- सामाजिक परिस्थिति-रीति-रवाज । *
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पर्दा। का वर्णन कुछ भिन्न किया है। वह यहाँ बात दर्शाई गई है कि घोणाके षड्ज उद्धृत करने लायक है । "सैंकड़ों स्त्रियाँ स्वरमें लगे हुए तारसे गान्धार स्वर, राजाके आसपास खड़ी रहती हैं: और पीछेसे, मूर्च्छनाके द्वारा निकलता है। इस चक्र (घेरे ) के बाहर हाथमें भाला : क्षत्रियोंकी बेटियोंको गाना और नायना लिये सिपाही तैनात रहते हैं। रास्तेमें दोनों कलाएँ सिखाई जाती थी, यह बात दोनों भोर डोर बाँधकर राजाका मार्ग अन्यत्र लिखी जा चुकी है। अब ऐसी पृथक किया जाता है। फिर इन डोरियोंके रीति प्रचलित नहीं है। भीतर यदि कोई स्त्री-पुरुष श्रा जाय तो उसे प्राणदण्ड दिया जाता है। राजाके आगे, जलूसमें, नकारे और घण्टे बजाते महाभारतके समय भारती लोगोंमें हुए सिपाही लोग चलते हैं। इस तरह पर्देकी रीति थी या नहीं ? इस प्रश्न पर ठाठके साथ राजा शिकारके लिये निक- अन्य स्थानमें विचार किया जा चुका है। लता है। चारों ओरसे घिरी हुई जगहमें भारती युद्ध के समय क्षत्रिय लोगोंकी वह शिकार खेलता है और एक ऊचे : अथवा ब्राह्मणांकी स्त्रियोके बीच पर्देका बनाये हुए मण्डप (शायद मचान) से ' चलन न रहा होगा । परन्तु महाभारतके बाण छोड़ता है। उसके साथ हथियार- समय ऐसी स्थिति अवश्य थी। महा- बन्द दो-तीन स्त्रियाँ पहरेदारिन रहती है। भारत अथवा रामायणमें और किसी यदि खुले मैदान में शिकारके लिये राजा अवसर पर द्रौपदी या सीताके पर्देमें चला ही गया तो हाथी पर सवार होकर रहनका वर्णन नहीं है। यदि पर्दा होता तो शिकार खेलता है।" कुल क्षत्रियोंको द्रौपदी पर जयद्रथकी और सीता पर शिकारका बेहद शौक था; और ऐश- : गवणकी नज़र ही न पड़ी होती । तथापि, आराममें डूबे हुए गजातक, बड़े बन्दो- महाभारत-कालके वर्णनमें यह श्लोक है- बस्तके साथ, घरी हुई जगहमें शिकार अपूर्वा या नार्यः पुग देवगणैरपि । खेला करते थे। पृथक्जनेन दृश्यन्ते तास्तदानिहतेश्वराः (स्त्री पर्व अ०१०)॥ गाना। इस श्लोकमे मालूम होता है कि इसमें कोई सन्देह नहीं कि महा- विधवा स्त्रियाँ बाहर निकल सकती थी। भारतके समय हिन्दुस्तानी लोग गानेके, और स्त्रियों अर्थात् सौभाग्यवती स्त्रियोंको शौकीन थे। और, गानेका मुख्य वाद्य उत्तरीय धारण करना पड़ता था । उसीमें वीणा था। महाभारत-प्रणेताको गानेका वे अपना मुँह छिपा लेती थी। किन्तु अच्छा ज्ञान था । मीचेवाले श्लोकसे यह कालिदासके समय इससे भी बढ़कर बात सिद्ध होती है। पर्वका रवाज हो गया। उसने अपनी वोणेष मधुरालापागान्धारं साधु मूर्च्छती। शकुन्तलाको उत्तरीयके अतिरिक्त एक अभ्यभाषत पाश्चाली भीमसेनमनिन्दिता ॥ तीसरा अवगुण्ठन अर्थात् मुसलमान (विराट पर्व अ०१७) | त्रियोकी तरह एक लम्बी चौड़ी चादर वीणाकी भाँति मधर पालाप करती उदा दी है। परन्तु महाभारतके समयका हुई द्रौपदी, गान्धार खरकी मूर्च्छना वैसा वर्णन नहीं किया गया। महाभारनकी करती करती बोलने लगी। इसमें यह शकुन्तला. ब्राह्मणीकी भाँति अवगुण्ठन-