भूगोलिक शान। * ताम्रलिप्ति शहर कलकत्तेके पास था। कुरुक्षेत्रसे दक्षिण ओर चलने पर पहले. वह तामलक मामसे ग्रीक लोगोंको पहल हमें शरसेम देश मिलता है। इसकी मालूम था। श्रोड़ आजकलका उड़ीसा राजधानी मथुग यमुनाके किनारे प्रसिद्ध है। उत्कल लोग भी उड़ीसेके पास ही ही है। उसके पश्चिम ओर मत्स्य देश षसते थे और अब भी पञ्चगौड़ ब्राह्मणों- | था । मत्स्य देश जयपुर अथवा अलवरके में उत्काल ब्राह्मणोंकी एक जाति है। उत्तर ओर था। इसकी राजधानी क्या इससे उत्कल लोगोका अस्तित्व बङ्गालकी थी, सो नहीं बतलाया जा सकता । श्रोर अब भी दिखाई देता है। प्रागज्यो- विराट पर्वमें यह वर्णन है कि जब पांडव तिष लोगोंका गजा भगदत्त भारती-युद्ध- अज्ञातवासके लिए निकले, तब वे गङ्गाके में मौजूद था। प्रागज्योतिष देश श्राज- किनारेसे नैर्ऋत्यकी ओर गये । जान कलका अासाम है। आश्चर्य की बात है पड़ता है कि यह खास तौर पर लोगोंको कि भरतग्वगडकी सूचीमें इसका नाम : बहकानेके लिए होगा। वे धागे यमुनाके भी नहीं है। कदाचित् सुरकी तरह यह दक्षिण तीरके पर्वत और अरगयको लाँघ- भी महाभारत-कालमें भरतखगडके बाहर : कर, पाञ्चाल देशके दक्षिण अोरसे और समझा जाता हो । यही हाल मणिपुर दशार्ण देशके उत्तर प्रोग्से, यकृल्लोम और अथवा मणिमन् देशका है। अर्जुन इस शूरसेन देशांसे मृगोंका शिकार करते हुए देशमें अपने पहले वनवासके समय गया और यह कहते हुए कि हम बहेलिये हैं, था। वहाँ उसे चित्राङ्गदा नामक स्त्री विगट देशको गये । इससे यह जान मिली और बभ्रुवाहन नामक लड़का पड़ता है कि दशार्ण देश और यकृल्लोम हुआ । उस मणिपुर राज्यका इसमें नाम : देश यही कहीं पास ही होंगे। इसके बाद नहीं है। वह शायद म्लेच्छ देश था । यहाँ कुन्ति-भोजोका देश चर्मगधती नदी पर पर स्पष्ट वर्णन है कि अंग, चंग, कलिंगके था । यह अाजकलके ग्वालियर प्रान्तमें आगे जब अर्जुन जाने लगा तब उसके। है* । इसके बाद निषध देश हमारे ध्यान- साथके ब्राह्मण लौट आये। में श्राता है । यह निषध देश राजा नल- अब हमें यह देखना चाहिए कि पूर्व का है। यह देश आजकल नरवर प्रान्त, दिशाकी ओर भीमके दिग्विजयमें कौनसे जो कि संधिया सरकारके अधिकारमें है, देश बतलाये गये हैं। सभा पर्वमें कहा माना जाता है। नल-दमयन्ती श्राख्यानमें गया है कि पुमाल, कोसल, अयोध्या, भी, निषधसे वनमें जाने पर, नलने दम- गोपालकक्ष, मन्न, सुपार्श्व, मलङ्ग, अनघ, । यन्तीसे यह कहते हुए कि तुम अपने अभय, वत्स, मणिमान, शर्मक, वर्मक, बापके घर विदर्भको जाश्रो, जो मार्ग विदेह (मिथिला), शकबर्बर, सुम, मागध, वनपर्वयं, ३०८ वें अध्यायमे कई जन्मकी कथा है। दण्डधार, अंग, पुगड़, वंग, ताम्रलिन, । उसमे यह वर्णन है कि, कर्ग को पेटीमे रग्वकर वह पेटी लौहित्य इत्यादि देश उसने जीते। इन- अश्वनदीमें टाल दी गई थी। वह फिर वहा से चर्मण्वती मेसे कितने ही देशोंका उल्लेख ऊपर किया नदीमे गई। वहामे वह यमुनामे, यमुनामे गङ्गामे गई ही गया है । परन्तु कुछके नाम महा- और गजामे चम्पादेश (अन) में अधिग्थको मिली। दस वर्णनमें यह जान पडता है कि, कुन्तिभोज देश भारतकी सूची में नहीं हैं। चम्बल नदीसे मिला हुआ दक्षिण की ओर था। ग्वालियर दक्षिण ओरके देश । रियामतके कोतवाल स्थानको लोग कुन्तिभोजपुर मानते अब हम दक्षिणकी ओर आते हैं। है । यह पर्यक्त aman and पटना है। ५०
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