४२८ ® महाभारतमीमांसा पलक हिलनेके समयसे लेकर चतुर्युग, होगा; परन्तु उसका कदाचित थोडासा मन्वन्तर और कल्प नामक अन्तिम काल- रूपान्तर हो गया होगा। यह हम पहले मर्यादातक अर्थात् ब्रह्माके दिनतक आ ही लिख चुके हैं कि उसमें राशि नहीं है। पहुंचे। कालकी यह कल्पना हिन्दुस्तान- इससे प्रकट है कि वह राशिका चलन में उपजी और यहीं बढ़ी । खाल्डियन होनेसे पहलेका अर्थात् ईसवी सन पूर्व लोगों में एक यग अथवा 'सृष्टिवर्ष, । १०० वर्षके पहले का होगा। ४३२००० वर्षका था; परन्तु यह देख उल्लिखित अवतरणमें 'ज्योतिषां च लिया गया कि उससे हमारी कल्पना व्यतिक्रमः' कहा गया है । अर्थात् यह नहीं निकली है। क्योंकि सृष्टिको आयुकी कहा गया है कि गर्गको ग्रहोंकी तिरछी वा करोड वर्षतक पहुँची | गतिका ज्ञान हो गया है। इससे प्रकट है है। यह कल्पना भारती-कालमें ही उत्पन्न कि भारती-युद्ध-कालके लगभग ग्रहोंकी हुई थी । ब्राह्मण-कालमें युगकल्पना दस गतियोंका ज्ञान अधिक न था, पर महा. हजार वर्षसे न्यादा किसी कालके समान भारत-कालमें उसे बहुत कुछ पूर्णता प्राप्त भी क्योंकि उपनिषदोंमें एक, दो, दस हुई थी। सदा नक्षत्रोंकी देख-भाल करने- हजार वर्ष और अधिकका उल्लेख है। वाले भारती आर्योंको यह बात पहले ही भारतीय ज्योतिषियोंने भारतकालमे युगकी मालूम हो गई होगी कि नक्षत्रों में होकर मर्यादा निश्चित करके कल्पकी भी मर्यादा ग्रहोंकी भी गति है । सूर्य-चन्द्र के सिवा, कित कर दी।यह काम बहत करके गर्ग नक्षत्रों में सनार करनेवाले ये ग्रह वध ज्योतिषीने किया होगा । महाभारतमें शुक्र, मङ्गल, गुरु और शनि थे। विख्यात ज्योतिषी गर्ग है । स्पष्ट कहा गया ते पीडयन्भीमसेनं क्रुद्धाः सप्त महारथाः। है कि गर्गने सरस्वती-तीर पर तपश्चर्या प्रजासंहरणे राजन्सोमं सप्तग्रहा इव ॥ करके कालज्ञान प्राप्त किया। (भीम पर्व अध्याय १३०) तत्र गर्गेण वृद्धन तपसा भावितात्मना। इस श्लोकमै चन्द्र के सिवा सात कालज्ञानगतिश्चैव ज्योतिषां च व्यतिक्रमः॥ ग्रह कह गये हैं; तब राहुको अलग उत्पाता दारुणाश्चैव शुभाश्च जनमेजय । ग्रह मानना चाहिए, अथवा यहाँ सप्तग्रह सरस्वत्याःशुभेतीर्थे विदिता वै महात्मना ॥ अलग ही माने जायँ । 'राहुरर्कमुपैति च' (शल्यपर्व) इस वाक्यसे निश्चयपूर्वक देख पड़ता है इससे ज्ञात होता है कि सरस्वतीकं तीर कि महाभारत-कालमें ग्रह रूपमें राहुका पर गर्गने कुरुक्षेत्र में यह युग-पद्धति हुँढ़ परिचय भली भाँति हो गया था। भारती. निकाली। जब कि शक-यूनानियों में यह कालमें गर्गके पहले ही इस बातकी पद्धति नहीं देख पड़ती, तब कहना पड़ता कल्पना रही होगी कि नक्षत्र-चक्रमें होकर है कि यह भारती आर्योंकी ही है और जानेके लिए प्रत्येक ग्रहको कितना समय यह भी प्रकट है कि वह यूनानियोंसे लगता है। ग्रहोंके व्यतिक्रम-सम्बन्धसे पहलेकी होगी । यद्यपि यह नहीं बतलाया गर्गको विशेष जानकारी प्राप्त हो गई जा सकता कि गर्ग कब हुश्रा, तथापि होगी। यह भी अनुमान हो सकता है वह महाभारतसे पहलेका अर्थात् सन् कि गर्गके समयतक सूर्य-चन्द्रके सिवा ईसवीसे ३०० वर्ष पूर्वका है। वर्तमान अन्य ग्रहोंके चक्करकी ठीक कालमर्यादा कालमें प्रसिद्ध, गर्ग-संहिता ग्रन्थ उसीका मालुम न हुई होगी और गर्गको यह
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महाभारतमीमांसा