- राजकीय परिस्थिति।
३१३ कि धार्मिक कृत्योंमें उनकी कितनी श्रद्धा भिन्न भिन्न राजाको धोखेबाजीका थी। अतएव ऐसा समझा जाता था कि डर भी हमेशा रहता होमा । अतएव यह राजाके लिए पुरोहितकी अत्यन्त प्राव- अनुमान किया जा सकता है कि उस श्यकता है। उसके विषयमें कहा गया है समय अधिकारी लोगोंकी नीतिमत्ताबहुत कि वह प्राचारवान, कुलीन और बहु- सन्देह-युक्त रहती होगी। स्वदेश और श्रुत होः और राजा अपने पुरोहितका स्वराज्यकी प्रीति प्रायः कम रही उचित आदर-सत्कार करे । पुरोहित बहुधा होगी; क्योंकि राजा बहुधा क्षत्रिय और वंशपरंपरागत न हो । पाण्डवोंने धौम्य स्वधर्मी होते थे, इसलिए उनके बदलने ऋषिको अपना नया पुरोहित बनाया था पर प्रजाकी बहुन हानि नहीं होती और ऐसा वर्णन है कि उससे उनका थी। राजाके बदल जानेसे अपराधी- बहुत उत्कर्ष भी हुआ। होमशालाके लिए अधिकारी लोगोंका हमेशा फायदा हुआ अलग याजक रहता था। ज्योतिष पर करता था। यह दशा भारत-कालमें न पूरा भरोसा होनेसे यह श्राशा है कि गज-होगी, पर महाभारत-कालमें अवश्य दरबारमें ज्योतिर्विद नियत किया जाय । होगी। इसके श्रागेके कालमें भी दुर्दैवसे वह सामुद्रिक जाननेवाला, धूमकेतु, हिन्दुस्थानकी यही दशा देव पड़ती है। भूकम्प, नेत्रस्फुरण श्रादि उत्पात जानने- दगड-नीतिमें विस्तारपूर्वक नियम बतलाये वाला, तथा भावी अनौँका अनुमान गये हैं कि गजा कैसे और कितने जासूस करनेवाला हो । इसके सिवा राजाके रखे और किस किसके लिए रखे। अनेक पास एक न्यायाधीश भी अवश्य रहा देशोके गज्योंके उपर्युक्त अठारह अधिका- करता था। इसका वर्णन आगे किया | रियों पर, हर एकके पीछे नीन तीन जासूस जायगा । इसी प्रकार सेनापति और सेना- रखे जायें। अपने देशके जो तीन अधि. के अन्य अधिकारियोंका भी वर्णन आगे कारी छोड़ दिये गये हैं वे मंत्री, युवराज किया जायगा । कोषाध्यक्ष, दुर्गाध्यक्ष और पुरोहित हैं। इनकी जाँच या परीक्षा आदि भिन्न भिन्न विभागोंके अध्यक्षोंको, चरोंके द्वारा नहीं की जाती थी। इसका वर्तमान प्रचलित भाषाके अनुसार, सुप- कारण समझमें नहीं पाता। श्राशय यह रिण्टेण्डेण्ट कह सकते हैं । इनका दर्जा | होगा कि इनकी जाँच बहुधा राजा स्वयं सचिव या मंत्रीसे कुछ कम था: तथापि करे। अतएव ये तीनों अधिकारी ईमान- वे महत्वके अधिकारी थे और वंशपरंपग- दार और कभी धोखा न देनेवाले माने से ईमानदार समझे जाकर नियत किये जाते होंगे। जामूस एक दूसरेको पहचा- जाते थे। नने न हों। उनका भेष पाखगडीके समान इन अधिकारियोंके अतिरिक्त एक रहना चाहिए। ऐसा वर्णन है कि वे महत्यका विभाग गुप्तदृनी या जासूसोंका माग हाल प्रभुको अर्थात् गजाको ठीक था। जासूस या डिटेक्टिव सय देशोंमें ठीक बतावें। यह भी बतलाया गया है कि तथा सब कालमें रहते ही हैं । परन्तु ऐसा जाममीका प्रवन्ध रहते हुए भी राजाको जान पड़ता है कि महाभारत-कालमें चाहिए कि वह स्वयं हर एक काम पर जासूसोका महत्व बहुत था। मालूम होता दक्षतापूर्वक निगाह रखे। है कि धोखा देकर पर-राज्योंको जीत लेनेका राजाके प्रतिहारी और शिरोरक्ष महत्व उस समय बहुत होगा, और (आधुनिक शब्दोंमें पडिक्यांप पीर बाडी- ४०