- ज्योतिर्विषयक ज्ञान । *
- मानते रहे होंगे और कुछ लोग ३६६ ३० दिन = १ महीना दिनोंका सौर वर्ष। इसी कारण, पाण्डवों १२ महीने = १ वर्ष ने तेरह वर्षोंके वनवास और अज्ञात ५ वर्ष = १ युग वासका. शर्त के अनुसार, पालन किया हर एक कला और काष्ठाके लिए अथवा नहीं-इस विषयमें झगड़ा उप-भिन्न भिन्न नाम नहीं है: परन्तु दिन भरके स्थित होने पर भीष्मने इसका फैसला प्रत्येक मुहृर्तके लिए भिन्न भिन्न नाम हैं। करते हुए कहा है कि- महाभारतके समय इन मुहूतोंका पंचमे पंचमे वर्षे द्वौ मासावुपजायतः। सम्बन्ध प्रत्येक धार्मिक कर्मके साथ भला एवमप्यधिका मासाः पंच च द्वादश क्षपाः॥ या बुरा (शुभ-अशुभ) समझा जाता था। प्रयोदशानां वर्षाणां इति में वर्तते मतिः। इसीके अनुसार प्राचीन कालसे लेकर ____ हर पाँचवे साल दो महीने उत्पन्न अवतक यह धारणा है, कि अमुक मुहर्त. होते हैं । इन दो महीनोंको वेदांगज्योतिष में कौन काम करना चाहिए और अमुक में पाँच वर्षोंके युगमें दो बार अलग मुहूर्तमें कोन काम न करना चाहिए। अलग मिलानेकी रीति कही गई है। परन्तु महाभारतके समय मुहूर्त शब्दका पहला महीना तो पहले २३ वर्षों में श्रावण- जो अर्थ था वह तो गया भूल, और के पहले और दूसरा महीना पाँच वर्षोंके अाजकल मुहर्तका अर्थ कोई न कोई शुभ युगके अन्तमें माघसे पहले: अर्थात् महा- अथवा अशुभ समय हो गया है । आज. भारत-कालमें श्रावण और माघ यही दो कल बहुधा किसोको यह मालूम नहीं महीने अधिक (लौद ) हुआ करते थे। रहता कि मुहर्तसे मतलब कितने समयसे इन अधिक महीनोंका उल्लेख महाभारतमें है। आजकल तो मुहूर्तका समय साधा. अन्यत्र कहीं नहीं है। रण एक आध मिनट लिया जाता है। ___ सूर्य-चन्द्रकी गतिका ज्ञान हो जाने परन्तु उल्लिखित नक्शेके अनुसार मुहूर्त पर पाँच वर्षाका युग महाभारत-कालमें दो घड़ी या ४८ मिनिटोंका होता है। प्रचलित था। इनकी सूक्ष्म गणनाके लिए उल्लिखित नक्शेमें और अमरकोशमें दिये समयके जो सूक्ष्म विभाग किये गये थे हुए नक्शेमे थोडासा फर्क है। वे ये है:-कला, काष्ठा, मुहूर्त, दिन, अष्टादश निमेषास्तु काष्ठा त्रिंशत्तु ता:कला। पक्ष, महीना, ऋतु, वर्ष और युग। इनका त्रिंशत्कलो मुहर्तस्तु त्रिंशत्रात्र्यहनी च ते॥ कोष्टक भी महाभारतके शांति पर्वमें है। इसमें यह भेद स्पष्ट है । इससे देख काष्ठा निमेषा दशपश्च चैव त्रिंश-पड़ता है कि महाभारतके अनन्तर,पहलेकी काष्टा गणयेत्कलानाम् । त्रिंशत्कलश्चापि ज्योतिषकालगणना-पद्धतिमें ज़रा अन्तर भवेन्मुहूर्तो भागः कलायादशमश्च यः स्यात् ॥ पड़ गया और भिन्नता आ गई। (शान्ति पर्व अ० २३१) दोनों ही गणनाओमें दिन मात्र एक है। यहाँ निमेष अर्थात् पलक मारनेसे एक सूर्योदयसे लेकर दूसरे सूर्योदयतक ही गणना की है। दिन अथवा अहोरात्र दोनोंने एकसा माना १५ निमेष = १ काष्ठा है। दिनके आगेका परिमाण महाभारतके ३० काष्ठा = ? कला समय और उसके अनन्तर बहुत कुछ ३० कला = १ मुहूर्त भिन्न हो गया । महाभारतके समयके ३० मुहूर्त = १ दिन पश्चात् सात दिनोंका एक सप्ताह बन ५३