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महाभारतमीमांसा

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में पानी लेकर शुद्ध अन्तःकरणसे जपना प्राप्त हुआ था। सारांश, अस्त्र-विद्यादेवी पड़ता था। फिर उसके अनुसार भयङ्कर विद्या थी और धनुर्विद्या मानवी विद्या अस्त्र या ज्वाला, बिजली आदिकी उत्पत्ति थी। दूसरी बात यह है कि उस समयके होती थी। अस्त्रोंकी योजनामें चार भाग धर्मयुद्धका यह नियम था कि अस्त्र थे। वे चार भाग, मन्त्र, उपचार, प्रयोग जाननेवाला, अनस्त्रविद् पर अर्थात् और संहार हैं । उद्योग पर्ष १०३ में कहा अत्रके न जाननेवाले पर, अस्त्रोंका उप. है कि 'योऽस्त्रं चतुष्पात् पुनरेव चक्र।' योग न करें। जिस प्रकार बन्दुक लिए संहार शब्दसे यह मालूम होता है कि जिस हुए लोगोंका निःशस्त्र लोगों पर बन्दूक योगाने जिस अस्त्रका प्रयोग किया हो, ' चलाना अन्याय और करता समझा जाता उसमें उस अस्त्रको लौटालेनेकीशक्ति थी। है, उसी प्रकार यह नियम था कि अस्त्रके धनुर्वेदमें शस्त्रोंके वर्णनके साथ अस्त्रोका समान भयङ्कर दैविक शक्ति जिसके पास भी विस्तृत वर्णन था। भारती कालमें हो वह अस्त्रके न जाननेवालो पर अर्थात् यह नियम था कि प्रत्येक क्षत्रिय इस दैविकशक्ति-विहीन लोगों पर अस्त्र न धनुर्विद्याका अभ्यास करे । यह बात चलावे । कहा गया है कि द्रोणने क्रोध गुरुसे धनुर्वेदकी सहायतासे क्षत्रियोंको आकर जो ऐसा भयङ्कर काम किया था सोखनी पड़ती थी कि अस्त्रोंका प्रयोग वह उचित न था। और संहार किस प्रकार किया जाता है। ब्रह्मास्त्रण त्वया दग्धा अनस्त्रशा नरा भुवि । वेदकी शिक्षा देनेका अधिकार ब्राह्मणोको यदेतपीदृशं कर्म कृतं विप्र न साधु तत् ॥ था इसलिए धनुर्वेदके इन अस्त्रोंके मन्त्रों- (द्रोणपर्व अ० १८०) को सिखाने और उनके प्रयोग तथा अर्थात, यह बात निश्चित हो गई थी संहार प्रत्यक्ष अनुभव द्वारा बतलानेका कि इस अस्त्रका सदा सर्वदा उपयोग न काम भी ब्राह्मणों को ही करना पड़ता था। करना चाहिए । तीसरी बात यह है कि ये महाभारतमें दिये हुए अस्त्रोंके वर्णनोंसे । वैदिक मन्त्र प्रसङ्गवशात् याद भी न पाते ये सब बातें मालूम होती हैं। अब इस थे। कर्णको ऐन मौके पर ब्रह्मास्त्र याद न बातका निर्णय नहीं किया जा सकता कि प्राया। अर्जुनको भी, श्रीकृष्णकी मृत्युके ये अस्त्र वास्तविक हैं या काल्पनिक । पश्चात् , दस्युरोके युद्ध के समय, अस्त्र मन्त्रोंमें अद्भुत दैविक शक्ति रह सकती ! याद न आये । इन सब बातोंका विचार होगी। परन्तु यहाँ दो तीन बातें और : र करने पर यहाँ कहना पड़ता है, कि यद्यपि भी बतला देनी चाहिएँ । अस्त्रविद्या धनु- ' , यह मान भी लिया जाय कि ये दैविक विद्यासे बिलकुल भिन्न थी । अस्त्रविद्या , चा: शक्तिके अस्त्र प्राचीन अर्थात् भारती-युद्ध के एक मन्त्र-विद्या है, और धनुर्विद्या धनुष्य-

समयमें थे, तथापि लड़ाईके अन्तिम परि-

सम्बन्धी मानवी विद्या है। धनुर्विद्या : मणाममें उनका बहुत उपयोग नहीं हुआ। प्रवीणता प्राप्त करनेके लिए अर्जुनको रात-दिन धनुष्यबाणका अभ्यास करना सिकन्दरके समयका रथ-युद्ध । पड़ा था, परन्तु अस्त्र-विद्या उसे गुरु- यह बात सच है कि अस्त्र-युद्धके प्रसादसे बहुतही जल्द प्राप्त हो गई थी। सिवाभारती-युद्धके रथियोंके युद्धकावर्णन शङ्करसे उसे जो पाशुपतास्त्र मिला था, ; भी महाभारतमें बहुत है । परन्तु श्राज- वह शङ्करके प्रसादसे एक क्षणमें ही कल हम लोग इस बातकी कल्पना नहीं