® सेना और युद्ध । ३५१ धनुर्वीर निशाना मारनेके भिन्न भिन्न स्वानोंके समान हीरथी-योद्धाओंको बालों- स्थानों पर जल्दीसे जा सकता है। फिर का संग्रह करनेकी बहुत अावश्यकता थी। भी रथके वेगके कारण निशाना जमानेमें इससे यह भी मालूम होता है कि प्रा. अन्तर पड़ जाता है। इस कारण रथ निक समयके अनुसार ही प्राचीन समय- परसे निशाना मारनेका भी अभ्यास के युद्धोंमें वाहनरूपी साधनोंका बहुत करना पड़ता है। रथके घोड़ों और सार- उपयोग होता था। थियों पर भी हमला किया जा सकता है।। इस कारण, रथ-योद्धाको शत्रुका नाश इस स्थान पर यह प्रश्न होता है कि रथी करनेकी शक्ति यद्यपि अधिक प्राप्त होती बहुधा जिन अस्त्रोका उपयोग करते थे वे थी, तथापि उसकी जवाबदेही भी अधिक अस्त्र क्या थे। पाठकोंको यह जानने- बढ़ जाती थी। हालके यूरोपियन युद्धसे की इच्छा सहज ही होगी कि अस्त्रोके यह अनुमान किया जाता है कि आजकल विषयमें विवेचक दृष्टिसे कौनसा मत भी युद्ध में रथका उपयोग धीरे धीरे होने दिया जा सकता है। यह वर्णन पाया लगेगा। वर्तमान समयमें, मैक्सिम् गन- जाता है कि अस्त्रोंका उपयोग बहुधा रथी को मोटर गाड़ीमें रखकर भिन्न भिन्न ही करते थे। यह वर्णन भी है कि धनुष्य- स्थानोंमें शीघ्रतासे ले जाकर वहाँसे को बाण लगाकर उस पर कुछ मन्त्रोंका निशाना मारनेकी युक्ति चल पड़ी है । वह प्रयोग करके बाण चलाये जाते थे; उस रथके समान ही है। इस मोटर पर गोला समय दैविक शक्ति द्वारा विलक्षण शस्त्र न लगे, इसलिए गत युद्ध में टेककी या पदार्थ, जैसे अग्नि, वायु, विद्युत्, वर्षा, जो कल्पना निकली है, वह भी रथके आदि उत्पन्न होते थे जिनके कारण शत्रु- समान ही है। पूर्व समयके युद्धोंमें रथका सेनाका भयङ्कर नाश हो जाता था। इन उपयोग वर्तमान तोपखानेके समान विशे-अस्त्रोंके अग्न्यस्त्र, वाय्वस्त्र आदि नाम थे। षतः घोड़ोकी तोपोंके समान, होता था। ये दैविक मन्त्र बहुधा बाणों पर योजित भिन्न भिन्न स्थानोसे निशाना मारनेके रहते थे। इनमें विलक्षण दैविक शक्ति लिए, रथोंको दौड़ाते हुए इधरसे उधर भरी रहती थी। यह न समझ लिया ले जाना पड़ता था। परन्तु वर्तमान तोप- जाय कि केवल बाणों पर ही अस्त्रोका खानोंके समान ही बारूद-गोलेके स्थान | मन्त्र जपा जाता था। भगदत्तने अंकुश पर बाणोंका संग्रह करना आवश्यक था। पर वैष्णवास्त्रका मन्त्र जपा था और फिर मरहठोंके युद्ध-वर्णनमें बाणोंकी कैंचियों- उसे चलाया था । अश्वत्थामा युद्धके का बराबर उल्लेख किया गया है। कर्ण- पश्चात् भागीरथीके किनारे व्यासजीके पर्वमें अश्वत्थामाका कथन है कि- पास बैठा था। उस समय जब पागडव 'बाणोसे भरी हुई सात गाड़ियाँ मेरे पीछे उसे मारनेके लिए आये तब उसने दर्भकी रहने दो।' अन्य स्थानमें वर्णन है कि एक सींक पर ब्रह्मशिरः नामक अस्त्रका अश्वत्थामाने, तीन घण्टोंकी अवधि हो, जप कर वह सीक पाण्डवों पर फेंकी ऐसी आठ गाड़ियोंके सब शस्त्रास्त्रोको थी। सारांश, यह नहीं कहा जा सकता चला दिया और गाड़ियाँ खाली कर दी, कि अस्त्रीको धनुष्य या बाणकी ही आव- जिनमें पाठ आठ बैल जुते थे। इससे श्यकता थी । धनुर्वेदमें बतलाए हुए स्पष्ट मालूम होता है कि वर्तमान तोप- विशिष्ट प्रस्त्रों के मन्त्रीको कभी कभी हाथ-
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