® सेना और युद्ध । अन्दर गुप्त कीलें लगा देनी चाहिएँ और चाहिए । खेतोका अनाज काट डालना उसमें मगरोंको छोड़ देना चाहिए । किले चाहिए । पेड़ों को तोड़कर शत्रुकी फौजके और शहरसे बाहर जानेके लिए गुप्त हाधियोंको मस्त कर देना चाहिए । शत्रुकी मार्ग बनाये जायँ, किलेके दरवाजे पर फौजमें भेद याद्रोह उत्पन्न करना चाहिए। यन्त्र लगाये जायँ और शतघ्नो रख दी ये सब नियम निर्दयतापूर्ण हैं और पूर्व- जाय । यह नहीं बताया जा सकता कि कालीन धर्मयुद्धके नियमोसे बिलकुल शतनी क्या थी। बहुतेरोका मत है कि उलटे हैं। इन नवीन नियमोंका प्रचार तोप होगी। कई वर्णनोसे मालूम होता यहधा यनानियोंकी चढ़ाई के समयसे है कि शतघ्नीमें पहिये रहते थे, परन्तु ही हुश्रा होगा। प्राचीन कालमें आर्य- कहीं कहीं इस बातका भी वर्णन किया गज्योंके जो युद्ध आपसमें होते थे, उनमें गया है कि शतनी हाथमें रहती थी। केवल क्षत्रियोंका ही युद्ध होता था; अन्य (पूर्व समयके वर्णन पर ध्यान देनेसे हमें प्रजा-गणों तथा कृषकोंको दुःख देनेका ऐसा मालम होता है कि यह तोप न विचार राजाओंके मनमें न रहता था। होगी।) यह नियम बतलाया गया है कि यदि किसी गजाका पराभव भी हो जाय किलेमें इंधन, लकड़ी आदि इकट्ठा की तो उसके राज्यको अपने राज्यमें शामिल जाय, नये कृएँ खोदे जायें और पुराने कर लेने की प्रथा न थी। अतएव विजयी ओंकी मरम्मत की जाय। जिन घरी गजाको कर कर्म करने तथा परराष्ट्रको पर घास हो, उनपर गीली मिट्टी लीप बलहीन या उध्वस्त करनेकी इच्छा न दी जाय । केवल रातको ही भोजन , होती थी। फलतः भारती-कालमें धर्मयुद्ध. पकाना चाहिए । दिनको अग्निहोत्रके के नियम बहुत ही अच्छे थे । परन्तु सिवा और किसी तरहकी प्राग न सुलगाई सिकन्दरके समय यूनानियोंने भिन्न युद्ध- जाय । यदि कोई प्राग अलावे तो उस.पद्धतिका म्वीकार किया था। उनके युद्ध- को दंड देना चाहिए । भिक्षा मांगनेवाले, शास्त्रका यह नियम था कि जिस प्रकार गाडीवाले, नपुंसक, उन्मत्त और जड़ हो, शत्रुको पराजित करना चाहिए- (पागल) लागोको शहरके बाहर निकाल युद्ध में सभी यातं न्याय्य हैं । यही नियम देना चाहिए । शस्त्रागार, यंत्रागार, अश्व- हिन्दुस्थानियोंने यूनानियोंसे सीख लिया शाला.गजशाला.सेनाके निवासस्थानोंऔर और तभीस धर्मयद्धक नियम प्रायः लाल खाइयों पर कड़ा पहरा रखना चाहिए। हो गये । आगे चलकर मुसलमानोंके खराज्यकी रक्षा करनेवाले नियमोंके साथ युद्धोम तो अनेक भयानक बातें होने लगी हीसाथ शत्रुओके राज्यका विध्वंस करनेके और हजारों निरपराध आदमियोंकी लिए जो रीतियाँ यतलाई गई है, वे भी हत्या करके जुल्म किया जाने लगा। इसी प्राकर भयंकर हैं। कहा गया है कि प्रध्यमानस्य वधो दागमर्षः कृतघ्रता । आग लगानेवाले, विष मिलानेवाले, चोर. ब्रह्मवित्तम्य चादानं निःशेषकरणं तथा ॥ या डाकू और जंगली लोगोंको भेजकर कर खियामोषः पतिस्थानं दस्युप्वेतद्विगर्हितम्। पर-राष्ट्रका विध्वंस करना चाहिए। पंच परस्त्रीभिर्दस्युरेतानि वर्जयेत् ॥ अर्थात् , परराष्ट्रके गाँवोंको जला देना ( शा० १३४-१७) चाहिए, लूट लेना चाहिए अथवा पीनेके पानीको विषद्वारा दुषित कर देना यह बान यूनानियों के इतिहाससे
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