पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/३५७

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8 राजकीय परिस्थिति। और निरुपाय होकर राजाने उसे अभीष्ट | और झूठ बोलनेको कभी तैयार न होते दण्ड दिया और उसका हाथ हटते ही थे। यह बात ग्रीक लोगोंके वर्णनसे भी देवताओंकी कृपासे उस हाथकी जगह सिद्ध होती है कि महाभारतकालमें ऐसी पर सुवर्णका दूसरा हाथ उत्पन्न हो गया। स्थिति सचमुच थी। हिन्दुस्थानके लोगों- इससे सिद्ध है कि दण्डनीय लोगोंको की सचाईके सम्बन्धमें उन्होंने प्रमास सजा देना प्राचीन न्याय-पद्धतिमें राजाका लिख रखे हैं। उन्होंने यह भी लिखा है पवित्र कर्तव्य और अत्यन्त महत्वकी बात |कि चन्द्रगुप्तको प्रचण्ड सेनामें बहुत ही समझी जाती थी । परन्तु पूर्व कालमें यह । थोड़े अपराध होते थे। उनके लेखसे तत्व भी मान्य समझा जाता था कि बिना हिन्दुस्थानमें दीवानी दावोका बिलकुल न अपराधके किसीको सज़ा न हो और होना प्रकट होता है। उनके वर्णनसे बिना कारण किसीकी जायदाद जब्त न मालूम होता है कि यदि किसीने किसी की जाय । यदि इस तत्वके विरुद्ध प्राचीन दूसरेको द्रव्य दिया और वह द्रव्य उसे कालके अथवा आजकलके ही गजा जुल्म वापस न मिला तो वह दूसरे पर करें तो यह उस पद्धतिका दोष नहीं है। भरोसा करनेके कारण अपनेको ही दोष ऊपर बतलाई हुई न्याय-पद्धति हिन्दुस्थान- देता था। के लोगोंके स्वभावके अनुकूल उनके इति- चन्द्रगुम और महाभारतकं समयके हाससे उत्पन्न हुई थी जिससे वे सुखी बाद राज्य बड़े हो गये । इससे यह नियम रहते थे। वे उसे योग्य समझते थे। पूर्व | ढीला होता गया कि सब मुकदमोका कालमें अपराधोंकी संख्या बहुत थोड़ी निर्णय स्वयं राजा करे । फिर न्यायाधीश रहती थी और लोगोंकी सत्यवादिता अथवा अमात्य रखनेकी पद्धति शुरू हुई। किसी तरहसे भङ्ग न होती थी। गवाहों- इसका उल्लेख महाभारतमें ही है। का इजहार बड़ी कड़ी शपथीकं द्वारा हमारा मत है कि अदालतमें होनेवाले और प्रत्यक्ष राजाके सन्मुख होताथा, अत- सभी इजहारोंका पूर्व कालमें लेख नहीं एव बहुधा वे झूठ न बोलते थे । उस समय रखा जाता था । इजहार शब्दके सर्व वादी और प्रतिवादीके वकील नहीं होते थे अर्थक अनुसार सभी बातोंका मुँहसे बत- और मुख्य इजहार, जिरह, बहस आदि- | लाया जाना प्रशस्त मालुम होता है। का कोई बखेड़ा भी न रहता था । प्रत्येक परन्तु मृच्छकटिकमें अदालतके वर्णनके मुकदमेमें राजाको जानकार लोगोंकी सम्बन्धमें कहा गया है कि लेखक, वादी सलाहकी आवश्यकता रहती थी और और उसके गवाहका इजहार लिख लेता न्यायसभाके सभासद चारों वीके होन- था। यह तो पहले ही बतलाया जा चुका के कारण गवाहोंसे परिचित रहते थे। है कि मुल्की कामोंके लिए लेखक रहतं भिन्न भिन्न दर्जेको अपील-अदालतें बिल-थे। इससे न्यायके काममें भी लेखकका कुल न थी। प्रत्यक्ष राजा अथवा जान- रहना असम्भव नहीं मालूम होता। कार लोगोंके सन्मख स्थिर न्याय होता. महाभारतमें दराडका जो वर्णन किया था। इससे मनमाने गवाह देने और मन-गया है उसका उल्लेख पहले हो चुका है। माने झगड़े उत्पन्न करनेके सभी रास्ते परन्तु यहाँ हमें इस बातका विचार करना पूर्व कालमें बन्द थे। बहुधा लोग झगड़ों-चाहिए कि कट श्लोक सरीखे दिखाई का तस्फिया आपसमें ही कर लेते थे' पड़नेवाले इन साकोंका सचा समा