- धर्म । ॐ
४७३ है। प्राचीन समयमें मन्त्रोंके द्वारा प्रेतको तिलाञ्जलि देनेके लिए गढ़ा पर गये, तब जलानेकी विधि इस संस्कार में थी । तिलाञ्जलि देनेके लिए वहाँ समस्त स्त्रियों- मुख्यतः, प्रेतको समारंभके साथ ले जाने के भी जानेका वर्णन है। और मृतककी अग्निको आगे करके उसी प्राचीन समयमें अशौच अर्थात् मरने अग्निसे उसको जलानेकी विधि थी । और उत्पन्न होनेके विषयमें सूतक मानने- महाभारतके स्त्रीपर्वमें युद्ध के पश्चात् रण- की विधिभीथी । इसकाप्रमाण यह वर्णन में काम आये हुए अनेक मुर्दोके अग्नि- है कि जो लड़ाई में मारे जायँ उनका सूतक संस्कार होनेका वर्णन है । परन्तु यह न मानना चाहिए । यद्यपि अशौच-विष- सम्भव नहीं कि एसे रणाङ्गणमें कोसोतक यक विस्तृत विवेचन महाभारतमें नहीं फैले हुए और अट्ठारह दिनकी लड़ाईमें है, तथापि एक स्थान पर दस दिनवाली मारे गये लोगोंकी लाशें पाई गई होंगी। मुख्य रीतिका उल्लेख है । शान्तिपर्वके ३५ महाभारतमें एक स्थान पर यह भी कहा वे अध्यायमें कहा है कि अशौच या वृद्धि- गया है कि युद्ध में काम आनेवालेके वालोंके अन्नको, और दस दिन पूरे होने- लिए प्रेत-संस्कारकी आवश्यकता नहीं। से पहले अशीच या वृद्धिवालोंके अन्य अस्तु : भीष्म के अग्नि-संस्कारका वर्णन किसी पदार्थको भक्षण न करना चाहिए।* करना यहाँ अनुचित न होगा-"युधि- | इससे प्रकट है कि आजकलको अशौच- ष्ठिर और विदुरने गायको चिता पर विधि बहुन कुछ महाभारतके समय प्रच- रखा; और रेशमी वस्त्रो तथा पुष्पमालाओं- लित थी । शान्तिपर्व के प्रारम्भमें ही कहा से ढक दिया। फिर युयुत्सुने ऊपर छत्र है कि-"भारती-युद्धके पश्चात् धृत- लगाया। अर्जुन और भीम सफेद चौरी राष्ट्रने और भरत-कुलकी सभी स्त्रियोने करने लगे। नकुल और सहदेवने मोरछल अपने अपने इष्ट-मित्रोंकी उत्तरक्रिया की: (उष्णीष ) लिया। कौरव-स्त्रियाँ उन्हें और अनेक दोषांसे मुक्त होनेके लिए ताड़के पंखे झलकर हवा करने लगीं। पागडु-पुत्र एक महीनेतक नगरके बाहर इसके पश्चात् यथाविधि पितृमेध हुआ। रहे।" प्राप्नो और इष्टोंकी क्रिया कर अग्निमें हवन हुआ । सामगायकाने साम- चुकने पर धर्मराजसे मिलनेके लिए व्यास गान किया। इसके पश्चात् चन्दन काठ प्रभृति महर्षि आये थे। इससे कुछ दिन- और कालागरसे देह छिपाकर युधिष्ठिर तक अशीच माननेकी विधि देख पडती आदिने उसमें अग्नि लगा दी। फिर ध्रत- है। औध्वंदहिक-सम्बन्धसे भिन्न भिन्न राष्ट्र आदि सब लोगोंने अपसव्य होकर दान और श्राद्ध करनेकी विधि थी, इसका उनकी प्रदक्षिणा की। तब, दहन हो चुकने भी उल्लेख महाभारतमें है। पर, वे सब गङ्गा पर गये: वहाँ सबने । जैसा कि पहले लिखा गया है कि उन्हें तिलाञ्जलियाँ दी।” (अनुशासन युद्ध में मारे गये वीरोंका न तो सूतक प०अ० १६८)। इस वर्णनसे देख पड़ता मानना चाहिए और न उनके लिए उत्तर- है कि आजकल प्रायः जैसी विधि है वैसी क्रिया करनेकी आवश्यकता है, वैसा ही महाभारत-कालमें भी थी। सिर्फ स्त्रियों- वचन महाभारत (शान्ति० अ० -४५) का मुर्देके आस-पास खड़े होकर हवा | में है। हिंस्र पशु-पक्षी मुदोको खा जाये, करना कुछ विचित्र जान पड़ता है। अन्य वीरोकी क्रिया कर चुकने पर जब पाण्डव -प्रेतान्नं सतिकान्न च यच किञ्चिदनिर्दशम् । २६ । ६०