पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/४९९

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® धर्म । * ४७१ परन्तु मुख्य बातें वही थीं। (कृच्छ, चान्द्रा- आलिङ्गन करना चाहिए. अथवाजननेन्द्रिय यण श्रादि) तप. या और दान यही काटकर दौड़ते रहकर शरीर त्याग देना तीन रीतियाँ प्रायश्चित्तकी वर्णित हैं। ' चाहिए । इस प्रकार, महापातकों के लिए यही रीतियाँ इस समय भी हैं। ब्रह्महत्या बहुधा देहान्त प्रायश्चित्त बतलाये गये हैं। श्रादि महापातकोंके लिए देहान्त प्रायश्चित्त एक वर्षतक आहार-विहारका त्याग कर बतलाया गया है, तथापि कुछ उनसे देनेसे लियाँ पाप-मुक्त हो जाती है । महा. न्यून भी वर्णित हैं । ब्रह्महत्या करनेवाले- व्रतका आचरण करनेसे अर्थात् एक को हाथमें खप्पर लेकर भिक्षा मांगनी महीने भर पानीतक न पीकर रहनेसे चाहिए, दिनमें एक बार खाना चाहिए, अथवा गुरुके कामके लिए युद्ध में मारे भूमि पर सोना चाहिए और अपना कर्म जानेसे भी पाप-मुक्ति हो जाती है। यह प्रकट करते रहना चाहिए । ऐसा करनेसे बात ध्यान देने योग्य है कि जिस प्रकार वह बारह वर्षमें ब्रह्महत्याके पापसे मुक्त ब्राह्मण सबमें श्रेष्ठ हैं, उसी प्रकार उनका होगा । ब्रह्महत्या करनेवाला शान-सम्पन्न पातक भी अधिक अक्षम्य है, और उनको शस्त्रधारी मनुप्यका निशाना बन जाय, या प्रायश्चित भी विकट करना पड़ता है। यह अग्निमें देह त्याग दे, अथवा वेदका जप नियम बताया गया है कि ब्राह्मणोंका है करता हुआ सौ योजनको तीर्थयात्राको प्रायश्चित्त क्षत्रियोंके लिए, : वैश्योंके लिए, जाय, या ब्राह्मणको सर्वस्व दान कर दे और शूदोंके लिए है। पवित्र देशमें रह- अथवा गो-ब्राह्मणोंकी रक्षा करे, छः वर्षतक कर, मिताहार करके गायत्रीका जप करने- कृच्छ्र-विधि करे अथवा अश्वमेध यज्ञ करे, से भी पापका नाश होता है। प्रायश्चित्त- तो वह पवित्र हो जायगा । दुर्योधनने की एक विधि यह भी है कि दिन भर हज़ारों, लाखों जीवोंकी हत्या कराई थी, खड़ा रहे, रानको मैदानमें सोये, दिन- इसलिए कहा गया है-"अश्वमेध-सहमेण- । रातमें तीन बार स्नान करे और स्त्रियों, पावितुं न समुत्सह ।" युधिष्ठिरसे व्यासने शुद्रों तथा पनितोंके साथ भाषण न करे। इसीके लिए अश्वमेध करवाया था। कहा बौधायन और गौतम आदिके जो धर्मशाल गया है कि विपुल दूध देनेवाली २५ हज़ार थे अथवा इसी प्रकारके अन्य ग्रन्थ थे, गौएँ देनेसे मनुष्य सब पापोंसे मुक्त होता उनसे उल्लिखित प्रायश्चित्त-विधियाँ ली है। यदि एक बार भी मद्य-पान कर ले, तो गई हैं। इन विधियोंका मेल अनेक अंशोंमें प्रायश्चित्त-स्वरूप खुब गरम किया हुआ स्मृतिशास्त्रवाले नियमोंसे मिलता है । मद्य पीनेके लिए कहा गया है। पर्वतकी अणी-मांडव्यकी कथामें यह नियम पाया चोटीसे कद पड़ने अथवा अग्नि-प्रवेश है कि चौदह वर्षकी अवम्यानक अपराध करने या महा-प्रस्थान करनेसे. अथवा 'या पातक नहीं होता। केदार क्षेत्रमें हिमालय पर आरोहण मर्यादां स्थापयाम्यद्य लोके धर्म फलोदयाम्। करनेसे मनुष्य सब पापोंसे मुक्त हो जाता ाचतुर्दशकाद्वर्षान्न भविष्यति पातकम् ॥ है। अगर ब्राह्मणसे मद्य-पानका पातक इस पर टीकाकार की राय यह है- हो जाय तो वृहस्पति-सब करनेके लिए इति पौराणं मतं वस्तुतसूक्तहेतोः कहा है। फिर वह सभामें जा सकता पुण्यपापविभागशान पर्यन्तमेव पापा. है। गुरु-पत्नीके साथ व्यभिचार करने नुत्पत्तिः । तेन पशवर्षाभ्यन्तर एव पालेकोया तो तमलोहमय स्त्रीकी प्रतिमासे दोषोनास्ति ।