पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/३०३

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  • सामाजिक परिखिति-रीति-रवाज । *

% 3D सभामें गये तब "तत्र जाम्बूनदमयं पर्यत की जाती थी। शेष वाहनोंका विचार सुपरिष्कृतम् । विविधास्तरणास्तीर्णम- अन्य स्थानमें किया जायगा। भ्युपाविशदच्युतः ॥" यह वर्णन है इस प्रकार महाभारतसे और तत्का- (उद्योग० अ० १०६)। इन पर्यों पर 'लीन यूनानी लेखकोंके लिखित वर्णनोंसे गहे पड़े रहते थे और उन पर सफ़ेद हमें भारती पार्योके वस्त्रों और प्राभूषणों के चाँदनियाँ बिछी रहती थीं । टिकनेके लिये सम्बन्धमें कुछ कुछ बाते मालूम होती है। तकिये भी रहते थे। द्रौपदीके स्वयम्वरके (३) रीति-रवाज। समय भिन्न भिन्न मञ्चकों पर राजाओंके । बैठनेका वर्णन है। इन मञ्चकों पर भी भारती आर्योंके सम्बन्धमें अबतक बेशकीमतो, बड़े बड़े बिछौन बिछ थे। जो बात लिखी गई हैं, उनसे मालूम होगा आजकल इस ढङ्गके पर्यङ्क बैठने के काममें कि भारती-युद्धके समय हिन्दुस्थान में नहीं आते: इस कारण उनकी ठीक ठीक बाहरसे आये हुए आर्योके साथ यहाँके कल्पना भी नहीं की जा सकती। तथापि रहनेवालं नाग आदि अनार्योका पूरा पूरा बङ्गाल और युक्तप्रदेशकी ओर बड़े बड़े मेल न होने पाया था। भारती-समयमें यह तहतों पर गहे बिछाकर बैठनकी रीति : मेल हुा । श्रीर, महाभारतके समय भारती पायो तथा अनार्योकाएक समाज अब भी है। इसके सिवा रियासतोंमें बन गया था: तथा भिन्न भिन्न जातियाँ जिस जगह सरकारी गद्दी होती है, वहाँ प्रेमम एक स्थान पर रहने लगी थी। इस प्रकारकं पर्यङ्क बिछाये जाते हैं। गजाओंके बैठने के लिये सिंहासन रहने.. __उनके शादी-ब्याहमें आर्य और अनार्य का भी वर्णन है। यह सिंहासन एक चौकी ' दोनों गतियोंका मिश्रण हो गया था। ही है । परन्तु यह सोने या रत्नोंसे भूषित इसी प्रमाणसे उनके शील और रीतियोंमें होता था। चारों पायोंमें मिहके नकली .. । दोनों जातिवालोंका मिश्रण होकर महा- चेहरे लगे होते थे और उन पर गही होती :- भारतके समय दोनों जातियोंका एकजीव थी । चीनी यात्री हुएनसांगने वर्णन 'हो गया था । पाश्चात्य आर्य यूनानियोंके किया है कि-"गजाओंके सिंहासन : · साथ जिस समय हिन्दुस्तानमें आये, उस 'समय उन्हें यहाँ किसी रीतिसे भिन्न बहुत ऊँचे, पर तङ्ग होते हैं और उनमें : छोटे मोतियोंकी झालर लगी होती है। भाव नहीं देख पड़ा। और, उन्होंने भारती अायोंका जो वर्णन किया है, उसमें आर्य- सिंहासनके पास, रत्नोंसे भृषित पादपीठ ० अनार्यका भेद-भाव ज़रा भी नहीं दिख- होता है, अर्थात् पैर रखनेके लिए छोटी- सी चौकी होती है।" राजा लोग सोनेकी : लाया । महाभारतमें भी आर्य-अनार्यका भेद खासकर जांतिका नहीं, भले-बुरेका पालकीमें बैठकर इधर उधर विचरते और । है। फिर भी ध्यान देनेकी बात यह है कि इन पालकियोको मनुष्य कन्धे पर रखकर । वह शब्द अब भी जातिवाचक था । तथापि ले चलते थे इसीसे इनको नरवाहन कहा लोगोंके शोल और रीतियोंका विचार गया नहुषकी कथामें करते समय ऐसा भेद करनेकी हमें आव. ऐसा ही नरवाहन है। इससे ज्ञात होता श्यकता नहीं। है कि बहुधा राजा लोग ही इस वाहन . से काम लेते थे। इस कारण ये पाल- घेशस्त्रियाँ। कियां सोनेस मदी और रजोसे सुशोभित। पहली बान यह है कि भारती समाज