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महाभारतमीमांसा
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रियन और बेबीलोनियन लोगोंमें भी के लिए धनुष्यबाणका व्यासङ्ग भी रात- रथोका वर्णन किया गया है। फ़ारस- दिन करना पड़ता था। जिस प्रकार निवासियोंकी फौजमें भिन्न प्रकारके बन्दूकका निशाना मारनेके लिए अंशतः रथ थे। उनके चक्रों में छुरियाँ बँधी | ईश्वर-दत्त गुणकी आवश्यकता होती है, रहती थीं जिनसे शत्रुकी सेनाके लोगों- उसी प्रकार धनुष्यबाणका भी निशाना को बहुत जख्म लगते थे। भारती-आर्यो- ठीकमारनेके लिए ईश्वरदत्त शक्तिकी आव- की फौजमें रथ सिकन्दरके समयतक श्यकता होती है। परन्तु इस प्रकार गुण- थे।यनानियोंने लिख रखा है कि भारती का उपयोग होनेके लिए निरन्तर अभ्यास- प्रायोको धनुष्यबाण-सम्बन्धी कला अन्य की भी आवश्यकता है। इसलिए प्रत्येक लोगोंसे बहुत बढ़ी चढ़ी है और अनुमान- मनुष्य धनुर्वीर नहीं हो सकता। खाभा. से मालूम होता है कि अन्य लोगोंके रथों- विक गुण, दीर्घ अभ्यास और उत्तम गुरु, की अपेक्षा भारती-आयौँके रथ बड़े होंगे। इन तीनों बातोका मेल हो जानेसे ही तानियोंने इस बातका वर्णन किया है। अर्जन प्रख्यात धनुर्धर हुआ। कि हिन्दुस्थानियोंके धनुष्य आदमीके | तदभ्यासकृतंमन्वारावावपिस पाण्डवः । सिरतक ऊँचे और उनके बाण तीन हाथ | योग्यां चक्र महाबाहुर्धनुषां पंडुनन्दनः । लम्बे होते थे। बाणोंका लोहा या फल (आदि० अ० १३२) बहुत तीक्ष्ण और भारी रहता था। ऐसे इस बातको जानकर ही अर्जुनने धनुष्योंको खीचनेवाले मनुष्यकी भुजामें रात्रिके समय भी धनुष्यबाण चलानेकी बहत ताकतकी आवश्यकता होती थी। मेहनत (योग्या) की थी कि अभ्याससे यद्यपि यूनानियोंके समयमें यहाँ धनुष्य- ही निपुणता प्राप्त होगी। इसमें दो बातो- बाणकी कला कुछ घट गई थी, तथापि की ओर ध्यान रहता था। पहले तो यनामियोंको यह देखकर आश्चर्य होता निशाना ठीक लगे, और फिर बाण भी था कि उस समयके आर्य योद्धाओं द्वारा जल्दी चलाया जा सके । धनुर्धरको भिन्न चलाए हुए बाण कितने जोरसे आते हैं। भिन्न वेग और रीतिसे धनुष्यबाणका उन्होंने यह लिख रखा है कि ऐसे बाणोंसे उपयोग कर सकना चाहिए । धनुष्यका लोहेकी मोटी पट्टियाँ भी छेदी जा सकती लगातार उपयोग करते रहनेके कारण थी । यह बात इतिहासमें लिखी गई अर्जुनके बाएँ हाथ पर घटे पड़ गये थे। है कि भारतीय क्षत्रियोकी धनुर्विद्याकी| उन्हें उसने बाहुभूषणोंको धारण करके कीर्ति और उनके विलक्षण सामर्थ्य के बृहन्नडाके वेशमें छिपा लिया था। सम्बन्ध संसारके लोगोंको पृथ्वीराजके धनुर्वीरकी शक्ति रथकी सहायतासे समयतक आश्चर्य मालूम होता था । दस गुनी बढ़ जाती है। पादचारी धनु- इतिहासमें इस बातका उल्लेख है कि र्धर उतने ही बाणोंको ले जा सकेगा भोली प्रायों में इस अन्तिम धनुर्वीरने जितने एक मनुष्यसे उठाये जा सकते हैं: बाणसे लोहेके मोटे तवे छेदे थे। परन्तु रथमें जितने चाहें उतने बाण रखे लम्बा धनुष्य लेकर वज़नी बाण जा सकते हैं। इसके सिवा, जहाँसे बाण चलानेकी हाथोंको प्रादत होनेके लिए चलाना हो उस स्थानको पादचारी वीर स्वभावतः शारीरिक शक्तिकी आवश्यकता आसानीसे बदल नहीं सकता; परन्तु थी। परन्तु वाणोका निशाना ठीक साधने रथकी सहायतासे यह लाभ होता है कि