- महाभारतमीमांसा
और फहरा रही थी और सम्राट अशोकने कथासे भली भाँति प्रकट होता है कि उस धर्मको अपनी राजसत्ताका आश्रय श्रीकृष्णके विषयमें जैन धर्म कैसे विल. दे दिया था। इससे लोगोंमें अनेक क्षण अनादर-भावका प्रचार कर रहा प्रकारके पाखराड-मतोंका प्रसार हो रहा था। इसी प्रकार इन दोनों धर्मोंने वेदोके था और वेदोंके सम्बन्धमे पूज्य भाव नष्ट देवताओंकी भी बड़ी दुर्दशा कर डाली हो रहा था। इन दोनों धर्मोंने खुल्लमखुल्ला थी। इन धर्मों में यह प्रतिपादन किया वेदोकी प्रामाणिकताका अस्वीकार किया जाने लगा कि इन्द्रादि देवता जैन अथवा था, और प्रायः सब लोग कहने लगे बुद्ध के सामने हाथ जोड़कर खड़े रहते कि जो अपनी बुद्धिमें उचित जान है: यहाँतक कि वे उनके पैरोंके तले पड़े पड़े, वही धर्म है । ब्राह्मणोंके विषयमें रहते हैं। इन धर्मोंने वेदोंके यज्ञ-याग श्रादि जोश्रद्धा पहिले थी वह भी उस समय कर्मोकी मनमानी निन्दा करना आरम घटने लग गई थी। प्राचीन आर्य-धर्मके कर दिया था । वैदिक यशोंमें पशुकी बड़े बड़े सुप्रसिद्ध पुरुषोंको इन दोनों हिंसा हुआ करती थी और ये नये धर्म नये धर्मों के अनुयायी अपनी अपनी "अहिंसा परमोधर्मः" के कट्टर अभिमानी ओर खींच ले जानेका प्रयत्न कर रहे थे, इसलिये उन्हें ये सब वैदिक यज्ञ-याग थे। अपने अपने धर्मकी प्राचीनता श्रादि कर्म नापसन्द थे। सनातन धर्ममें सिद्ध करनेके लिये ही इस प्रकार प्रयत्न भी अहिंसाके तत्त्वका उचित उपदेश किया जा रहा था । जन-समूहमें जिन था ही, इसलिये लोगोंको हिंसायुक्त प्राचीन व्यक्तियोंके सम्बन्धमें बहुत यज्ञोंमें धीरे धीरे बहुत कठिनाई होने आदर था, उन व्यक्तियोंको अपने ही धर्मके लग गई थी। इसका परिणाम यह हुमा अनुयायी बतलाकर, जन-समूहकी अनु- कि इन दोनों नये धर्मों का प्रचार बहुत कूलता प्राप्त कर लेनेके लिये, यह सब जोरसे होने लगा। इन धर्मोंने प्राचीन उद्योग किया जा रहा था। उदाहरणार्थ, तीर्थ स्थानों, और व्रतों श्रादिके विषयमें भी जैनोंका कथन है कि वेदोंमें वर्णित प्रथम अपना अनादर-भाव प्रकट किया था। राजर्षि ऋषभ हमारा पहिला तीर्थङ्कर बुद्धने एक समय कहा था कि यदि तीर्थों है। इसी प्रकार बौद्धोका कथन है कि में डुबकी लगानेसे पुण्य अथवा मोक्ष दशरथ-पुत्र राम बुद्धके पूर्व-जन्मका एक की प्राप्ति होती होगी, तो मेंढक भी पुण्य- अवतार है। श्रीकृष्णके विषयमें तो उन वान् और मुक्त हो जायँगे। और ऐसा लोगोंने बहुत ही तिरस्कार प्रकट किया कहकर उसने काश्यप नामके एक था। जैन धर्मके एक ग्रन्थमें यह वर्णन ब्राह्मणको तीर्थ-स्नानसे परावृत्त किया पाया जाता है कि अरिष्टनेमिके उपदेश- था। इस प्रकार सनातनधर्मके मतों और से यादव लोग जैन मतानुयायी हो गये, पूज्य माने हुए व्यक्तियोंके सम्बन्धमें परन्तु श्रीकृष्ण नहीं हुए। उसी ग्रन्थमे अनादर-भावका प्रचार करके ये नये धर्म यह भी लिखा है कि अरिष्टनेमिने श्री- स्वयम् अपनी वृद्धि कर रहे थे । स्मरण कृष्णसे कहा-"तू कई युगौतक नरकम रहे कि सनातनधर्म पर जो यह हमला रहेगा; फिर तेरा जन्म मनुष्य-योनिमें किया गया था, वह भारतवासियोंके होगा; और जब तुझे जैन धर्मका उपदेश इतिहासमें पहला ही था। प्रास होगा, तब तेरा उद्धार होगा।" इस बौद्धों और जैनोंके धर्म-प्रसारके