- सेना और युद्ध । ॐ
३६३ - - सेनाका जमाव और व्यूह। क्योंकि पहले ऐसा वर्णन आ ही चुका अभीतक सेनाके भिन्न भिन्न भागों है कि १०, १०० और १००० सैनिकों और लड़ाईके दो भेदोंका अर्थात् धर्मयुद्ध पर एक एक अधिकारी रहते थे। इससे तथा कूटयुद्धका वर्णन हुआ है। परन्तु प्रकट है कि पैदल सेना अलग और अश्व- यह जान लेना बड़े महत्वका है कि प्रत्यक्ष सेना अवश्य अलग रही होगी । कुछ युद्धमें सैनिकोंका जमाव कैसे किया राजाओंके पास केवल अश्वसेना ही थी। जाता था और युद्ध किस प्रकार होता पहले बतलाया जा चुका है कि शकुनीके था । पहले अक्षौहिणीके परिमाणको पास १२००० घुड़सवार थे। इसलिए समझ लेना चाहिए । आजकलके डिवी- मालूम होता है कि पत्तिसे लेकर जिनसे अक्षौहिणीकी कल्पना हो सकेगी। अक्षौहिणीतककी उक्त संख्या, कोष्टक जिस तरह जर्मन अथवा ब्रिटिश फौजकी (हिसाब) के लिये और साधारणतः संख्या अाजकल डिवीजिनके परिमाणसे भिन्न भिन्न अङ्गोका एक दूसरेसे सम्बन्ध बतलाई जाती है, उसी तरह भारतीयुद्ध- दिखलानेके लिए, प्रमाणके तौर पर दी कालमें अक्षौहिणी माम प्रचलित था। गई है। लड़ाई के समय सेनाको किस भारतके प्रारम्भमें ही अक्षोहिणीकी संख्या तरहसे खड़ा करना चाहिए, यह बात दी हुई है । “एक गज, एक रथ, तीन शान्तिपर्वके ६६ वे अध्यायमें बतलाई घोड़े और पांच पैदल मिलाकर एक पत्ति गई है। सेनाके सामने बहुधा हाथी खड़े होती है। ३ पत्तियोंका एक सेनामुखः किये जाते थे । हाथियोके मध्य भागमें ३ मुखोका एक गुल्म: ३ गुल्मीका एक रथ, रथोंके पीछे घुड़सवार और घुड़- गण: ३ गणोंकी एक वाहिनी: ३ वाहिनी- सवारोंके मध्य भागमें कवच धारण किये की एक पृतना; ३ पृतनाकी एक चमः । हुए पैदलोको रखनेके लिए कहा गया ३ चमूकी एक अनीकिनी और दस अनी- है । जो राजा अपनी सेनामें इस तरहकी किनीकी एक अक्षौहिणी ।" इसमेंके बहु- । व्यूहरचना करता है, वह अवश्य ही अपने तेरे शब्द केवल सेनावाचक है। हिसाब शत्रुका पराजय करता है।" (शांतिपर्व) करने पर सब मिलाकर अतीहिणीमें । यह वर्णन काल्पनिक नहीं है। महाभारत- २१८७० रथ, उतने ही हाथी ६५६१० । कालमें रणभूमि पर सेनाका जमाव इसी घोड़े और १०६३५० पैदल होते हैं । इसमें रीतिसे होता रहा होगा । परन्तु भारती. रथों और हाथियोंकी संख्या बहुत ही बड़ी युद्धके वर्णनमें इस तरहके जमाव किये मालूम होती है । प्रारम्भमें पत्तिका जो जानेका उल्लेख नहीं है। लड़ाईके समय लक्षण बतलाया गया है, उससे यह नहीं सेनाका जो संचालन किया जाता है माना जा सकता कि युद्ध के समय एक रथ, उसे अंग्रेजीमें टैक्टिकस कहते है और एक गज, तीन अश्व और पाँच पैदलका समस्त महायुद्ध की भिन्न भिन्न रणभूमियों एक स्वतन्त्र समूह बनाया जाता होगा। पर अलग अलग सेनाओंको जुटाने, युद्ध अर्थात्, यह नहीं माना जा सकता कि जारी करने अथवा रोकनेकी रीतियोको प्रत्येक रथके पास एक हाथी, तीन घुड़- स्ट्रेटेजी कहते हैं। भारती युद्ध एक विशेष सवार और पाँच पैदल खड़े रहते थे। लड़ाई थी। उसमें केवल टैक्टिक्सका हाथियोंकी सेना, रथोकी सेना और ' ही उपयोग था। महभारतमें इस बातका पैदलोंकी सेना भिन्न भिन्न रही होगी। बहुत वर्णन है कि गंज सबने सेनापतिने