पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/४९

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है महाभारतके कर्ता मर्थन नहीं है कि रावणके मस्तक कटकर (५) पौष्य और पौलोमी उपाख्यान बार बार उत्पन्न हो जाया करते थे और भी, जिन्हें सौतिने प्रारम्भमें जोड़ा है, रावणके गलेमें अमृतका कुण्ड था । इसी प्रकारके हैं । ये बहुत प्राचीन दन्त- प्रस्तु । यहाँ थोडासा विषयान्तर हो गया कथाओंकी बातें हैं और इन्हें संग्रह- है। परन्तु कहनेका तात्पर्य यही है कि वन को दृष्टिसे सौनिने अपने ग्रन्थमें स्थान पर्वका रामोपाख्यान मूल भारतका नहीं दिया है। है, उसे सोतिने मूल वाल्मीकि रामायण- (६) नल और दमयन्तीका पाख्यान । से लिया है। आर्योंकी राष्ट्रीय दन्त-कथाओंमें यह एक (३) शल्यपर्वमें जो सरस्वती-आख्यान अत्यन्त मनोहर पाख्यान है। इस बात-, है वह तो स्पष्ट रूपसे सौतिका मिलाया का निश्चय नहीं किया जा सकता कि यह हुआ है। श्राख्यानका वर्णन इस प्रकार आख्यान मूल महाभारतका है अथवा है। भीम और दुर्योधन दोनों गदा-युद्धके नहीं: परन्तु जब इसकी लम्बाई पर ध्यान लिये तैयार हो गये हैं और भारती युद्ध दिया जाता है, तब प्रतीत होता है कि यह का अत्यन्त महत्त्वका अन्तिम दृश्य प्रारम्भ मूल भारतका न होगा। इस आख्यानमें हो रहा है। इतनमें सरस्वती-यात्रासे लौटवर्णित कथा इतनी सुन्दर, मनोहर और कर बलगम वहाँ आ पहुँचे । वस, गदा- , सुरस है कि उसे महाकवि व्यास-कृत युद्धका वर्णन एक ओर पड़ा रहा और ही कहनेको जी चाहता है। यह भी नहीं जनमेजयके प्रश्न करने पर वैशम्पायन कहा जा सकता कि यह कथा पहले छोटी सरस्वती नदीके महत्त्व और यात्राका होगी। इसमें ऐसा कोई वर्णन नहीं पाया वर्णन करने लगे। इसके लिये स्थान भी : जाता जो मर्यादा, शक्यता और सम्बन्धक कुछ थोड़ा नहीं दिया गया है। युद्ध-वर्णन- परे हो। इस दृष्टिमे तो यही मालूम के समय किये हुए इस विषयान्तरमें होता है कि यह कथा मूल भारतकी होगी। लगभग १६ अध्याय ( ३५ से ५४ तक) यही हाल सावित्री श्राख्यानका है। यह लगा दिये गये हैं और इसीमें दो तीन · अत्यन्त प्राचीन आख्यान मूलभारतमें उपकथाएँ भी आ गई है। यहाँ म्कन्दके ; होगा। इसका विस्तार भी बहुत कम है। अभिषेक और तारकासुरके युद्धका वर्णन · नल और दमयन्तीकी कथाके समान यह है । सम्भव है कि यहाँ सीतिको इस कथा भी अत्यन्त मोहक और उदात सरस्वती-उपाख्यानको आवश्यकता हुई नोतिको पोषक है । इन दोनों पाख्यानोंके हो; क्योंकि जिस सरस्वतीको महिमा सम्बन्धमें निर्णयात्मक दृप्रिसे कुछ भी प्राचीन समयसे हिन्दुस्थानमें बहुत माना नहीं कहा जा सकता । इसमें सन्देह नहीं गयी है उसका वर्णन महाभारतमें कहीं न कि ये दोनों पाख्यान राष्ट्रीय हैं। कहीं अवश्य होना चाहिये था । परन्तु उक्त विवेचनसे प्रकट होगा कि स्थान और प्रसङ्गकी दृष्टिसे देखा जाय तो भारत-इतिहाससे विभिन्न जो दन्तकथाएँ कहना पड़ता है कि इस उपाख्यानको प्रचलित थीं उनको महाभारतमें शामिल यहाँ जोड़नेमें मोतिको सफलता प्राप्त कर देनेका यत्न सौतिने किया है। इसी नहीं हुई। प्रकार व्यास और वैशम्पायनके समयसे. (४) विश्वामित्रके ब्राह्मण होनेका लेकर सौतिके समय तक, भारती इति- आख्यान । हासके ही सम्बन्धमे जो अनेक उन्तकथाएँ