पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/४८१

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
  • धर्म। *

४५३ देव। यह कल्पना स्पष्ट देख पड़नी है गया है कि सहस्त्रार्जुनको दत्तात्रेयक कि महाभारतमें जहाँ जहाँ मनुष्योंका प्रसादसे एक विमान प्राप्त हुआ था। भयङ्कर संहार हुआ है, वहीं पर शिवका दत्तात्रेय प्रसादेन विमानं काञ्चनं प्रथा । वर्णन आया है। उदाहरणार्थ,-अश्व- । ऐश्वयं सर्वभूतेषु पृथिव्यां पृथिवीपते । स्थामाने रातको हमला करके जब । शान्तिपर्वके ४६ वे अध्यायमें यही हजारों प्राणियोंका मंहार किया; उन कथा दुबारा कही गई है। इसके अति- समय शिविरमें घुसनेके पूर्व उसने, आरा- रिक्त अनुशासन पर्वके १ व अध्यायमै धना करके शङ्करको सन्तुष्ट कर लिया वर्णन किया गया है कि दत्तात्रेय अत्रिके था। इसी प्रकार, जगत्की रक्षा करनेके पुत्र हैं। परन्तु महाभारतमें दत्तात्रेयके लिए विष्णुकी पूजा होनेका उल्लेख पाया जन्मकी कथा नहीं है। दत्तात्रय देवता जाता है। महाभारतमें वर्णन है कि ब्रह्मा, वैदिक न हो तो भी ब्रह्मा, विष्णु और विष्णु और महेश तीनों देवता जगत्- महेश इन तीन वैदिक देवताओंसे ही के तीन कामों-उत्पत्ति, पालन और निर्मित है । तब उसे वैदिक देवता मानने- नाश-पर नियत हैं । इन तीनोंका में कोई क्षति नहीं। एकीकरण परब्रह्ममें किया गया है। स्कन्द । ___ यो सृजद्दक्षिणादङ्गात् ब्रह्माणं लोक- महाभारतमें स्कन्द देवताका बहुत सम्भवम् । वामाङ्काश्च तथा विष्णुं लोक- कुछ वर्णन है। स्कन्द देवता भी वैदिक रक्षार्थमीश्वरम् ॥ युगान्ते चैव सम्प्राने नहीं है। यह देवता शिवकी संहार-शक्ति- रुद्रमीशोऽसृजत्प्रभुः ॥ का अधिष्ठाता है और देवताओंकी समूची (अनुशासन अ०१४) सेनाका सेनानायक है। स्कन्द, शिवका इस अध्यायमें श्रीकृष्णने उपमन्युका पुत्र है। आजकलकी अपेक्षा महाभारत- पाख्यान कहते हुए उपमन्युके मुखसे । कालमें स्कन्दको भक्ति विशेष देख पड़ती शङ्करको जो स्तुति कराई है उसमें उल्लिखित है। स्कन्दका वर्णन और उसकी उत्पत्ति वर्णन पाया है। यहाँ पर शङ्करको मुख्य महाभारतमें दो स्थानों पर-वनपर्वके देवता मान लिया है। इसमें परब्रह्मके २३२ वें अध्यायमें और अनुशासन पर्वके तीन स्वरूपोंका वर्णन है। अर्थात् इसमें ८४-८५ अध्यायमें है। स्कन्दकी उत्पत्ति- त्रिमूर्तिकी कल्पना यों की गई है कि के सम्बन्धमें कालिदासने 'कुमारसम्भव' मध्यभागमें शङ्कर, उनके दाहने ओर ब्रह्मा महाकाव्य बनाया है। उसमें वैसा ही और बाएँ ओर विष्णु हैं । यह नहीं कहा वर्णन है जैसा कि अनुशासन पर्वमें है। जा सकता कि यह कल्पना सदैव ऐसी वनपर्वमें किया हुआ वर्णन बहुत कुछ ही की हुई होती है अथवा नहीं; परन्तु भिन्न है। उसमें लिखा है कि स्कन्द शिव त्रिमूर्ति बहुधा शङ्करकी मूर्ति मानी जाती और पार्वतीका पुत्र नहीं, अग्निका पुत्र है और बीचमें शङ्कर होना चाहिए। है। सप्त महर्षियोंकी पत्नियों को देखकर दत्तात्रेय। अग्निको काम-वासना हुई। तब वह सब इन तीनों देवताओंका समावेश एक काम छोड़कर चिन्तामग्न हो गया । उस देवतामे अर्थात् दत्तात्रेयमें होता है । इस समय अग्निकी पत्नी स्वाहाने प्रत्येक देवताका वर्णन महाभारतमें दो स्थानों ऋषिकी पत्नी-अर्थात् अरुन्धतीको छोड़- पर है। वनपर्षके ११५वें अध्यायमें कहा कर छः पत्नियों के अलग अलग रूप,