३०४ ॐ महाभारतमीमांसा बीच इकरार हुआ था। पाश्चात्य देशोंमें दे, मुख्यतः जमीनकी पैदावारीका दश- हॉब्स आदि राजकीय तत्ववेत्तात्रीने यह मांश. पथ तथा व्यापार आदिका पचा- सिद्धान्त प्रदिपादित किया है कि श्रारम्भ- सवाँ हिस्सा दे । यह मान लेने में कोई में राजा और प्रजाके बीच इकरार होता हर्ज नहीं कि प्राचीन कालमें भरतखण्डके है। इस बात पर ध्यान रहे कि हज़ारों गजा और प्रजा दोनों इस प्रतिक्षाके अनु- वर्ष पहले भारती प्रार्योंने यही सिद्धान्त सार चलते थे और राजा लोग इससे प्रतिपादित किया था। शान्ति पर्वके ६७३ अधिक कर नहीं लेते थे। अध्यायमें यह वर्णन है कि पहले राजाके __ अराजकताके दुष्परिणाम । न रहनेसे बली निर्बलको, जलकी मछ- लियोंकी नाई खाने लगे। नय सब लोगों- प्राचीन कालमें इस प्रकार इकरार. ने मिलकर नियम किया कि "जो कोई सम्बन्धी और धर्मशास्त्र-सम्बन्धी दोनों किसीसे कटु भाषण करेगा, उसे मारेगा, कल्पनाओंके प्रचलित होनेसे गजात्रोको या किमीकी स्त्री या द्रव्यका हरण करेगा. मनमाना व्यवहार करनेका मौका नहीं उमे हम त्याग देंगे। यह नियम सब मिलता था। यदि कोई राजा अत्याचार वर्गों के लिये एकमा है"। परन्तु जब करे भी, तो उसके अत्याचारको कायदेका इमका परिपालन न हुश्रा नब सारी प्रजा स्वरूप प्राप्त नहीं हो सकता था, इसलिए ग्राह्माके पास गई और कहने लगी कि उसका जुल्म कुछ थोड़ेसे लोगोंको हानि हमाग प्रतिपालन करनेवाला कोई अधि-पहुँचाता और सारे राष्ट्र के लिए हानिकर पति हमें दो । नव ब्रह्माने मनुको श्राशा नहीं होता था। इस बात पर भी ध्यान दी। उस समय मनुने कहा- "मैं पापकर्म- देना चाहिए कि गजा चाहे जितना अत्या- से डरता है। असन्मार्गमे चलनेवाले चारी कयों न हो, परन्तु जिस समाजमें मनुष्यों पर गज्य करना पाप है।" तब अराजकता प्रबल है उसकी अपेक्षा, गज- लोगोंने कहा,-"गष्टमें जो पाप होगा मो सत्तासे शामिल राज्य सदाअधिक बलवान् कर्ताको लगेगा। तू मत डर। तुझे हम और सुखी रहता है। अराजकतासे उत्पन्न पशुओका पचासवां हिस्सा और अनाज- होनेवाले परिणाम महाभारतमें उत्तम का दशमांश देंगे। कन्याओंके विवाहके रीतिसे वर्णित हैं । ऐसी अराजक परि- समय हम तुझे एक कन्या देंगे। शस्त्र, स्थिति इतिहासमें बार बार उत्पन्न हुआ अस्त्र और वाहन लेकर हमारे मुखिया करती होगी, इसलिए इसके बुरे परि- लोग तेरी रक्षाके लिए तेरे साथ रहेंगे। गामांकी श्रोर लोगोंका ध्यान आकर्षित तू सुख तथा प्रानन्दसे राज्य कर। हम हुश्रा होगा । शांति पर्वके ६८ – अध्याय- अपने धर्माचरणका चौथा हिम्सा भी में यह वर्णन है-"गजा धर्मका मूल है। तुझे देगे।" इसको स्वीकार कर मन अधर्मी लोगोको दंड देकर वह उन्हें राज्य करने लगा। अधर्मी लोगों और रास्ते पर लाना है । जैसे चन्द्र और सूर्य- शत्रुओको दण्ड देकर धर्मके समान उसने के न होनेसे जगत अँधेग्में सुस्त हो राज्य किया। इस कथामें इकरार-सम्बन्धी जायगा, वैसे ही राजाके न होनेसे सब यह कल्पना की गई है कि राजा, धर्मके लोग नष्ट हो जायँगे । कोई यह न कह अनुसार प्रजा पर राज्य करे तथा अध- सकेगा कि यह वस्तु मेरी है। गजाके न र्मियोंको दगड दे: और प्रजा उसे करहोनेसे स्त्री, पुत्र, द्रव्य आदि सब नष्ट हो
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महाभारतमीमांसा