पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/२८९

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  • सामाजिक परिस्थिति-वत्ल । *

विचित्र कपड़ोंके टुकड़े लगे हो। वह है, बहुधा धोती पहननेकी गति थी। घृत- उस टोपीको क्या समझेगी जिसमें परों- सभाके वर्णनसे यह बात प्रकट होती है। के जमावकी रचनाका शृङ्गार हो। अस्तु: द्रौपदी राजसभामें पकड़ लाई गई और यदि पाठकोंके आगे, प्राचीन कालकी दासी कहकर उसकी फजीहत की गई। भारती आर्य स्त्रियों और पुरुषोंकी तस- उस समय दुर्योधनने अपनी जाँध खोल- वीर उस पोशाक और गहनेसे सजा- . कर दिखाई । यहि वह पाजामा पहने कर. ज्योंकी त्यों खडी कर दी जाय कि होता तो ऐसा किस तरह कर सकता था। जिसे पहनकर वे समाजमें चलते-फिरते ऐसा तो धोती पहनी हुई अवस्थामें ही थे तो बहुत ही मनोरञ्जक हो। परन्तु यह हो सकता है । कुछ यह बात नहीं कि काम सरल नहीं, क्योंकि महाभारतमें । कमरसे ऊपरका अङ्ग सदा उत्तरीय वस्त्र. वस्त्रों और भूषणोंका उल्लेख बहुत कम है। से ढंका ही रहता हो, अनेक अंशोंमें वह जो है भी वह एक स्थान पर नहीं है-कुछ खुला ही रहता था। धनवानोंकी धोतियां कहीं है, कुछ कहीं। इस कारण उनको बहुत ही महीन होती थी और उनको एकत्र करके यह काम करना होगा। प्रावार कहा जाता था । शरीरको ढंकने- इसमे फिर भी रहेगा वह अपूर्ण ही। वाले उत्तरीय वस्त्रका उल्लंख बहुत ही .. कम स्थानों पर है। फिर भी यह निर्वि- (२) पुरुषोंकी पोशाक, दो वस्त्र । वाद है कि पुरुषोंके पास उत्तरीय वस्त्र महाभारतके समय भारती आर्य होता था। मामूली काम-काजमें उत्तीय पुरुषोंकी पोशाक बिलकुल मादी थी। वस्त्रमे कुछ दिक्कत न हो, एतदर्थ दो धोतियाँ ही उनकी पोशाक थी। एक विद्यार्थियोंके लिए यह नियम पाया जाता धोती कमरके नीचे पहन ली जाती और है कि दहिना हाथ दुपट्टेसे बाहर निकाल- दुसरी शरीर पर चाहे जैसे डाल ली! कर बायें कन्धे पर उत्तरीयमें गाँठ लगा जाती थी। भारतो आर्योकी यह पुगनी ले । मनुस्मृतिमें यह नियम "नित्य- पोशाक अबतक हिन्दुस्तानके पिछड़े हुए मुडपाणिः म्यान" इस रूपमें है। टीका- भागों और पुराण-प्रिय लोगोंमें मौजूद ! कारने इसका अर्थ किया है कि उत्तरीयसे है। प्राचीन समयमें पाश्चात्य युनानी और हाथ बाहर निकला हुआ रहे । यह मियम रोमन लोगोंको पोशाक भी इसी ढंगकी सिर्फ ब्रह्मचारियोंके लिए है, इससे जान थी । ये धोतियाँ अथवा वस्त्र बनाना पड़ता है कि औरोंके लिए उत्तरीय बहुत सरल था, इसीसे इनका चलन उस प्रोढ़नेका ग्वाज और ही तरहका रहा समय हो गया होगा। कया धनवान और होगा। नहीं कह सकते कि युद्ध के समय क्या गरीब, सभीके लिये यही मार्ग था योद्धा लोग उतरीयको किस प्रकार और धोती पहननेकी रीति एक ही दंगकी धारण किया करते थे। परन्तु वे ब्रह्मचारी- थी। फर्क इतना ही होगा कि बड़े श्राद- , की ही तरह दाहिना हाथ बाहर निकाल- मियोंकी धोतियोंका सूत-पोत महीन और कर बॉय कन्धे पर गाँठ लगाते होंगे। नफ़ीस होता होगा और ग़रीबोंकी : रोमन लोंगोमें जैसी टोगा पहननेकी चाल धोतियाँ मामूली मोटी-मोटीरहती होंगी।' थी वैसी ही रीतिका यहाँ होना भी पाजामा पहननेकी रीति प्राचीन समय- सम्भव है। और तो क्या, पुराने चित्रोंमें में न थी। और जैसे कि आजकल रवाज · जो उत्तरीयके दोनों छोर पीछेकी ओर