पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/४५३

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२ ज्योतिर्विषयक ज्ञान । - पूर्ण होता है। मनुस्मृतिमें यही गणना माने जायें, तो युगोंका परिमाण बहुत ही है। और भारतीय ज्योतिःशास्त्रके अाधु- श्रोठा पड़ता है। हजार वर्षका ही कलि. निक ग्रन्थों में भी यही गणना प्रहण की युग माना जाना कदापि सम्भव नहीं। गई है। उनमें इतना और कह दिया है कि ब्राह्मण-कालमें यद्यपि यह निश्चित न था चतुर्युगोंके बारह हजार वर्ष मानवी नहीं, कि भिन्न भिन्न युगोंकी वर्ष-संख्या कितनी देवताओंके वर्ष हैं । मानवी एक वर्ष % ; है, तथापि उस समय यह स्पष्ट माना देवताओका एक दिन: और मनुष्योंके जाता था कि कलियुग दस हजार वर्षसे ३६० वर्ष = देवताओका एक वर्ष ।ज्योतिः- अधिक बड़ा है। अथर्ववेदमें ही, जैसा शास्त्रके मतसे ऐसा ही हिसाब निश्चित कि प्रो० रङ्गाचार्यने दिखलाया है, (E- है। इस हिसाबसे पहला चतुर्युग ४३ २-११) यह वाक्य है-"हम तुम्हारी लाख ३२ हजार मानवी वर्षाका होता है। अवधि सौ वर्ष, दस हजार वर्ष, एक, यह ध्यान देने लायक बात है। दो, तीन, चार युगके बराबर मानते हैं।" कुछ आधुनिक भारतीय विद्वानोकी अर्थात् युगकी अवधि दस हजार वर्षसे राय है कि महाभारत और मनुस्मृतिमें अधिक है । वन पर्वमें चतुर्युगके बारह जो कल्पना है, उससे भारतीय ज्योतिष- हजार वर्ष लिखे हैं । वहाँ पर दिव्य वर्ष कारोंने वह कल्पना बढ़ा दी । अर्थात्, ही अर्थ करना चाहिए । समयके अन- भारती आर्योंकी समझसे महाभारत-न्तन्वके सम्बन्ध भारतीआयौँकी कल्पना कालमें चतुर्युग बारह हजार मानवी इतनी उदान थी कि कलियुगको एक वर्षोंका ही था। परन्तु उल्लिखित विद्वानों- हजार वर्षका समझनेकी सङ्कचित कल्पना का यह मत हमें मान्य नहीं । कलियुग उन्होंने कदापि न की होगी । विशेषतः एक हजार मानवी वर्षोंका ही है, यह उनकी यह कल्पना होना सम्भव नहीं कि कल्पना होना कदापि सम्भव नहीं। देव- : महाभारत-कालनक कलियुगके हजार ताओंका एक दिन मनुष्योंका एक वर्ष । वर्ष पूरे होते जा रहे थे । शान्ति पर्वके है, यह कल्पना बहुत पुरानी है। उत्तग्में ३११ अध्यायमे ज्ञात होता है कि महा- उत्तरध्रुव पर मेरु है; वहाँ छः महीनोंका भारत-कालमें समय-गणनाकी कल्पना दिन और इतने ही महीनोंकी रात होने- कितनी बड़ी हो गई थी। पहले ब्रह्मदेष- का अनुभव है। और, कल्पना यह है कि का एक दिन एक कल्पका ही माना देवता लोग मेरु पर रहते हैं । मनुस्मृति- जाता था: परन्तु इसमें साढ़े सात हजार में कहा गया है कि उत्तरायण और दक्षि- वर्षाका दिन होनेकी कल्पना की गई है। णायन ही देवताओंके दिन-गत हैं। यहाँ मतलब यह कि महाभारत कालमें और पर यह भी लिखा है कि हजार चतुर्युगों-मनुस्मृति-कालमें कलियुग एक हजार दो का ब्रह्माका एक दिन होना है: और मौ दिव्य वर्षाका अर्थात् चार लाख गीतामें स्पष्ट लिखा है कि ब्रह्माकी गत बत्तीस हजार (४३२०००) वर्षोंका उतनी ही बड़ी है। इस गणनासे स्पष्ट माना था। देख पड़ता है कि महाभारत और मनु- शान्तिपर्व (२२१ अ०) में युगोंके वर्ष स्मृति में जो बारह हजार वर्ष बतलाये फिर गिनाये गये हैं। यहाँ टीकामें कृत- गये हैं वे देवताओंके ही वर्ष हैं। वे युगके ४००० वर्ष देवताओंके ठीक बत- मनुष्योंके वर्ष नहीं हैं। यदि मनुष्योंके वर्ष लाये गये हैं: क्योंकि इससे प्रथम देव-