पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/३९६

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महाभारतमीमांसा

३७० & महाभारतमीमांसा उसने कहा:-मैं घोड़ोंका लक्षण, रहे होंगे जो यहाँ उत्पन्न न होते होंगे। उन्हें सिखलाना, बुरे घोड़ोंको दोष दूर यह अनुमान करनेके लिए कारण पाये करना और रोगी घोड़ोंकी दवा करना । जाते हैं कि भारत-कालमें भी समुद्र जानता हूँ। महाभारतमें अश्वशास्त्र अर्थात् द्वारा व्यापार होता था। बाहर जाने- शालिहोत्रका उल्लेख है। अश्व और वाली वस्तुओंमें सबसे पहला नाम गजके सम्बन्धमें महाभारत कालमें ग्रंथ कपाससे तैयार किये हुए सूक्ष्म अवश्य रहा होगा। नारदका प्रश्न है कि वस्त्रोंका है; आजकल यहाँसे बाहर "तू गजसूत्र, अश्वसूत्र, रथसूत्र इत्यादि- जानेवाली वस्तुओंमें मुख्य कपास ही का अभ्यास करता है न?" मालूम होता है। प्राचीन कालमें कपास हिन्दुस्थानमें है कि प्राचीन कालमें बैल, घोड़े और ही होती थी । यूनानियोंने हिन्दुस्थानकी हाथीके सम्बन्धमे बहुत अभ्यास हो कपासका वर्णन करते हुए उसे पेड़ पर चुका था और उनकी रोग-चिकित्साका : उत्पन्न होनेवाला ऊन कहा है। अर्थात् भी शान बहुत बढ़ा-चढ़ा था। उन लोगोन कपासके पौधे हिन्दुस्थानमें त्रिःप्रसृतमदःशुष्मी परिवर्षी मतंगगट॥४॥ हो देखे थे। श्राजकल भी कपास खास. (अ० १५१) कर हिन्दुस्थान, ईजिप्ट और अमेरिका- साठवें वर्ष में हाथीका पूर्ण विकास में ही होती है : और ईजिप्ट तथा अमे. अर्थात् यौवन होता है और उस समय रिकामें हिन्दुस्थानसे ही कपास गई उसके तीन स्थानोंसे मद टपकता है। थी। कुछ लोगोंका कथन है कि कपास कानोंके पीछे, गंडस्थलोंसे और गुह्यदेशमै। संस्कृत शब्द नहीं है, वह पहलेपहल महाभारतके जमानेकी यह जानकारी मनुस्मृतिमें पाया जाता है । परन्तु इसमें महत्वपूर्ण है । इसमे विदित होता है कि भूल है। यह शब्द महाभारतमें अनेक उस समय हाथीके सम्बन्धका ज्ञान । स्थानों पर आया है और हम देख चके हैं कितना पूर्ण था। कि महाभारत ग्रन्थ मनुस्मृतिके पहलेका है है। द्राविड़ भाषामें कार्यासके सदृश रेशमी, सूती और ऊनी कपड़े।। ' . कोई शब्द नहीं है। यह स्वाभाविक है कि अब हम वार्ताके तीसरे विषय अर्थात् जब भारतीय आर्य हिन्दुस्तान में आये व्यापारका विचार करेंगे। इसके साथ तब उन्हें कपासके पेड़ दिखलाई पड़े। ही भिन्न भिन्न धन्धोंका भी विचार करेंगे। कदाचित् इसी कारण, वेदान्त ग्रन्थमें प्राचीन कालमें माल लाने-ले जानेके . उनका उल्लेम्व नहीं है। परन्तु कार्यास साधनोंकी आजकल की तरह, विपुलता नाम उन्होंने ही रखा है। इसके सिवा न होनेके कारण हिन्दुस्थानके भिन्न भिन्न कपासका एक पर्यायवाची तृल शब्द है। राज्यों में ही कम व्यापार रहा होगा। वह उपनिषदोंमें भी मिलता है। यूना- हिन्दुस्थानके बाहर भी कम व्यापार रहा : नियोंके आदि इतिहासकर्ता हिरोडोटस होगा । उसमें भी अनाजका आयात और और डिसीप्रसने कपासके बने हुए निर्गत व्यापार थोड़ा ही रहा होगा। कपड़ोंका वर्णन किया है। उन्होंने यह भी हिन्दुस्तानमें विशेष रूपसे होनेवाले लिखा है कि हिन्दुस्तानके लोग ऊनके पदार्थ ही बाहर जाते रहे होंगे और कपड़े पहनते थे । कपाससे सूत निकाल बाहरके देशोसे यहाँ वे ही पदार्थ प्रासे कर उनसे कपड़े बनानेकी कला हिन्दु-