प्रकार प्रात्माके भी भिन्न भिन्न भी पूर्णतया स्थापित नहीं हुआ था। और असंख्य परमाणु हैं, जो कि शरीरमें पैठते महाभारतके बाद तो पादरायणके वेदान्त- और बाहर निकलते हैं। बौद्धमतानुसार ' सूत्रोंमें बौद्ध मनका पूर्णतया खंडन किया ६१
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