पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/३२२

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
२९६
महाभारतमीमांसा

२६६ महाभारतमीमांसा * धनने जब दिग्विजय किया, तब उन्होंने ब्राह्मण लोगोंकी दशा बहुत स्वाधीन किसीके राज्यको अपने राज्यमें शामिल रहा करती थी। वे राजसत्तासे दवे नहीं नहीं कर लिया; सिर्फ पराजित राजाओंने रहते थे। इसके सिवा यह बात भी थो उनका साम्राज्य स्वीकार किया और यम-कि हर मौके पर, ग्रीस देशके समान के समय उन्हें नजराने दिये । इससे यहाँ भी, राजा लोग जनताकी राय लिया कल्पना की जा सकती है कि भारती- करते थे। उदाहरणार्थ, युवराजके नातेसे कालके लोग कितने स्वातन्त्र-प्रिय थे। राज्यका प्रबन्ध रामके अधीन कर देना इससे आश्चर्य न होगा कि ब्राह्मण-कालसे उचित होगा या नहीं, इसका विचार महाभारत-कालतक लोगोंके एकसे ही करनेके लिए दशरथने लोगोंकी एक सभा नाम क्यों पाये जाते हैं। कोसल, विदेह, की थी । रामायणमें इसका बहुत सुन्दर शूरसेन, कुरु, पाश्चाल, मत्स्य, मद्र, केकय, वर्णन है। ऐसी सभात्रोंमें ब्राह्मण, क्षत्रिय गान्धार, वृष्णि, भोज, मालव, जुद्रक, और वैश्य निमन्त्रित किये जाते थे। सिन्धु, सौवीर, काम्बोज, त्रिगर्त, श्रानत अर्थात् इन सभाओंमें बैठनेका श्राोको आदि नाम ब्राह्मण-प्रन्थों में तथा महा अधिकार था। राजसत्ता केवल अनिय- भारतमें भी पाये जाते हैं। कहना होगा न्त्रित न थी, किन्तु जनताकी राय लेनेमें कि सैकड़ों वर्षों के परिवर्तनमें भी ये राज्य : राजा लोग सावधानी रखते थे । महा- ज्योंके त्यों बने रहे. और उन लोगोंने भारतमें भी स्पष्ट देख पडता है कि लोगों- अपनी स्वाधीनता स्थिर रखी। उनके नाम की राय लेनेकी परिपाटी थी। युद्धके लोगों परसे पड़े थे, इससे भी उनकी समय, हस्तिनापुरमें, राजा और ब्राह्मण स्वातन्त्र्य-प्रियता व्यक्त होती है। केवल लोगोको ऐसी ही सभा बैठी थी; और एक 'काशी' नाम लोगोंका तथा शहरका वहाँ युद्ध के सम्बन्ध सब लोगोको राय समान देव पड़ता है। शेष अन्य नाम लेनेकी आवश्यकता हुई थी। वहीं श्री- कुरु-पाञ्चाल आदि नामोंके समान देश- । कृष्णने भाषण किया। कभी कभी राजाके वासी राजा और देशके भिन्न भिन्न थे। चुनावका भी अधिकार लोगोंको था । लोगोंका नाम दूसरा और नगरका या राज- ' युद्ध के पश्चात् , सब ब्राह्मणों और राजा धानीका नाम दूसरा हो, परन्तु लोगोंका लोगोंकी अनुमतिसे ही, युधिष्ठिरने अपने और देशका नाम हमेशा एक रहता ही था। आपको अभिषिक्त कराया था। खैर, इस राजसत्ता। • प्रकार राजाओंकी सत्ता सभी स्थानों में स्थापित हो गई थी, यह बात नहीं है। अन्य इन अनेक छोटे छोटे राज्यों में राज-: प्रकारको सनाका क्या प्रमाण मिल सकता कीय व्यवस्था प्रायः राजनिबद्ध रहती थी। है. यह हमें यहाँ देखना चाहिए। यूनानियोंके इतिहास में भी यही देख प्रीस देशमें जैसे प्रजासत्ताक या पड़ता है कि होमरने जिन अनेक लोगों- अल्पजनसत्ताक राज्य स्थापित हुए थे, का वर्णन किया है, उनमें प्रभु राजा ही वैसे हिन्दुस्थानमें भी कहीं कहीं स्थापित ये। इसी प्रकार, हिन्दुस्थानमें भी, इन हुए थे। यहाँ इस व्यवस्थाके होनेका कुछ छोटे छोटे राज्योंमें राजकीय सत्ता राजा हाल अप्रत्यक्ष रीतिसे महाभारतसे मालूम लोगोंके ही हाथमें थी । परन्तु सर्व पड़ता है। यूनानी इतिहासकारोंने लिख साधारण प्रायः स्वतन्त्र थे । विशेषतः रखा है कि हिन्दुस्थान में प्रजासत्ताक