पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/३३८

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महाभारतमीमांसा

& महाभारतमीमांसा 8 और न उससे बहुत दूर ही रहना चाहिए। अस्तु: और दो तीन बातें राजाके राजाके आज्ञानुसार चलना चाहिए । सम्बन्धमें कहने योग्य हैं। प्रथम राजाज्ञाकों ओर दुर्लक्ष नहीं करना राजा गुणशताकीर्ण एष्टव्यस्तादृशो भवेत् । चाहिए । उसके साथ प्रिय और हितकारी (शान्ति०.११८-२२) भाषण करना चाहिए । ऐसा कभी इत्यादि श्लोकोंमें राजाका देशज एक न समझना चाहिए कि राजा मुझसे सु-गुण बतलाया गया है। दूसरे भीष्मने प्रसन्न है। राजाकी दाहिनी या बाई ओर कहा है कि एक हजार शूर और चुने हुए बैठना चाहिए। राजाके पीछे रक्षकोंके घुड़सवार हो तो पृथ्वीका राज्य जीता बैठनेकी जगह होती है । सामनेका आसन जा सकता है। सदा छोड़ दिया जाय । राजाके समक्ष शक्या चाश्वसहस्रोण वीरारोहेण भारत । अपनी होशियारीका घमराड कभी न संगृहीतमनुष्येण कृत्स्ना जेतुं वसुंधरा ॥ करे-यह घमण्ड न करे कि मैं होशियार (शान्ति० ११८-२८) हूँ या शूर हूँ। घमण्डी पुरुषका राजाके तीसरे, द्रव्य-सञ्चयके सम्बन्धमें यहाँ अपमान होता है। राजाके सामने इतनी सावधानी होनी चाहिए कि राजा किसीके साथ धीरे धीरे बातचीत करते द्रव्य-प्राप्तिकी किसी छोटी मदको भी न रहने, हाथ पैर हिलाते रहने, या इधर छोड़े। “नार्थमल्पं परिभवेत्” (शान्ति उधर थूकनेकी मनाही है । बहुत जोरसे १२०-३६) । चौथे, राजा राष्ट्र की रक्षा करे हँसना न चाहिए । राजाका अपराध न और राष्ट्र राजाकी रक्षा करे। करना चाहिए । राजाके सन्मुख या उसके गजाराष्ट्र यथाऽऽपत्सु द्रव्योधैरपि रक्षति। पीछे उसकी स्तुति ही करनी चाहिए। उसके दोष नहीं हूँढने चाहिएं। सागरण गजा व्यसने रक्षितव्यस्तथाभवेत॥ (शांति० १३०-३१) मिथ्या प्रशंसा भी न करनी चाहिए। राजा- । धिक तम्य जीवितंराष्ट्र राज्ञो यस्यावसीदति। के हितकी ओर सदा ध्यान देना चाहिए। प्रवृत्यान्यमनुप्योऽपि यो वैदेशिक इत्यपि॥ गजा बुलावे तो सेवक तुरन्त ही उसके। (शांति० अ० १३०-३४) सामने उपस्थित हो जाय और जो काम हो उसे कर दिखाये। राजकार्य में पड़ने अधिकारी। पर स्त्री, पुत्र, गृह आदिका स्मरण नहीं यह कहा गया है कि मंत्री, अमात्य करना चाहिए । राजाकी पोशाककी नाईं आदि पदों पर जो अधिकारी राजाके अपनी पोशाक न रखे । किसी अधिकार-. द्वारा नियत किये जायें वे होशियार, के पद पर रहते हुए न तो राजाके धन- ईमानदार, सदाचार-सम्पन्न और वंश- को छूए और न किसीसे रिशवत ले। परंपरागत हो । उनका सदा उचित सत्कार वाहन, वस्त्र, आभूषण आदि जो कुछ किया जाय। उन्हें उचित वेतन दिया जाय। राजासे मिला, उसका आनन्द सहित : यह बात विशेष रूपसे कही गई है कि स्वोकार करे और उसे पहने।" हर एक राजाका एक पुरोहित भी होना चाहिए । लीकार करेगा कि राजदरबारके नौकरों- उस समयके लोगोंकी धर्म पर श्रद्धा, तथा के लिए धौम्यके बतलाये हुए उपर्युक्त यज्ञयागादिसे निश्चयपूर्वक होनेवाले नियम सर्वकालमें सब अधिकारियोंके सांसारिक लाभोंके सम्बन्ध विचार पालने योग्य हैं। करनेसे ठीक ठीक ध्यानमें आ जाता है