पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/४८४

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महाभारतमीमांसा

% 3D - ४५६ ॐ महाभारतमीमांसा ® वर्याका काम करते हैं, गौएँ पालते हैं, अध्यायमें एक रहस्य-धर्म अथवा गुप्त विधि बनियेकी दूकान रखते हैं या शिल्पका बतलाई गई है कि पिताको दिया हुमा काम (बढ़ईगीरी) करते हैं, अथवा जो पहला पिण्ड पानीमें छोड़ना चाहिए, नाटझकोंका पेशा करते हैं ऐसे ब्राह्मणोंको, दूसरे पिण्डको श्राद्ध करनेवालेकी स्त्री अथवा मित्रका द्रोह करनेवालों, वेदोंका खाय, और तीसरे पिण्डको अग्निमें जला अभ्यास न करनेवालों तथा श द्रा स्त्रीको देना चाहिए। आजकल इस विधिको गृहिणी बनानेवालोंको देव अथवा पैत्र्य , प्रायः कोई नहीं करता। और तो क्या, टोनों कार्यों में ग्रहण न करना चाहिए । लोगोंको यह विधि मालूम ही नहीं। इस यहाँ पर ब्राह्मणोंके पेशोंका जैसा वर्णन विधिका रहस्य बहुधा यह होगा कि श्राद किया गया है, उसके आधार पर कहा करनेवालेकी स्त्री गर्भवती हो और उसके जा सकता है कि बहुत कुछ आजकलकी उदरसे दादा (प्रपिता) जन्म ग्रहण करे। भाँति ही महाभारत-कालमें भी ब्राह्मणोंने यह तो प्रसिद्ध ही है कि दूसरा पिण्ड अपना मुख्य व्यवसाय छोड़कर दूसरे दादाके नामसे दिया जाता है। अमावस्या- व्यवसाय कर लिये थे। महाभारत-कालमें के दिन और भिन्न भिन्न तिथियों एवं श्राद्धकी और एक महत्त्वपूर्ण विधि नक्षत्रोंमें श्राद्ध करनेकी आशा है। थी वह इस जमाने में बन्द हो गई । इस विषयमें तबकी और अबकी परिस्थितिमें भालाकदान आर बालदान । जमीन-आसमानका अन्तर पड़ गया है। इस समय, लोगोंको श्राद्ध के सम्बन्ध महाभारत-कालमें श्राद्धमें मांसानकी में बहुतसी बातोंका ज्ञान है: और माज- आवश्यकता थी। भिन्न भिन्न मांसोंके कल भी-क्या आर्य, क्या अनार्य, क्या त्रैव- भिन्न भिन्न फल मिलनेका वर्णन महा- र्णिक और क्या शुद्र-सभीके यहाँ श्राख भारतमें है। अन्यत्र यह बात लिखी जा किया जाता है। परन्तु महाभारत कालमें चुकी है कि प्राचीन समयमें भारती आर्य आलोकदान और बलिदानकी जो बाल लोग मांस खाते थे । मांस खानेकी रीति थी, उसकी कल्पना वर्तमान समाजमें जबसे भारती आर्योंमें बन्द हुई, तभीसे . बहुत थोड़े लोगोंको होगी। आजकल श्राद्धमें मांसानकी आवश्यकता नहीं ये दोनों विधियाँ प्रायः बन्दसी हो गई हैं। रही। फिर भी इस समय श्राद्ध-भोजनके प्रत्येक गृहस्थको रोज विशेष स्थानों पर लिए जो बड़े (उड़दकी दालके) बनाये जाते दीप रखने पड़ते थे, विशेष स्थान पर हैं, उनसे पता लगता है कि पहले भातके पिण्ड रखने पड़ते थे और विशेष जमानेमें श्राद्ध में मांसान परोसा जाता स्थल पर फूलोंके हार रखने पड़ते थे। यह था। महाभारतकालमें मांस ही परोसा विधि देव, यक्ष और राक्षसोंके समाधान- जाता था। उस समय श्राद्धमें, मांसके के लिए करनी पड़ती थी। उदाहरणार्थ:- एवजमें बड़े नहीं बनाये जाते थे। पहाड़ अथवा जङ्गलमें धोखेके स्थान पर, श्राद्धमें ब्राह्मणोंको भोजन देनेके सिवा, इसी तरह मन्दिरोंमें और चौराहों पर, पितरों के लिए पिण्डदान करनेकी विधि प्रति दिन पालोक या दीप जलाने पड़ते भी होती है ।महाभारतमें इसका भी उल्लेख थे और यक्ष,राक्षस तथा देवतामोंके लिए विस्तारसे है। यहाँ पर लिखने योग्य एक बलि देने पड़ते थे। ये बलि भिन्न भिन्न बात यह है कि अनुशासन पर्वके १२५वं पदाथोंके होते थे। देवताओंके लिए दूध