३००
- महाभारतमोमांसा*
है। जरासन्धके ही भयसे हम लोग मथुरा के राज्य भी उस साम्राज्यमें शामिल देश छोड़कर द्वारकामे जा बसे है " ! कर लिये गये थे और वहाँके राजवंश (सभा० अ०१४) नष्ट कर दिये गये थे। बुद्धको मृत्युके श्रीकृष्णके उपर्युक्त भाषणसे यह बाद मगधोंने प्रथम काशी और कोसलके मालूम होता है कि सम्राट या बादशाह- राज्य अपने राज्यमें मिला लिये। इसके को नियुक्त करनेकी जो पद्धति हिन्दुस्थान- बाद उन्होंने धीरे धीरे पूर्वी तथा पश्चिमी में पोछेसे जारी हुई, वह ब्राह्मणोंके गज्योंको भी जीतकर अपने राज्यमें मिला भयसे और ब्राह्मणों के सामर्थ्यको गिराने लिया । हमारा मत है कि इसी समयके के लिए जारी की गई थी। अर्थात् अनु- लगभग कायरसने जो पर्शियन साम्राज्य मान यह निकलता है कि एक समय स्थापित किया था, उसीके अनुकरण पर राजाओंको ब्राह्मण असह्य हो गये यह बात हुई। अन्य राज्योंको जीतकर होंगे । परन्तु यह कल्पना ग़लत होगी। अपने गज्यमें शामिल करके वहाँ अपने इसका विचार आगे चलकर किया। अधिकारियो,गवनरोया सॅदपोको नियुक्त जायगा । यहाँ कहा गया है कि सम्राट या करनकी रीति पर्शियन बादशाहोंने पहले बादशाहको नियुक्त करने की जो नयी जारी की। इसीके अनुकरण पर मगधके रीति चल पड़ी थी, वह सब राजा लोगों- सम्राटाने अन्य क्षत्रिय राज्योंको नष्ट की सम्मतिले प्रचलित हुई थी। इस बात करनेका क्रम प्रारम्भ कर दिया । हिन्दु- पर अवश्य ध्यान देना चाहिए । इसमें स्थानमें क्षत्रियोंका अन्त करनेवालामगधा- सम्देह नहीं कि सम्राट गजाको सम्राट धिपति महानन्दी था। इस बातका वर्णन, होनेका चिह्न प्रकट करना पड़ता था: महाभारतके अनन्तर जो पूराण हए. उनमें अर्थात् उसे राजसूय यज्ञ करनापड़ता था: स्पष्ट पाया जाता है । मगधोंके इन और ऐसे यज्ञके लिए उसे दिग्विजय करके सम्राटीन, विशेषतः चन्द्रगुप्मने, पर्शियन भिन्न भिन्न राजा लोगोंको जीतना पड़ता बादशाह दारियसकी स्थापित की हुई सब था । परन्तु यह भी सिद्ध है कि सम्राटको रीतियाँ पाटलीपुत्रमें जारी कर दी। महा- कई राजा लोग स्वयं अपनी ही इच्छासे । भारतमें ऐसे साम्राज्योंका कुछ भी पता मान्य करके कर देते और राजसूय यक्षको नहीं है। यह स्वीकृत करना होगा कि सम्मति भी देते थे। इसी नियमकं अनु- महाभारत चन्द्रगुपके साम्राज्यके बाद बना सार पाण्डवोंके दिग्विजयके समय | है। इससे कुछ लोग अनुमान करते हैं श्रीकृष्ण आदि लोगोंने स्वतन्त्रतापूर्वक कि महाभारतको मगधोंके साम्राज्यकी अपनी सम्मति दी और कर भी दिया। कल्पना और जरासंधका चित्र चन्द्रगुप्तके यहाँ हमें इस बात पर अवश्य ध्यान साम्राज्यके आधार पर बना है। परन्तु देना चाहिए कि भारत-कालमें साम्रा- यह अनुमान ठीक नहीं ऊँचता । जरा- ज्यकी जो यह कल्पना शुरू हुई, वह सिक- संधका साम्राज्य प्राचीन पद्धतिका है। न्दरके समयकी मगधोंके साम्राज्यकी अर्थात् , उसमें जीते हुए राष्ट्रोको नष्ट कल्पनासे भिन्न थी। बौद्ध लेखोंसे मालूम करनेका कुछ भी प्रयत्न नहीं किया गया होता है कि मगधोंका साम्राज्य न केवल था । साम्राज्यकी कल्पना बहुत पुरानी अन्य राजाओंको जीतकर ही स्थापित अर्थात् ब्राह्मण-कालीन है और उसका हुआ था, किन्तु उस समय अन्य राजा-सम्बन्ध राजसूय यासे है। उसमें बाद-