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महाभारतमीमांसा

३३% 8 महाभारतमीमांसा # पुत्रोंके बीच वैर-भावका विचार करके विषयमें कोई सन्देह न करने पावे, इसलिए कणिक नामक मंत्रीसे सलाह की; तब नास्तिक, चोर आदि लोगोंको देशसे उसने इस नोतिका उपदेश किया था। बाहर निकाल देना चाहिए । अपनी परन्तु उस समय धृतराष्ट्र पर किसी वाणीको मावनकेसमान मृदु और हृदय- तरहकी आपत्ति न आई थी । इसलिए को उस्तरेके समान तीक्ष्ण रखना चाहिए। कहनेकी आवश्यकता नहीं कि धृतराष्ट्रने अपने कार्योका हाल मित्रों अथवा कणिककी नीति सुनकर उसी तरहका शत्रुओंको कुछ भी मालूम न होने दे।" आचरण कर डालनेमें बहुत बुरा काम उपर्युक्त नियम कणिकने धृतराष्ट्र- किया । आदिपर्वमें यह कणिक नीति को बतलाये और उसे अपने भतीजों- वर्णित है। उसका तात्पर्य यह है-“शत्रु पाण्डवोंका नाश करनेके लिए उपदेश तीन प्रकारके होते हैं-दुर्बल, समान और किया। इस प्रश्नका ठीक ठीक उत्तर दे बलिष्ठ । दुर्बल पर सदैव शस्त्र उठाये सकना कठिन है कि इन तत्त्वोंको भारतीय रहना चाहिए, जिसमें वह कभी अपना आर्योंने ग्रीक लोगोंसे सीखा था अथवा उन सिर ऊँचा न कर सके। समान शत्रुकी लोगों में ही इस तरहकी कुटिल राजनीति- इष्टिमें सदैव अपने पराक्रमको जाग्रत के तत्त्व उत्पन्न हो गये थे। इसमें सन्देह रखना चाहिए और अपने बलकी वृद्धि कर नहीं कि भारती-कालके राजाओंकी शत्रु- उस पर आक्रमण करना चाहिए । बलिष्ठ विषयक नीति अत्यन्त सरल और उदात्त शत्रुके छिद्रको देखकर और भेद उत्पन्न ! थी। भारती-युद्धकालमें राजाओंके अधि- करके उसका नाश करना चाहिए । एक कारी धोखा देने या विश्वासघात करनेसे बार शत्रु पर अस्त्र उठाकर फिर उसका अलिप्त रहते थे। भीष्म, द्रोण आदिका पूरा विनाश कर देना चाहिए-अधूरा आचरण अत्यन्त शुद्ध था । सौतिने नहीं छोड़ना चाहिए । शरणमें आये हुए अपने समयकी परिस्थितिके अनुसार, शत्रुको मार डालना प्रशस्त है। प्रबल उनके सम्बन्धमें, महाभारतमें कहीं कहीं शत्रुका विष प्रादि प्रयोगोंसे भी प्राण- वर्णन किया है कि वे विपक्षियोंमें मिल घात करना चाहिए । शत्रके सेवकोंमें गये थे और उन्होंने पाण्डवोंको अपने स्वामिद्रोह उत्पन्न कर देना चाहिए। मरनेका उपाय भी बतला दिया था। शत्रु-पक्षके सहायकोंको भी इसी तरहसे परन्तु यथार्थमें भीष्म या द्रोणने ऐसापाच- मार डालना चाहिए । अपना विपरीत रण कभी नहीं किया, ऐसा हमारा निश्चय समय देखकर शत्रुको सिर पर भी है। महाभारतमें जो यह वर्णन है कि बैठा ले, परन्तु अनुकूल समय आते ही श्रीकृष्णने कर्णको गुप्त सलाह देकर अपने उसे सिरके मटकेकी तरह जमीन पर पक्ष में मिला लेनेका प्रयत्न किया था, वह पटककर चूर चूर कर डाले। पुत्र, मित्र, प्रसङ्ग भी पीछेसे जोड़ा हुआ मालूम माता, पिता आदि भी यदि बैर करें तो पड़ता है। कर्णने भी इस अवसर पर, उनका बध करनेमें ही उत्कर्ष चाहने- उदाराचरणके मनुष्यकासा ही व्यवहार पाले राजाका हित है। अपने हृदयकी किया है। सारांश, जब कि भीष्म, द्रोण, बात किसीको मालूम न होने देनी कर्ण, अश्वत्थामा, कृप आदि भारती चाहिए। जिसको मारना हो उसके घरमें योद्धाओने स्वामिनिष्ठ तथा राष्ट्रनिष्ठ भाग लगा देनी चाहिए और अपने अधिकारियोंके योग्य ही आचरण किया