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- महाभारतमीमांसा ,
था, उसके मरणका वर्णन स्ट्रेबो प्रन्थकार- लड़ाई में मरे हुए वीरोंकी लोथोंकी व्यवस्खा ने किया है। "पसरगादी शहर में जब वह उसी दिन हो जानेका वर्णन एक दिन बीमार हुआ तब उसकी उम्र में वह पहली भी किया हुआ नहीं पाया जाता । यूरोप- पहली बीमारी थी। अपनी आयुके ७३ वें के महाभयङ्कर युद्ध में भी इस सम्बन्धमें वर्षमें उसने, राजाकी प्रार्थना अस्वीकार जहाँतक हो सका, प्रयत्न किया गया है। करके, देहका अन्त कर दिया। एक चिता किन्तु भारती युद्धमें ऐसा प्रयत्न किया तैयार करके उस पर सोनेका पलङ्ग रखा हुआ नहीं देख पड़ता। उलटा यह देख और उस पर श्रारामसे लेटकर तथा पड़ता है कि लोथै खानेके लिये गीदड़ों श्रोदना श्रोढ़कर उसने चितामें आग लगा और जङ्गली हिंस्र पशुओंको पूरा २ मौका दी। कोई कोई यह भी कहते हैं कि उसने दिया जाता था। दुर्योधन, कर्ण और द्रोण एक कोठरी बनवाई और उसमें लता-पत्र प्रादि महाराजों तथा महायोद्धाओंके भर दिय: फिर उसमें आग लगा दो । वह मरने पर उनकी लोथोंको चटपट गाड़ देने समारम्भसे,गाजे-बाजेकेसाथ, वहाँ आया या जला देनेका प्रयत्न बिलकुल नहीं और चितामें कूद पड़ा। फिर वह लकड़ी- किया गया। इसके लिए पूरा पूग अव- की तरह जलने लगा।" हिरांडांटसने यो सर था और दोनों प्रोग्म इस कामक वर्णन किया है-"हिन्दुस्तानी योगी लिए अनुमति मिलने में कोई हानि न थी: किसी तरहकी हिंसा नहीं करते और फिर भी यह अचरजकी बात है कि ऐसी न किसी प्रकारका बीज बोते हैं । वे निरी कोई व्यवस्था नहीं की गई। युद्ध समाप्त वनस्पति पर अपनी गुज़र करते हैं: ओर हो चुकने पर गान्धारीने रण-भूमिका जो घरमें नहीं, वनमें रहते हैं। जब उनमें वर्णन किया है. उसमें कहा है कि बड़े बड़े कोई किसी रोगसे ग्रस्त होता है तब वह गजाओंकी लोथों और हड़ियोंको गिड जङ्गलमें एकान्तमें जाकर चुपचाप पड़ और गीदड़ खींच रहे हैं। विचित्र देख रहता है। फिर कोई खबर नहीं लेता कि पड़नवाली इस स्थितिका समुचित कारण वह मर गया अथवा जीवित है।" महा- 'शान्ति पर्वके २८ व अध्यायके एक महत्त्व- भारतमें इस प्रकार, दह-त्यागनेकी अनेक पूर्ण श्लोकमें देख पड़ेगा। गतियोंका वर्णन है। यही नहीं, उनकी : अशोच्या हि हतः शरः स्वर्गलोकं मही- विधि धर्मशास्त्रमें भी है। महाप्रस्थानकी यते। नान्नं नोदकं तस्य न स्नानंनाप्य. विधि धर्मग्रन्थों में और वैदिक साहित्यमें शौचकम् । ४५ वर्णित है। इसी प्रकार चिता-आरोहण रणमें मरे हुए शुरके लिए विलाप न करनेकी विधि और नदीमें जल-समाधि करना चाहिए, और न उसे अन्न या पानी लेनेकी विधि भी वर्णित है । हिरोडोटसने ही देना चाहिए: उसके लिए स्नान न करना जिस मरण-प्रकारका वर्णन किया है, वह चाहिए और न सूतक मानना चाहिए।" प्रायोपवेशनकी रीति है। श्वासको रोक- इस विचित्र श्लोकसे इस बातकी कल्पना कर प्राण छोड़ देना प्रायोपवेशन है । इस हो सकेगी कि और तरहकी मृत्युकी विधिसे प्राण त्यागने पर उस समय : अपेक्षा युद्धकी मृत्यु कितनी पुण्यकारक आत्म-हत्या न समझी जाती थी। मानी जाती थी । और इस बातका शव-संस्कार। भी कारण देख पड़ेगा कि मृतक- महाभारतमें युद्धके प्रत्येक दिन, सम्बन्धी समस्त विधि क्यों छोड़.दी