ज्योतिर्विषयक ज्ञान । ४२३ अतुका पहला महीना श्रावण ही माना आर्योको होती थी और इस कारण उन्हें गया है और उसको सलिलागम कहा वर्षकी ठीक ठीक जानकारी प्राप्त हो गई गया है। अर्थात् बरसातका प्रारम्भ ही थी। वर्षके, उत्तरायण और दक्षिणायन कहा है। इससे प्रकट है कि रामायणके दो भाग थे और इन दो भागोंका मध्य- समयमें भी ऋतुएँ, वर्तमान समयसे, बिन्दु अर्थात विषुवका दिन उन्हें मालम एक महीने आगे थी और वर्षा ऋतुके था । महाभारतमें स्पष्टतापूर्वक कहा चार महीने माने जाते थे। इससे रामा- | गया है कि उत्तरायण तो पुण्यकारक यण-महाभारतका समय कोई दो हजार और पवित्र है तथा दक्षिणायन पितरों वर्ष पहले निश्चित होता है। और यमका है। प्राचीन कालमें यह माना सूर्यको उत्तर और दक्षिण गतिसे जाता था कि उत्तरायणमें मृत्यु होने पर ऋतुओका चक्र उत्पन्न होता है । महाभा- ब्रह्मवेत्ता लोग ब्रह्मको प्राप्त होते हैं, और रतके समय यह बात ज्ञात थी । वनपर्वके दक्षिणायनमें योगी मरे तो चन्द्रलोकमें १६३वे अध्यायमें कहा है कि-"सूर्यके जाकर वह फिर लौट आवेगा। भगव- दक्षिण ओर जानेसे शीत उत्पन्न होता द्गीतामें ऐसी धारणाका स्पष्ट उल्लेख है। है और उत्तर ओर लौट आने पर वह अग्निज्योतिरहःशुक्लः षण्मासाउत्तरायणम्। पानीको सोख लेता है। फिर वह पानी तत्र प्रयाता गच्छन्ति ब्रह्म ब्रह्मविदो जनाः॥ छोड़ता है: और तब पृथ्वी पर शस्य । यह श्लोक प्रसिद्ध है। महाभारतमें आदिकी उत्पत्ति करता हुआ दक्षिणकी लिखा है कि शर-पार पर पड़े हुए ओर चला जाता है । इस प्रकार सुखो- भीष्म. दह त्यागनके लिए, उत्तरा- त्पत्तिके लिए कारणीभूत यह महातंजस्वी · यणकी बाट जोह रहे थे । महाभा- सूर्य वृष्टि, वायु और उष्णताके योगसे ' रतके समय उत्तरायण उस समयको प्राणियोंकी अभिवृद्धि करता है ।" कहते थे, जब सूर्य बिलकुल दक्षिण ____ऋतु-चक्रके एक बार घूमनेसे एक दिशामें जाकर वहाँसे लौटने लगता था। वर्ष होता है और वर्षकी कल्पना ऋतों- यह ध्यान देनेकी बात है क्योंकि यह से ही उपजती है। सूर्य की गतिसे ऋतुएँ लिखा है कि सूर्यको उत्तर ओर आते उत्पन्न होती हैं । मूर्य दक्षिणमें या उत्तरमें देखकर युधिष्ठिर, भीष्मके यहाँ जानेके जैसा हो वैसेही ऋतुएँ बदलती है । अर्थात, · लिए चले (अनुशासनं १० १६७)। इससे वर्षको सूर्य पर अवश्य अवलम्बित रहना प्रकट है कि विषुष वृत्त पर सूर्यके आनेसे चाहिए । इस सौर वर्षको ठीक अवधि लंकर उत्तरायण माननेकी प्रथा महा- कितनी है, इसे निश्चित करना महत्त्वका भारत-कालमें न थी। दूसरी बात यह है काम है; परन्तु यह काम कुछ कठिन नहीं कि महाभारत-कालमें, निदान भारती. है। सूर्य जब बिलकुल दक्षिणमें चला युद्ध के समय, उत्तरायण माघ महीने में जाय, तब उस बिन्दुसे अवधिकी गणना हुआ करता था । भीष्मने मरण-समय करते हुए, फिर उस बिन्दु पर दुधारा पर कहा है-"माघोऽयं समनुप्राप्तो सूर्यके आनेका समय देखकर ठीक ठीक मासः सौम्यो युधिष्ठिर ।" अब उत्त. अबधि स्थिर की जा सकती है । इस रायण पौष महीने में होता है। महाभारत- प्रकारकी माप और गणना करनेकी आव- ! कालमें इस बातकी कल्पना न थी कि श्यकता, वार्षिक सत्रके कारण. भारती सूर्य दक्षिणको क्यों जाता है। महाभारत-
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