३१६ 8 महाभारतमीमांसा ® पुरुषत्व नष्ट करके अन्तःपुरको त्रियोंके पणव, प्रानक, शंख और प्रचण्ड ध्वनि लिए उन्हें संरक्षक बनानेको दुष्ट पद्धति करनेवाले दुन्दुभि आदि वाद्य बजाने भारती-कालमें हिन्दुस्थानके आर्य लोगोंमे लगे। तब युधिष्ठिरकी नींद खुली । आव- पलित न थी। परन्त कथासरित्सागर- | श्यक कार्योंके लिए उसने सानग्रहमें में लिखा है चन्द्रगुप्त या नन्दके समय प्रवेश किया। वहाँ स्नान किये हुए और हिन्दुस्थानमें पाटलिपुत्र में वर्षवर थे। तब | शुभ्र वस्त्र पहने हुए १०८ तरुण सेवक हमारा अनुमान है कि यह पद्धति, अन्य उदकसे परिपूर्ण सुवर्णके कुम्भ लेकर बादशाही रवाजोंके समान, पर्शियन खड़े थे। फिर युधिष्ठिर छोटासा वस्त्र लोगोंसे चन्द्रगुप्तके समयमें ली गई होगी। परिधान कर चौकी पर बैठा । पहले बल- और, ऐसे लोग भी वहीसे लाये जाते वान और सुशिक्षित सेवकोंने अनेक वन- होंगे। जबतक हिन्दुस्थानमें यवन, शक स्पतियोंसे तैयार किया हुआ उबटन शादिपाश्चात्य म्लेच्छोंका राज्य बना रहा | उसके शरीरमें रगड रगडकर लगाया। सभीतक यह पद्धति हिन्दुस्थानमें प्रच- अनन्तर सुगन्धयुक्त उदकसे उसे नह- लिरही होगी। परन्तु उनकी सत्ताके | लाया। माथेके बाल सुखानेके लिए यधि होने पर वह भी नष्ट हो गई। बाणने ! छिरने राजहंसके समान स्वच्छ कपडा हर्षके अन्तःपुरका जो वर्णन दिया है सिरपर लपेटा । फिर शरीर पर चन्दनका जसमें वर्षवरोका वर्णन स्मरण नहीं! लेप कर, धोती पहन. हाथ जोडकर पूर्वकी माता। दुर्देवसं जब मुसलमानीका राज्य और मुँह करके वह कुछ समयतक बैठा हिन्दुस्थान में स्थापित हुआ, तब यह रवाज रहा। जप करनेके बाद वह प्रदीम अग्निगृहमें फिर मुसलमानी राज्यमें घुसा। परन्तु गया। वहाँ समिधा और भाज्याहुतिका हिन्दुस्थानी राजा लोगोंमें उसका प्रवेश | उसने समन्त्रक हवन किया। बाहर बिलकुल नहीं हुआ। हर्षके इस पारके श्राकर उसने वेदवेत्ता ब्राह्मणोंका दर्शन इतिहासमें यह प्रमाण नहीं पाया जाना किया और मधुपर्कसे उनकी पूजा को। उन्हें कि क्षत्रिय या अन्य हिन्दू राजा लोगोंके | एक एक निष्क दक्षिणा दी: और दूध अन्तःपुरमें खोजा लोग रहते थे। | दनवाली ऐसी सवत्स गाएँ दी जिनके राजाकी दिनचर्या । | सींगोंमें सोना और खुरोंमें चाँदी लगी थी। फिर पवित्र पदार्थोंको स्पर्श करके द्रोण पर्वके ८२ व अध्यायमें युधि- युधिष्ठिर बाहरकी बैठकमें आया। वहाँ ष्ठिरकी दिनचर्याका जो कुछ वर्णन किया सर्वतोभद्रक नामका सुवर्णासन रखा गया है वह मनोरञ्जक है और यहाँ देने था । उस पर उत्तम प्रास्तरण बिछा योग्य है। "उँजेला होनेके समय गायन हुआ था और उसके ऊपरका भाग छतसे करनेवाले मगध, हथेलियोंसे ताल देते शोभायुक्त हो गया था। वहाँ बैठकर दुए, गीत गाने लगे। भाट तथा सूत सेवकोंके द्वारा दिये हुए मोतियों और रत्नों- युधिष्ठिरकी स्तुति करने लगे। नर्तक के तेजस्वी श्राभूषण उसने पहने। तब नाचने लगे, और सुस्वर कंठवाले गायक उस पर चँवर हिलने लगी जिसकी डंडी कुरुवंशकी स्तुतिसे भरे गीत गाने लगे। सोनेकी थी और जो चन्द्रकिरणोंके समान जो लोग बाजा बजानेके काममें शिक्षा | स्वच्छ थी। बन्दोजन उसे वन्दन करके पाकर निपुण हो गये थे, वे मृदङ्ग, झाँझ. उसकी गुणावली गाने लगे । इतनेमें रथ-
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महाभारतमीमांसा