- पहले कह चुके हैं, नास्तिक अथवा सांख्य ऐसा जवाब दिया है-"जब कि मनुष्यके अथवा योग इत्यादि तत्वशानोंका जो मरने पर किसी प्रकारका भी कर्म नहीं सबसे प्राचीन ग्रन्थ, इस समय उपलब्ध होता, तब यह निश्चयपूर्वक सिद्ध होता है, वह महाभारत ही है। इस कारण कहीं है कि, महाभूतोंसे कोई न कोई एक भिन्न कहीं लोकोंका अर्थ समझने में कठिनाई पदार्थ देहमें अवश्य है। क्योंकि प्राणीके पड़ती है। उपर्युक्त अध्यायमें ये श्लोक है:- मरने पर पञ्चमहाभूत पहलेकी भाँति ही नाम्यो जीवः शरीरस्य शरीरमें शेष रहते हैं। फिर श्वासोच्छा- नास्तिकामा मते स्थितः । सादि बन्द कैसे हो जाते हैं ? ऐच्छिक रेतौ वटकणीकायां । व्यापार बन्द क्यों हो जाते है ? ऐसी घृतपाकाधिषासनम् ॥ दशामें चैतन्यका देहसे भिन्न होना अवश्य जातिः स्मृतिरयस्कान्तः निश्चित है। इसके अतिरिक्त, यह चैतन्य म्बुभक्षणम । अचेतन जड़से उत्पन्न नहीं हो सकता। प्रेत्यभूतात्ययश्चैव क्योंकि जब कारणोंका स्वभाव जड़ है, देवताद्यपयाचनम ॥ । तब कार्यमें भी वैसी ही जड़ता पानी मृते कर्मनिवृत्तिश्च • चाहिए। अमूर्त और मूर्तका मेल हो प्रमाणमिति निश्चयः । ' नहीं सकता।" इसी बातको भिन्न शब्दों- अमूर्तस्यहि मूर्तेन में इस प्रकार कह सकते हैं कि, चाहे सामान्यं नोपपद्यते॥ । पचास अथवा हजार जड़ वस्तुएँ एकत्र इन श्लोकोंमें नास्तिकोंका मत-प्रदर्शन की जायँ, परन्तु उनसे जो कुछ उत्पन्न और उसका खण्डन भी है। नास्तिक होगा, वह जड़ ही वस्तु होगी। चेतन कहते हैं-"जैसे वटके छोटे बीचमें बड़ा वस्तु उत्पन्न नहीं होगी, यह स्पष्ट है। वटवृक्ष उत्पन्न करने की शक्ति है, उसी. जो तत्वज्ञानी शरीरसे भिन्न चैतन्य प्रकार रेतमें पुरुष निर्माण करनेकी शक्ति को मानते हैं, उनको तर्कपरम्परा सदैव है। जैसे गौके द्वारा खाये जाने पर घास- ऐसी ही होती है। ग्रीक देशका तत्ववेत्ता से घी उत्पन्न होता है, अथवा भिन्न भिन्न प्लोटीयस् नूतन-प्लेटो-मतवादी था। उसने परिमाणसे कुछ पदार्थ एकत्र करनेसे, : इस बातको सिद्ध करते हुए कि आत्मा उनसे अधिवासन अर्थात् सुवास अथवा शरीरसे भिन्न है-वह शरीरका समवाय मादकता उत्पन्न होती है, उसी प्रकार अथवा कार्य या व्यापार नहीं है-कहा खार तत्व एक जगह होनेसे, उनसे मन, : है:-"चार महाभूतोंको एकत्र करनेसे बुद्धि, अहङ्कार इत्यादि बातें दिखाई देती जीव नहीं उत्पन्न हो सकता, क्योंकि हैं। जैसे अयस्कान्त अर्थात् लोहचुम्बक किसी एक जड़ पदार्थमें जीव नहीं लोहेको खींच लेता है, अथवा सूर्यकान्त है। इसलिए ऐसे पदार्थोके चाहे जितने मणि उष्णता उत्पन्न करता है, उसी प्रकार समूह एकत्र किये जायँ, तथापि उनले चार महाभूतोंके संयोगले विशिष्ट शक्ति जीव नहीं उत्पन्न हो सकता। इसी भाँति, उत्पन्न होती है ।” (यहाँ चार महाभूतो- जो बुद्धिरहित हैं उनसे बुद्धि उत्पन्न नहीं का उल्लेख होनेसे जान पड़ता है कि, हो सकती। ऐसी दशामें, जीवका उत्पन्न नास्तिकोंके मतमें पञ्चमहाभूत नहीं हैं, करनेवाला कोई न कोई, जड़ वस्तुले किन्तु चार ही हैं। इस पर पञ्चशिखने भिन्न और श्रेष्ठ अवश्य होना चाहिए।
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