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महाभारतमीमांसा
  • महाभारतमीमांसा *

बहुत विस्तार कर दिया है । यही कारण है अन्य स्थानों में भी, सौतिने अनेक नवीन कि महाभारतको धर्मग्रन्थका पूरा स्वरूप प्रसङ्गोका वर्णन किया है। द्रोण पर्वमें, प्राप्त हो गया है और उसके बाद बने हुए जिस समय अर्जुनने जयद्रथको मारनेकी सब प्रन्थ उसके वचनोंको स्मृतिक समान प्रतिज्ञा की उस समय इस असम्भव कार्य- प्रमाण मानते हैं। खैर, सनातनधर्मके साथ को उसकेद्वारा सिद्ध करानेके लिये शंकरसे शेष और वैष्णव मतोंकी एकता करनेके वरदान प्राप्त कर लेनेकी सम्मति श्रीकृष्णने लिये सौतिने महाभारतमें शिवस्तुति- अर्जुनको दी। अर्जुनने समाधि शंकर- विषयक अनेक आख्यान दिये हैं। इसी को प्रसन्न करके उनसे पाशुपतास्त्र प्राप्त उद्देशसे अनुशासन पर्वमें उपमन्युका कर लिया (अध्याय 80-६३) । परन्तु पाख्यान दिया गया है: और वहाँ किरातार्जुनीयमें दिये हुए वर्णनके अनु- शङ्करजी की जो स्तुति की गई है वह प्रत्यक्ष सार भी,शंकरसे पाशुपतास्त्र पानेकी कथा धीकृष्णके मुखसे ही कराई गई है। उस- वनपर्वमें ही है। इसलिये पाशुपतास्त्रके में यह वर्णन है कि जांबवतीको पुत्र होनेकी फिरसे पानेकी यह कथा कुछ चमत्कारिक इच्छासेश्रीकृष्णने शंकरकी श्राराधना की। जान पड़ती है और विश्वास होता है जिस प्रकार भारतमें विष्णुसहस्त्रनाम कि मौतिने जान-बूझकर इसे भी जोड़ जोड़ा गया है, उसी प्रकार यहाँ तण्डी दिया: क्योंकि इस कथामें साक्षात् द्वारा बतलाये हुए शङ्करके सहस्रनामोका श्रीकृष्णको ही शिवस्तुतिका प्रोत्साहक उपदेश उपमन्युने श्रीकृष्णको किया है। बतलाया है। सारांश, शिवके उपासक और यह भी कहा गया है कि शिवकी श्रीकृष्ण है और विष्णुके उपासक शिव हैं, अाराधना करके अनेक ऋषियोंने वर प्राप्त ऐसी मेलकी कथायें जोड़कर सौतिने शैवों किये हैं। जिस मतके अनुसार, सनातन- और वैष्णवोंके विरोधको हटा देनेका धर्मावलम्बियोंके शिव, विष्णु और ब्रह्माका' प्रशंसनीय प्रयत्न किया। ऐसे और भी कई एकीकरण करके, धार्मिक भेद मिटा दिये श्राख्यान बतलाये जा सकते हैं। सौप्तिक जाते हैं, उसका प्रतिपादन इसी प्राण्यानमें ; पर्वमें, जब अश्वत्थामा सोते हुए वीरोंका है। इसमें यह वर्णन पाया जाता है कि गला दबानेके लिये जाना है, उस समयका परमेश्वरके दाहिने अंगसे ब्रह्माकी उत्पत्ति यह वर्णन है कि उसने पहले अपना मस्तक हुई,बायें अंगसे विष्णुकी उत्पत्ति हुई और काटकर शङ्करको सन्तुष्ट किया (सौप्तिक मध्य भागसे रुद्रकी उत्पत्ति हुई। अगले पर्व, अध्याय ७)। यहाँ भी शङ्करने कहा है और पिछले सन्दर्भसे यह बात समझमें कि-"कृष्ण मेरी भक्ति करते हैं, इसलिये श्रा जाती है कि उपमन्युका यह आख्यान वे मुझे अत्यन्त प्रिय हैं।" इस पर्वके सौति द्वारा नया जोड़ा गया है। इसमें अन्नमें लिङ्ग-पूजाकी महिमाका वर्णन यह भी कहा गया है कि श्रीकृष्णने एक! किया गया है और श्रीकृष्णके मुखसे 'हजार वर्षतक तपश्चर्या की । इससे सिद्ध शङ्करकी प्रशंसा कराई गई है। तात्पर्य होता है कि यह आख्यान मूल भारतमें न यह है कि स्थान स्थानपर शिव और विष्णु- होगा। भारतमें किसी व्यक्तिकी आयु- की एकता सिद्ध करनेका प्रयत्न सौतिने का परिमाण सौ वर्षके ऊपर नहीं बत- किया है (देखो सौतिक पर्व,अध्याय १८)। लावागया है, अर्थात् हजार वर्षकी कल्पना मोक्ष पर्वमें जो नारायणीय उपाख्यान है पिक्षले समयकी है। शङ्करकी स्तुनिके लिये, वह मल भारतका नहीं बल्कि सोनिका