2 सामाजिक परिस्थिति-वस्त्र । ॐ जड़ाऊ गहने पहनती थी। हिन्दुस्तानमें पट्टी होती थी। और इसी कारण राजा विपुलतासे उपजनेवाले मोतियोंको की प्रधान स्त्रीको पटरानी कहनेका मिल्टनने जङ्गली मोती कहा है; और रवाज था । इसके अतिरिक्त खियों के यूनानी इतिहासकारने कहा है कि हिन्दु मुख्य भूषण कमरमें पहननेके लिये काशी स्तानियोंने सारी दुनियाकी अभिरुचि या रशना और पैरोंके लिये नूपुर थे। बिगाड़ दी है-लोगोंको मोतियों के लिए कानोंके लिये कुण्डल और बाहुबोके बेहद कीमत देना सिखलाया है। प्रस्तुः लिये केयूर थे ही। यह तो प्रकट है कि अब देखना है कि महाभारतके समय त्रियोंके कुण्डल और केयूरोंकी बनावट किस किस प्रकारके गहनोंका उपयोग पुरुषों के केयूर-कुण्डलोंसे भिन्न होती थी। स्त्री-पुरुष करते थे। किन्तु स्त्रियोंके इन आभूषणोंका नाम राजा लोग, रत्नोस जड़े हुए सोने-केयुर और कुण्डल ही था। रामायणका के मुकुट मस्तक पर धारण करते थे। ' यह श्लोक प्रसिद्ध है- निश्चयपूर्वक नहीं कह सकते कि ये । केयुरे नाभिजानामि नाभिजानामि मुकुट किस तरहके होते थे । फिर कुण्डले । नृपुरे त्वभिजानामि नित्यं पादा- भी यह अन्दाज है कि वे पाश्चात्य भिवन्दनात् ॥ मुकुटोंकी तरह न होंगे, बल्कि वैसे होंगे "सीताकं कानोंके कुराडलों और जैसे कि इस समय भी मुकुटोके चित्र 'बाहुओंके कंयुगेको मैं नहीं पहचानता: बनाये जाते हैं। मुकुट मस्तक भरके लिये हाँ, पैरोंके नूपुरोको भली भाँति पह- होगा और ऊपर गावदुम होता होगा। चानता है। क्योंकि मैं नित्य चरणोंकी ही कर्ण पर्वमें अर्जुनके किरीटका वर्णन है। वन्दना किया करता था।" इस श्लोकमें उससे प्रकट है कि वह सोनेका, मोतियों यह लक्ष्मणकी उक्ति है । इस उदाहरणसे और हीरोंसे जड़ा हुआ, कामदार तथा निश्चित है कि कानों और बाहुओके बहुत बढ़िया बनावटका था।धारण करने- स्त्रियोंके श्राभूषणोका नाम केयूर-कुण्डल वालेको वह सुखदायी था। इससे जान ही था। स्त्रियोंके गले में तरह तरहके हार पड़ता है कि उसके भीतर मुलायम तह पड़े रहते थे और ये हार नाभितक लम्बे होगी। इसके सिवा राजा लोग कानों-! होते थे। कमरमें पहननेका पट्टा (कर- में हीरेके कुण्डल पहनते थे । इन कुण्डलो- 'धनी ) कड़ा नहीं, डोरीकी तरह लचीला का प्राकार गोल होगा । गले में पहननेके होगा। क्योंकि इस रशनाके लिये 'दाम' लिए मोतियों और रत्नोंके हार थे । अथवा 'सूत्र' शब्द प्रयुक्त देख पड़ते हैं। भुजाओंमें पहननेके लिए केयुर या अङ्गद : यूनानियोंकी स्त्रियोंके कमर-पट्टेका जैसा थे। मालूम होता है कि ये अङ्गाद सारी वर्णन है, वैसी अथवा वर्तमानकालीन बाँहको छिपा लेते थे। धनी लोग पहुंचेमें महाराष्ट्रीय महिलाओंके कमरबन्दकी कड़े और पहुँची पहनते थे । स्त्रियोंके तरह, यह रशना न थी।प्राचीन रशना तो गहने भी इसी प्रकारके होते थे, पर होते वैसी होगी जैसी कि मारवाड़ी त्रियाँ थे खूब कीमती। त्रियोंके लिये किरीट 'तागड़ी पहनती हैं: अथवा वैसी होगी या मुकुट न था। राजाओंकी स्त्रियोंके जैसी कि भिन्न भिन्न प्राचीन मन्दिरों में मुकुट तो नहीं परन्तु माथे पर बाँधनेके पाई जानेवाली स्त्रियोंकी मूर्तियों की कमर- लिए एक पट्ट अथवा सोनकी तक जड़ाऊ. में देख पड़ती है । ग्शनावामका उपयोग
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