& राजकीय परिखिति । * ३१६ अस्यामापदि घोरायां संप्राप्ते दारुणे भये। खेतीका उत्कर्ष होता है। शान्ति पर्षके परित्राणाय भवतां प्रार्थयिप्ये धनानि वः॥ ७ वें अध्यायमें कहा है:- प्रनिदास्ये च भवतां सर्व चाहं भयक्षये। "प्रभावयन्ति गपंच व्यवहारं कृषि तथा।" (शान्ति० अ०१७) यह भी कहा गया है कि राजा धीरे राजा यह कहे कि-"इस आपत्तिके धीरे कर बढ़ाये। इसके लिए बंजारोंका ही प्रसङ्गमें दारुण भय उत्पन्न हुआ है, अत- उदाहरण दिया गया है। जिस प्रकार बैल एव मैं तुम्हारी ही रक्षाके लिए तुमसे धन पर लादे जानेवाला बोझ क्रमशः बढ़ाते माँगता हूँ भयका नाश होने पर मैं इस चले जानेसे बैलकी शक्ति बढ़ाई जा सकती सब धनको तुम्हें लौटा दूँगा।" लिये हुए है, उसी प्रकार राष्ट्रको भी कर देनेकी कर्जको चुका देनेका मामूली उपाय यह शक्ति बढ़ाई जा सकती है। हर जातिके था कि शत्रसे धन लिया जाय । परन्तु मुख्य मुख्य लोगोंके साथ कुछ रियायत यदि केवल स्वसंरक्षण ही हो, तो लिये हुप की जायें, और समस्त जनसमूह के लिए धनको लौटा देनेका अन्य करोंके सिवा करका हिस्सा साधारणतः अधिक रग्वा और कोई उपाय नहीं: अथवा मितव्य- जाय । अथवा प्रमुख लोगोंमें भेद उत्पन्न यितासे खर्चका कम किया जाना भी एक करके समस्त लोगों पर कर बढ़ा दिया उपाय है। परन्तु इसका यहाँ किसी जाय । परन्तु साधारणतः सय श्रीमान् प्रकार उल्लेख नहीं किया गया है । तथापि लोगोंके साथ खास रिश्रायत की जाय इतना मानना पड़ेगा कि यहाँ ऐसी श्राज्ञा क्योंकि धनवान लोग राजाके आधार-स्तंभ है कि युद्ध के समयका ऋण मीठे शब्दोंसे होते हैं। कहने की आवश्यकता नहीं कि और लोगोंकी गजी-खुशीसे ही लिया कमेंके सम्बन्धमें ऐसे ही नियम सब जाना चाहिए। 'समझदार गटोंमें होते हैं। गजाकी प्रायके लिए और भी कुछ इसके सिवा आमदनीके अन्य विषय कर महाभारतमें बतलाये गये हैं. उनमेंस। खान, नमक, शुल्क, नर और हाथी थे। गोमी लोगों अर्थात बनजारों पर लगाया शान्तिपर्वमें कहा है कि इन सब विषयोंके हुआ कर एक मुख्य कर था। प्राचीन लिए भिन्न भिन्न ईमानदार अमात्य कालमें सड़कोंके न होने के कारण एक राष्ट्र- रग्वे जायें। से दूसरे राष्ट्र में अनाज लाने और ले जाने- श्राकरे लवणे शुल्के तर नागबले नथा । का काम यही गामी अर्थात् बंजार लोग न्यसेदमात्यन्नृपतिःम्बाप्तान्वा पुरुषान्हितान्॥ किया करते थे। बैलोंके हज़ारों मुंड 'पाकर' का अर्थ है खान । हिन्दु. रखकर उनपर गोनं लादकर अनाज और स्थानमें सोने, हीरे, नीलम प्रादिकी दूसरा माल लाने-ले जानेका काम यही : ग्वानं प्राचीन कालमें बहुन थीं। आजकल लोग करते थे। इनपर कर लगाना मानों वे कम हैं। इनसे जो आमदनी होती थी आयात और निर्यात मालपर कर लगाना वह सब गजाकी ही होती होगी; परन्तु है। परन्तु कहा गया है कि इन लोगोंके यहाँ तो केवल कर लेनेका नियम बतलाया साथ प्रेमका व्यवहार करके उनसे धीरे गया है। यह स्पष्ट है कि इन कामोंकी धीरे कर लेना चाहिए, क्योंकि इन लोगों- पूरी देख रेख करनेके लिए और किसी के द्वारा राष्ट्रमें लेन-देनके व्यवहार तथा प्रकारकी धोखेबाजो न होने देनेके लिए
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