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- महाभारतमीमांसा #
दण्ड-स्वरूप। नहीं कि वृहस्पतिका यह ग्रन्थ और शुक्र- की नीतिका ग्रन्थ, दोनों महाभारत-कालमें प्रजाका पालन करना और प्रजाका प्रसिद्ध थे और उनके तत्व महाभारतांत- न्याय करना ही राजाका प्रधान कतव्य र्गत शान्ति पर्वके गजधर्म-भागमे दिये था। दुष्ट मनुष्यको दगड देनेका अधिकार गये हैं। मालूम होता है कि ये तत्व बहुत राजाको था । गजाके इस अधिकारको उदात्त स्वरूपके थे, और महाभारत-कालमें 'दण्ड, संज्ञा प्राप्त हुई थी। महाभारत-गजकाज नथा राज्य-व्यवस्था सम्बन्धी काखमें इस दगडका एक विलक्षण स्वरूप कल्पना वहत ही अच्छी थी। परन्तु इस प्रस्थापित हो गया था। शांति पर्वके १२१व बात पर भी ध्यान रहे कि महाभारत- तथा १२२वं अध्यायोंमें इसका वर्णन है। कालमें 'राजसत्ता क्षत्रियोंके ही अधीन बह दगड कैसा होता है ? उसका ग्वरूप. श्री श्री ब्रह्मान दराड उन्हींको सौंप दिया क्या है ? उसका आधार कौनसा है ? था। समाजमें क्षत्रियोंको राजसत्ताका इत्यादि प्रश्न युधिष्ठिरने किये है और इनके अधिकार प्राप्त था। परन्तु ब्राह्मण-वर्ग उत्तर देते हुए भीष्मने दगडका वर्णन ' उनसे भी श्रेष्ठ माना जाता था । बहुधा किया है। यह एक चमत्कारिक रूपक राजा लोगांकी श्रद्धा धर्म में पूर्णतासे रहा है। "इस दगडको प्रजापनिने प्रजाके संर- करती थी. इस कारण धर्मकृत गज-व्यव- क्षणके लिए ही उत्पन्न किया है । उसीका । हारके नियमोको तोड़ देनेके लिये वे नाम है व्यवहार, धर्म, वाक और वचन । सहसा उद्यक्त नहीं होते थे । यदि धे यदि इस दगडका मदैव तथा उचित उप. . उद्यक्त हो भी जॉय, नो उन पर ब्राह्मणों- योग किया जाय तो धर्म, अर्थ और काम- धाक रहा करती थी: इस कारण विद्या की प्रवृत्ति होती है। इसका उपयोग सम- और वनसे सम्पन्न ब्राह्मण उन्हें उपदेश बद्धिसे तथा गगढषका त्याग कर किया दिया करते थे। अतएव, प्राचीन-कालम जाना चाहिए। यह दगड श्याम वणका राजसत्ता चाई कितनी ही अनियंत्रित क्यों है। इसके दंगा, चार बाहु, पाठ पैर. नरडी हो. परन्तु उससे अत्याचार या अनेक नेत्र और शंकुतुल्य कर्ण है । वह अंधाधुन्धी कभी उत्पन्न नहीं हुई। बृह जटा धारण किये और कृष्णाजिन पहने म्पतिकी कथासे यह भी देख पड़ता है है । ब्रह्माने उसे क्षत्रियोंको ही दिया है, है, कि विद्या-विनय-सम्पन्न ब्राह्मण गज- अन्य लोगोंको नहीं । राजाको उचित है - सत्ताके बाहर थे। अब हम विस्तारपूर्वक या कि वह उसका मनमाना उपयोग न करे, 1. इस बातका विचार करेंगे कि राजकीय किन्तु ब्रह्माने जिस दगड-नीतिका निर्माण संस्थाएँ दगडनीतिके अनुसार किस तरह किया है, उसके अनुसार उसका उपयोग अपना काम करती थीं। करे। राजाके समस्त कर्तव्य इस दगड- नीतिके ग्रन्थमें बतलाये गये हैं। मनुष्य- बृहस्पति-नीतिमें वर्णित विषय । की आयु बहुत छोटी होती है, इसलिए इसमें सन्देह नहीं कि बृहस्पति और बृहस्पतिने उस ग्रन्थको संक्षिप्त कर दिया । शुक्रके ग्रन्थोंके आधार पर ही, शान्ति है।" ऐसा अनुमान करनेमें कोई ज पर्वके ५६ वे अध्यायमें, दगड-नीतिका • इस स्वरूपकी कल्पनाको ममझा देनेका प्रयत्न वर्णन मंक्षेपमें किया गया है। शुक्रनीति टीकाकारने किया है। इस पर आगे विचार किया जायगा। ! ग्रन्थ इस समय उपलब्ध है, परन्तु उसमें