धर्म। # ४६५ भोजन, स्नान अथवा पठन करना वर्जित देने में लगता है। उसे वह पातक लगे जो है, उस समय भगवश्चिन्तनके सिवा और बिना यज्ञ-यागके मांस भक्षण करने में, नट- कुछ न करे । यथाशक्ति दान देकर यह-नर्तकोको दान देने में अथवा दिनको स्त्री- साग आदि करना चाहिए ।” अस्तु: गमन करनेमें लगता है ।" भारद्वाजने सदाचारके अनेक नियम इस अध्यायमें कहा-"जिसने चोरी की होवह स्त्रियोंकी, हैं। महाभारतके समय भारती आर्य-गायोंकी और अपने नातेदारोकी दुर्दशा धर्मका कैसा स्वरूप रहा होगा, इसकी पूरी करे: ब्राह्मणको युद्ध में जीतनेका पाप कल्पना करा देने में ये नियम बहुत उप- उसे लगे प्राचार्यका अपमान करके ऋक् योगी होते हैं। इसके सिवा, महाभारतमें और यजुर्वेदके मन्त्र कहनेका पातक अनेक स्थलों पर जो सौगन्द खानेके उसको लगे; अथवा घास जलाकर उस वर्णन हैं, वे भी श्राचारों के नियम समझने- अग्निमें वह हवन करे।" जमदग्निने कहा- में बहुत उपयोगी हैं । इनमेंसे, अनुशासन "जिसने चोरी की हो उसको वह पाप पर्वके १३ वे अध्यायमें जो सप्तऋषियोंकी लगे जो पानीमें पाखाना फिरने या कथा है, वह बड़ी ही मनोरञ्जक है। एक पेशाब करनेसे, गायका वध करनेसे और बार सप्तर्षि अपने नौकर शूद्र और बिना ऋतु-कालके ही स्त्री-गमन करने- उसकी स्त्रीके साथ जङ्गलमें जा रहे थे: ' से लगता है: चोरी करनेवालेको वह इतने में एक जगह खानेके लिए कमल और पार लगे जो स्त्रीकी कमाई खानेसे कमलोके नाल एकत्र करके सरोवरमें अथवा अदले-बदलेका श्रातिथ्य करने उतर. स्नान करके तर्पण करने लगे। : लगता है।" गौतम बोले-"तीन अग्नि फिर किनारे पर श्राकर क्या देखा कि वे छोड़ देने में, सोमरस बेचनेमें अथवा कमलोंके बोझ न जाने क्या हो गये। जिस गाँवमें एक ही कृाँ हो उसमें वहाँ और कोई तो था नहीं, इसलिए शुद्र स्त्रीके पति होकर रहने में जो पातक उन्हें एक दूसरे पर सन्देह हुआ। तब यह लगता है वही पातक लगे।" विश्वामित्रने स्थिर हुआ कि हर एक सौगन्द स्वाय। कहा-“यह पाप लगे जो स्वयं जीवित उस समय अधिने कहा-"जिसने चोरी रहते हुए अपने माँ बाप और सेवकों- की होगी उसे वह पातक लगेगा जो गाय की उपजीविका दूसरोंसे कराने में को लान मारनेमें, सूर्यकी ओर मुंह करके लगता है: अथवा अशुद्ध ब्राह्मलका, लघुशङ्का करनमें और अनध्यायके दिन उन्मत्त धनिकका, या पर-द्रोही किसान- वेद पढ़ने में लगता है।" वसिष्टने कहा- का पातक लगे; अथवा पेटके लिए दास्य "जिसने चोरी की होगी उसे वह पातक करनेका यानी वार्षिक अन्न लेकर नौकरी लगेगा जो कुत्ता पालनेमे, संन्यासी होकर करनेका, राजाकी पुरोहिताई करनेका या कामवासना धारण करने में अथवा शरणा- ऐसे आदमीके यज्ञ करनेका पातक लगे गतको मारनेमें या कन्या बेचकर पेट जिसे यज्ञ-याग करनेका अधिकार नहीं पालने अथवा किसानोंसे द्रव्य प्राप्त करने है।" अरुन्धती बोली-“वह पातक लगे में लगता है " कश्यप बोले-"जिसने जो सासका अपमान करनेसे, पतिको बोरी की हो उसे वह पातक लगे जो, चाहे दुःख देनेसे, और अकेले अपने आप जहाँ और चाहे जो बोलनेमें, दूसरेकी धरो- स्वादिष्ट पदार्थ खा लेनेसे लगता है। वह हर नहीं है' कहने में और झूठी गवाही पातक लगे जो श्राप्तीका अनादर करनेसे, ५६
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